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- ओंकार नाथ
विशेषज्ञ सलाह
उत्तर लेखन शैली से जुड़ी समस्याएं सामान्य अध्ययन के एक विषय सामाजिक-आर्थिक विकास से संबंधित अध्यायों में भी व्यापक रूप से प्रकट होती हैं। सामान्य अध्ययन से जुड़े इस विषय को पहले भारतीय अर्थव्यवस्था शीर्षक से पढ़ा जाता था। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे संस्थानों, मार्गदर्शकों द्वारा लम्बे समय तक यही धारणा बनाई गई कि बस अर्थव्यवस्था में सामाजिक पक्ष जुड़ गया है। इस विषय पर सबसे बड़ी समस्या मानक पुस्तकों का उपलब्ध न हो पाना है। विश्वविद्यालयी पाठड्ढक्रम के आधार पर लिखी गई अर्थव्यवस्था की परंपरागत पुस्तकें बदले हुए पाठड्ढक्रम के हिसाब से काफी पुरानी हो चुकी हैं। कुछ पुस्तकें वही दो दशक पुराने वाले सिलेबस लिए हुए अभी तक छात्रें के बीच अपनी मौजूदगी बनाए हुए है। ज्यादातर पुस्तकें वही मांग-आपूर्ति, बैंक दर वाले पुराने पैटर्न को अपनाते हुए अनेक तथ्यों को समाहित करते हुए छात्रें को रटन्त विद्या मार्ग पर चलाती रही हैं, जबकि संघ लोक सेवा आयोग का पाठड्ढक्रम एक अभ्यर्थी से देश के सामाजिक-आर्थिक पक्षों की सामान्य समझ के आकलन क्षमता की अपेक्षा करता है।
नये प्रश्न पूछने की बढ़ती प्रवृत्ति से जुड़ी समस्याएं?
सामान्य अध्ययन से जुड़े इस विषय की पहली समस्या नये प्रकार के बनने वाले प्रश्नों की है जिनका उत्तर परंपरागत विश्वविद्यालय स्तर पर संचालित अर्थव्यवस्या की पुस्तकों में दूर-दूर तक नहीं मिलता। आज पूछे जाने वाले प्रश्नों का संबंध सीधे-सीधे देश की सामाजिक-आर्थिक नीतियों से जुड़ा होता है। कुछ प्रश्न तो इतने सम-सामयिक व व्यावहारिक स्तर के होते हैं कि उनको जानना, समझना तथा राजनैतिक समझ वाले पूर्वाग्रह को त्यागते हुए उनको उत्तर में बेहद संतुलित तरीके से लिखना बेहद चुनौतीपूर्ण व कठिन कार्य है।
कुछ सम-सामयिक मुद्दों के माध्यम से इस विषय के बदले हुए पैटर्न को समझा जा सकता है। कृषि क्षेत्र में बने तीन नए कानून, इनका वर्तमान तक जारी विरोध, न्यूनतम समर्थन मूल्य का योगदान, देश की भंडारण नीति, एफ- सी- आई-, नेफेड की विवादित कार्यप्रणाली, अनुबंध व डिजिटल कृषि, निजी क्षेत्र का कृषि गतिविधियों में प्रवेश, कृषि वित्त, लोन माफी व जर्जर भारतीय बैंक, कृषकों की आत्महत्याएं, अन्नदाताओं के नाम पर जारी राजनीति आदि मुद्दों से मौजूदा भारत की आर्थिक नीति प्रभावित हो रही है।
कृषि क्षेत्र से जुड़े ये तमाम मुद्दे अपने अन्दर इतने अंतर्विरोध, विशेषताएं, आशंकाएं लिए हुए हैं कि इन मुद्दों के आधार पर एक समझ बनाकर परीक्षा उत्तीर्ण करना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य है।
ठीक यही स्थिति गरीबी-बेरोजगारी, उद्योग, वित्त जैसे पुराने परंपरागत विषयों को लेकर उत्पन्न हो रही है। परीक्षा प्रणाली वर्तमान दौर की नीतियों से जुड़े मुद्दों पर प्रश्न पूछ रही है। वहीं पुस्तकें प्रछन्न बेरोजगारी की विशेषताएं व मिश्रित अर्थव्यवस्था के गुण बताकर नये अभ्यर्थियों को अभी भी दशकों पुराने पैटर्न पर चला रही हैं।
वास्तविकता तो यह है कि वर्तमान में संचालित सभी नीतियों का निष्पक्ष, संतुलित ज्ञान रखते हुए सामान्य अध्ययन के इस विषय (सामाजिक-आर्थिक विकास) से जुड़े प्रश्नों का शब्द सीमा के अंतर्गत उत्तर लिखना तभी संभव है जब एक अभ्यर्थी नियमित रूप से विभिन्न नीतियों पर अपनी समझ को शब्द सीमा के दायरे में बांधने की पूर्ण कोशिश करते हुए निरंतर उत्तर लेखन का अभ्यास करे।
एप्रोच को बदलें
सामाजिक-आर्थिक विकास से जुड़े विषय के सन्दर्भ में पहली आवश्यकता तो यह है कि अभ्यर्थी इसका अध्ययन केवल अर्थव्यवस्था के भाग के रूप में न करें, बल्कि देश की सामाजिक-आर्थिक नीति के रूप में इसका अध्ययन करें। इस चार्ट को देखें_ इसमें परंपरागत प्रश्नों के स्थान पर किस प्रकार नये प्रश्न बन सकते हैं, इसे समझाने की कोशिश की गई है-
पाठयक्रम | परंपरागत प्रश्न | परिवर्तित पाठड्ढक्रम पर बनते नये प्रश्न |
भारतीय अर्थव्यवस्था | परिचय, प्रकृति, विशेषता, स्थिति, समस्याएं व चुनौतियां | अर्थव्यवस्था के सामाजिक-आर्थिक पक्ष व वर्तमान परिदृश्य |
मानव विकास | सिर्फ सैद्धांतिक जानकारी | मानव विकास की अवधारणा, उपागम, सरकार की नीतियां तथा वैश्विक व भारतीय रिपोर्ट |
सतत-विकास | सिर्फ सैद्धांतिक जानकारी | सतत-विकास लक्ष्य, भारत की नीतियाँ, निष्पादन व सूचकांक |
समावेशी विकास | सिर्फ सैद्धांतिक व सामान्य जानकारी | नीति, पहल, आवश्यकता, वर्तमान रणनीति, निष्पादन, चुनौती, समाधान |
गरीबी व बेरोजगारी | परिभाषा, प्रकार, मापन, कारण, दूर करने के प्रयास | सामाजिक-आर्थिक पक्ष_ जनसंख्या वृद्धि व गरीबी_ बहु-आयामी गरीबी सूचकांक वैश्वीकरण की नीतियां व गरीबी-बेरोजगारी_ कोविड-19 का प्रभाव |
कृषि | विशेषता, योगदान, पंचवर्षीय योजनाएं, विकास हेतु पहल | नये कृषि कानून व भारतीय कृषि की समस्याएं_ डैच् का प्रभाव, भण्डारण, बाजारीकरण व नए कृषि कानून, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव_ कृषकों की दोगुनी आय हेतु उठाये गए कदमों की समीक्षा |
उद्योग क्षेत्र | समग्र नीतियों की चर्चा | लघु उद्योग की महत्ता, स्थिति, चुनौती व सरकारी प्रयास_ स्टार्ट-अप/ स्टैंड-अप व अन्य विकासात्मक योजनाओं का निष्पादन |
मुद्रा व बैंकिंग | मुद्रा जगत की अवधारणा, RBI की सरंचना व कार्य पद्धति | RBI की नीतियों का मूल्यांकन_ वित्तीय समावेशन_ देश के विकास में वित्तीय नीतियां कैसे लागू हो रही हैं, प्रभाव, परिणाम, समस्याएं व सुझाव |
कुपोषण व भुखमरी | अवधारणा / सामान्य परिचय | कुपोषण-प्रकार, मापन, प्रभाव, रिपोर्ट, दूर करने की नीति, सुझाव_ खाद्य सुरक्षा- आवश्यकता, नीतियां, वर्तमान परिदृश्य, समस्याएं, नई पहल, सुझाव |
स्वास्थ्य | (पाठड्ढक्रम का भाग नहीं) | स्वास्थ्य - प्रणाली, स्थिति, मुद्दे, चुनौतियां, सरकार की नीति, राज्यों की स्थिति, सुझाव |
ग्रामीण विकास | (पाठड्ढक्रम में कृषि, गरीबी अध्याय से जुड़ा महज एक अध्याय) | ग्रामीण विकास- अवधारणा, महत्त्व, विकास नीति, दृष्टिकोण, सरकारी प्रयास, उत्पन्न प्रभाव, समस्याएं व सुझाव |
सामाजिक सुरक्षा | (पाठड्ढक्रम का हिस्सा नहीं) | सामाजिक सुरक्षा- अवधारणा, आवश्यकता, उद्देश्य, सुरक्षा की आवश्यकता क्यों, सम्बंधित प्रावधान, समितियां, रिपोर्ट, मूल्यांकन, सुझाव |
असुरक्षित वर्ग | (पाठड्ढक्रम का हिस्सा नहीं) | असुरक्षित वर्ग- परिचय, वर्गीकरण, महिलाएं, बच्चे, वृद्ध, दिव्यांग, अल्पसंख्यक, पिछड़े तथा जातिगत रूप से पिछड़े वर्गों के कल्याणार्थ नीतियां |
इस छोटी सारणी में विषय से जुड़े तमाम प्रसंगों को समेटने का प्रयास किया गया है। ये सभी मुद्दे प्रारम्भिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा तथा निबंध के अतिरिक्त इंटरव्यू में भी पूछे जा सकते हैं।
भविष्य की राह
नये-पुराने अभ्यर्थियों के लिए यह आवश्यक है कि वह अर्थशास्त्र के जटिल सिद्धांतों के मकड़जाल से निकलकर देश के विकास हेतु आवश्यक सामाजिक-आर्थिक नीतियों को समझे। सिविल सर्विसेस क्रॉनिकल जैसी पत्रिकाएं पिछले दो दशक से इसी दायित्व को पूर्ण कर रही हैं।
नये अभ्यर्थी के साथ पुराने परीक्षार्थी भी इनका नियमित अध्ययन कर परीक्षा के मानकों को पूर्ण कर सकते हैं।