आर्द्रभूमियों के रामसर कन्वेंशन द्वारा जारी रिपोर्ट ‘द ग्लोबल वैटलैण्ड आउटलुक-2018’ (The Global Wetland Outlook 2018) के अनुसार आर्द्रभूमियां वनों की अपेक्षा तीन गुना तेजी से समाप्त हो रही हैं।
रिपोर्ट के अनुसार 1970 और 2015 के मध्य लगभग 35% आर्द्रभूमियां जिनमें झील, नदियां, दलदली भूमियां, तटीय और सागरीय क्षेत्र- लैगून, मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियां शामिल हैं, खत्म हो गयी हैं। वर्ष 2000 से इनके खत्म होने की वार्षिक दर तेजी से बढ़ी है।
आर्द्रभूमियों पर निर्भर प्रजातियां जैसे- मछलियां, जलपक्षी और कछुओं की संख्या में भारी गिरावट हुई है। 1970 से 81% अंतर्देशीय आर्द्रभूमि प्रजाति और 36% तटीय और सागरीय प्रजातियों में गिरावट आई है।
वर्ष 2050 तक एक-तिहाई वैश्विक आबादी जल में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की अधिकता के संपर्क में आयेगी। जल में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की अधिकता से शैवाल प्रस्फुटन (Algae bloom) होगा। शैवाल के तीव्र विकास एवं क्षय से मछली तथा अन्य प्रजातियों को खतरा होगा।