इंडियन नाइट्रोजन एसेसमेंट

भारत में नाइट्रोजन के इस्तेमाल के संपूर्ण मूल्यांकन के लिए ‘भारतीय नाइट्रोजन समूह’ (Indian Nitrogen Group: ING) द्वारा ‘भारतीय नाइट्रोजन मूल्यांकन’ (The Indian Nitrogen Assessment) कराया गया। इसमें वर्ष 2006 से अध्ययन शामिल है। इंडियन नाइट्रोजन समूह ‘सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ ( Society for Conservation of Nature: SCN) द्वारा गठित किया गया था।

प्रभाव

  • इस मूल्यांकन के अनुसार भारत में नाइट्रोजन प्रदूषण का मुख्य स्रोत कृषि है। कृषि में भी सर्वाधिक दोषी अनाज हैं।
  • भारत प्रतिवर्ष 17 मिलियन टन नाइट्रोजन उर्वरक का उपभोग करता है। इनमें से केवल 33% नाइट्रोजन, नाइट्रेट (NO3) के रूप में चावल एवं गेहूं के फसल द्वारा उपभोग किया जाता है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार नाइट्रेट ने न केवल धरातलीय जल को प्रभावित किया वरन् भूजल के विभिन्न स्रोतों को भी प्रदूषित कर दिया। हरियाणा, पंजाब एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जल में नाइट्रेट की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमत मात्रा से कहीं अधिक थी।
  • कार्बन डाइ ऑक्साइड की तुलना में नाइट्रस ऑक्साइड ग्रीन हाउस गैस के लिए 300 गुणा अधिक जिम्मेदार हो सकती है।
  • भारत में नाइट्रस ऑक्साइड प्रदूषण का एक अन्य स्रोत वाहन प्रदूषण है जो कि भारत में 32% प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।
  • भारत में उपर्युक्त प्रदूषण से निपटने के लिए उर्वरक प्रयोग में नियंत्रण की सिफारिश की है। इसके नियंत्रित उपयोग से भारत सरकार पर उर्वरक सब्सिडी का भी बोझ कम होगा। उदारीकरण के पश्चात भारत सरकार ने अधिकांश उर्वरकों को विनियमन से मुक्त कर दिया परंतु यूरिया आज तक विनियमित है।

इस अध्ययन में न केवल कृषि क्षेत्र में उपयोग किये जा रहे नाइट्रोजन के प्रभाव का, वरन् देश में परिवहन की संख्या में वृद्धि से उत्सर्जित नाइट्रोजन के प्रभाव को शामिल किया गया। भारत में अपनी तरह का यह पहला अध्ययन था।