भारतीय उपमहाद्वीप में अनेक प्रकार के वन पाये जाते हैं। मुख्यतः छः प्रकार के वन समूह हैं; जैसे आर्द्र उष्णकटिबंधीय वन, शुष्क उष्णकटिबंधीय, पर्वतीय उप-उष्णकटिबंधीय, उप-अल्पाइन, उप शीतोष्ण तथा शीतोष्ण, जिन्हें 16 मुख्य वन प्रकारों में उपविभाजित किया गया है। प्रामाणिक रूप से भारत में अनेकानेक प्रकार के वन हैं- दक्षिण में केरल के वर्षा वनों से लेकर लद्दाख (उत्तर) में अल्पाइन वन पश्चिम में राजस्थान के मरूस्थल से लेकर पूर्वोत्तर के सदाबहार वन।
वनों के प्रकार
शंकुधारी वनः उन हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं, जहां तापमान कम होता है। इन वनों में सीधे लम्बे वृक्ष पाये जाते हैं, जिनकी पत्तियां नुकीली होती हैं तथा शाखाएँ नीचे की ओर झुकी होती है, जिससे बर्फ इनकी टहनियों पर जमा नहीं हो पाती। इनमें बीजों के स्थान पर शंकु होते हैं, इसलिए इन्हें जिम्नोस्पर्म भी कहा जाता है। इन वनों की पत्तियाँ बड़ी-बड़ी तथा अलग-अलग प्रकार की होती हैं।
सदाबहार वनः पश्चिमी घाट पूर्वोत्तर भारत तथा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित उच्च वर्षा क्षेत्रों में पाये जाते हैं। यह वन उन क्षेत्रों में पनपते हैं, जहां मानसून कई महीनों तक रहता है। यह वृक्ष एक दूसरे से सटकर लगातार छत का निर्माण करते हैं। इसलिए इन वनों में धरातल तक प्रकाश नहीं पहुंच पाता। जब इस परत से थोड़ा प्रकाश धरातल तक पहुंचता है, तब केवल कुछ छायाप्रिय पौधे ही धरती पर पनप पाते हैं। इन वनों में आर्किड्स तथा फर्न बहुतायत में पाये जाते हैं। इन वृक्षों की छाल काई से लिपटी रहती है। यह वन जन्तु तथा कीट जीवन में प्रचुर हैं।
आर्द्र सदाबहार वनः यह दक्षिण में पश्चिमी घाट के साथ, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह तथा पूर्वोत्तर में सभी जगह पाये जाते हैं। यह वन लंबे, सीधे सदाबहार वृक्षों से, जिनकी तना या जड़े त्रिपदयीय आकार की होती हैं, से बनते हैं, जिससे ये तूफान में भी सीधे खड़े रहते हैं। इन वनों के मुख्य वृक्ष जैक फल, सुपारी, पाल्म, जामुन, आम तथा हॉलॉक हैं। इन वनों में छोटे वृक्ष तथा फिर लंबे वृक्ष उगते हैं। अलग-अलग रंगों के सुन्दर फर्न तथा अनेक प्रकार के आर्किड्स इन वनों के वृक्षों के साथ उग जाते हैं।
अर्द्ध सदाबहार वृक्षः इस प्रकार के वन पश्चिमी घाट, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह तथा पूर्वी हिमालयों में पाये जाते हैं। इन वनों में आर्द्र सदाबहार वृक्ष तथा आर्द्र पर्णपाती वनों का मिश्रण पाया जाता है। यह वन घने होते हैं तथा इनमें अनेक प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं।
पर्णपाती वनः यह वन केवल उन्हीं क्षेत्रों में पाये जाते हैं, जहां मध्यम स्तर की मौसमी वर्षा, जो केवल कुछ ही महीनों तक होती है। यह वृक्ष सर्दियों तथा गर्मियों के महीनों में अपनी पत्तियां गिरा देते हैं। मार्च तथा अप्रैल के महीनों में इन वृक्षों पर नयी पत्तियां उगने लगती हैं। मानसून आने से पहले ये वृक्ष वर्षा की उपस्थिति में वृद्धि करते हैं। यह पत्तियां गिरने तथा इनकी चौड़ाई बढ़ने का मौसम होता है; क्योंकि प्रकाश इन वृक्षों के बीच से वनों के तल तक पहुंच सकता है। इसलिए इनमें घनी वृद्धि होती है।
कांटेदार वनः यह वन भारत में कम नमी वाले स्थानों पर पाये जाते हैं। यह वृक्ष दूर-दूर तथा हरी घास से घिरे रहते हैं। इनमें कुछ वृक्षों की पत्तियां छोटी होती हैं, कुछ वृक्षों की पत्तियां मोटी तथा मोम युक्त होती हैं; ताकि जल का वाष्पीकरण कम किया जा सके। कांटेदार वृक्षों में लंबी तथा रेशेयुक्त जड़ें होती हैं, जिनसे पानी काफी गहराई तक पहुंच पाता है। कई वृक्षों में कांटे होते हैं, जो पानी की हानि को कम करते हैं तथा जानवरों से रक्षा करते हैं।
मैंग्रोव वनः नदियों के डेल्टा तथा तटों के किनारे उगते हैं। यह वृक्ष लवणयुक्त तथा शुद्ध जल सभी में वृद्धि करते हैं। यह वन नदियों द्वारा बहाकर लायी गई मिट्टिðयों में अधिक वृद्धि करते हैं। मैंग्रोव वृक्षों की जड़ें कीचड़ से बाहर की ओर वृद्धि करती हैं, जो श्वसन भी करती हैं।