- होम
- विशेषज्ञ सलाह
- ओंकार नाथ
विशेषज्ञ सलाह
संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सबसे बड़ी समस्या उत्तर लेखन शैली को लेकर प्रकट होती है। पहले के कुछ दशकों में गुणवत्तापूर्ण सामग्री न मिलने की समस्या थी, किन्तु इंटरनेट क्रांति के पश्चात अब समस्या अध्ययन सामग्री की नहीं, बल्कि पूछे जाने वाले प्रश्नों के प्रारूप व दिन प्रतिदिन बदलते उनके पैटर्न को लेकर प्रकट हो रही है। यह बदलाव प्री और मेन्स दोनों स्तरों पर देखा जा रहा है। पहले के प्रश्न सामान्य अध्ययन के किसी विशेष खंड से जुड़े होते थे, किन्तु अब प्रश्न को देखकर यह बताना मुश्किल है कि इसका संबंध सामान्य अध्ययन के किस विषय से है। कभी-कभी एक ही प्रश्न का संबंध अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, सम-सामयिकी के साथ नैतिकता से भी जुड़ा होता है। इसके साथ ही प्रश्न के उत्तर की शब्द सीमा के निर्देशों का पालन करने में परीक्षार्थियों के बीच सबसे ज्यादा कठिनाई देखी जा रही है। प्रश्न का प्रारूप ऐसा होता है कि उसके विभिन्न आयामों को लिखने में 1200 शब्द भी कम पड़ जाएं, जबकि उसे 200 शब्दों में लिखने का निर्देश दिया जाता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि कम से कम शब्दों में प्रश्नों के अनुरूप सारगर्भित उत्तर लिखा जाए। बदलते पैटर्न को देखकर यह कहा जा सकता है कि अब किताबी ज्ञान के दिन पूरे हो चुके हैं। इसलिए परीक्षार्थियों को मौलिक ज्ञान खोजने की संघ लोक सेवा आयोग की मुहिम के अनुरूप उत्तर लिखने के दृष्टिकोण में बदलाव करना होगा।
बदलता एप्रोच
जब से परीक्षा प्रणाली में बदलाव हुआ है तथा मुख्य परीक्षा का सिलेबस बदला है, तब से ही सामान्य अध्ययन का पेपर दिन-प्रतिदिन व्यावहारिक होता जा रहा है। प्रतिदिन की होने वाली राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक घटनाओं का असर पूछे गए प्रश्नों पर स्पष्टतः देखा जा सकता है। विगत कुछ वर्षों के प्रश्न-पत्रों को देखें तो यह बदलाव पूछे गए प्रश्नों में झलकता है। इस समस्या का सर्वाधिक असर हिन्दी भाषी राज्यों के विद्यार्थियों पर पड़ रहा है। हिन्दी भाषी छात्रों में राज्यों की पहले से ही कमजोर शिक्षा प्रणाली की कई अंतर्निहित विसंगतियां उनके साथ ही रहती है, जो अंतिम सफलता मिलने में हमेशा अवरोध खड़ी करती रहती हैं। इस बदलाव को समझने के लिए सामान्य अध्ययन के हर विषय के एक-एक अध्यायों पर क्रमशः चर्चा अपेक्षित है।
इतिहास व संस्कृति
इतिहास विषय का केन्द्रण मुख्य परीक्षा में ज्यादातर स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े विविध प्रसंगों से जुड़ा है। इनमें भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना, उनके विविध चरण, सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, राष्ट्रवाद, राष्ट्रवाद के विविध चरण, स्वतंत्रता प्राप्ति, देश विभाजन, देश का नवनिर्माण जैसे अध्याय शामिल हैं। पहले के प्रश्न बेहद सहज व सरल होते थे, जो मानक व स्तरीय पुस्तकों के पढ़ने के पश्चात्त लिखे जा सकते थे, किन्तु इधर के वर्षों में प्रश्नों का प्रारूप विश्लेषणात्मक के साथ तुलनात्मक स्तर का होता जा रहा है। इसके साथ-साथ नैतिकता, निर्णय लेने की क्षमता, पूर्वाग्रह जैसे विशेष गुण भी परखे जाने लगे हैं। इनके अतिरिक्त वर्तमान में उमड़ रहे राजनैतिक-सामाजिक विचारों का भी प्रभाव इतिहास जैसे परंपरागत समझे गए विषय पर पड़ रहा है और इस बदलाव को ज्यादातर परीक्षार्थी समझ नहीं पा रहे हैं।
उदाहरण के लिए सांप्रदायिकता, सांप्रदायिक राजनीति, गांधीवादी राजनीति, मुस्लिम राजनीति, पाकिस्तान की मांग, देश विभाजन के कारण, कश्मीर-हैदराबाद का अंतिम विलय, संविधान निर्माण, प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू का योगदान, कश्मीर समस्या व नेहरू, सुभाष चंद्र बोस बनाम गांधी, सुभाष चंद्र बोस का योगदान, क्रांतिकारी आंदोलन बनाम अंहिसा, नेहरू बनाम पटेल, गांधी बनाम अम्बेडकर, राष्ट्रवाद की विचारधारा में गांधी बनाम टैगोर, सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता, सावरकर बनाम गांधी जैसे कई प्रसंग विभिन्न नए तथ्यों के साथ इधर के वर्षों में सामने आए हैं। ये सभी प्रश्न परीक्षाओं में पूछे भी जा रहे हैं। इनका उत्तर एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तकों के अतिरिक्त, बिपिन चंद्र की प्रसिद्ध पुस्तक स्वतंत्रता संघर्ष से लेकर विभिन्न शिक्षण संस्थाओं के नोट्स या अध्ययन सामग्री में भी पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं हैं। इस समस्या का पूरा असर उन परीक्षार्थियों पर पड़ता है जो न समाचार पत्र पढ़ते हैं, न उन्हें नए-नए इन बदलावों पर स्वतंत्र रूप से सोचने के लिए प्रेरित किया जाता है। परीक्षार्थियों को यह कभी नहीं बताया जाता कि देश में हो रहे बदलावों को किस दृष्टि से देखें; उनका कैसे संतुलित तरीके से अपनी परीक्षा प्रणाली के अनुरूप प्रयोग करें, कभी भी दिगभ्रमित श्रेणी के उत्तर न लिखें। ये कमी आज ज्यादातर परीक्षार्थियों में देखी जा सकती है।
प्रश्नों को समझें
इधर के वर्षों में जो प्रश्न पूछे जा रहे हैं उनमें परीक्षार्थियों के व्यक्तित्व, ज्ञान, रुझान, पूर्वाग्रह, निर्णय लेने की क्षमता का पूरा आकलन किया जाता है। इन विशेष बदलावों को कुछ विशेष प्रश्नों से समझा जा सकता हैः
- क्या आप इस तथ्य से सहमत है कि वीर सावरकर ने सांप्रदायिक राजनीति को प्रारंभ किया, वहीं गांधीवादी आंदोलन धर्म निरपेक्षता का प्रतीक था।
- दो राष्ट्रों के सिद्धान्त पर टिप्पणी कीजिए, इस संदर्भ में गांधी, जिन्ना व सावरकर की भूमिका का मूल्यांकन करें।
- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी व सुभाष चंद्र बोस की विचारधारा का तुलनात्मक वर्णन व विश्लेषण करें। देश विभाजन व स्वतंत्रता प्राप्ति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, क्या आप इससे सहमत हैं, टिप्पणी करें।
- स्वतंत्रता पश्चात नेहरू की नीतियों का मूल्यांकन करें, इनके प्रभावों की समीक्षा करें।
- 1920 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन ने कई वैचारिक धाराओं को ग्रहण किया और अपना सामाजिक आधार बढ़ाया, विवेचना कीजिए।
- धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं?
इन विशेष चुनिंदा प्रश्नों में अंतिम दो प्रश्न 2020 व 2019 की मुख्य परीक्षा में पूछे गए हैं तो इनके अतिरिक्त सभी प्रश्न किसी न किसी रूप में राज्य लोक सेवा आयोगों की परीक्षाओं में पूछे जा रहे हैं। इन प्रश्नों को समझना, उनकों स्टेप बाई स्टेप सहज, सरल व संतुलित तरीके से लिखना एक सामान्य परीक्षार्थी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है। जिसे प्रत्यक्षतः देखा जा रहा है।
उत्तर को लिखना
इन प्रश्नों को लिखते समय परीक्षार्थियों से उम्मीद रखी जाती है कि वह विविध आयामों को अपने उत्तर में लिखें, वह भी शब्द सीमा (250/125 शब्द) के अंदर। उदाहरण के लिए एक प्रश्न को समझते हैं। 2020 के एक प्रश्न (1920 के दशक का राष्ट्रीय आंदोलन+कई वैचारिक धाराओं का ग्रहण+सामाजिक दायरे का विस्तार) को 250 शब्दों में 4 विभिन्न आयामों में लिखने के लिए कुछ विशेष बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिएः
- राष्ट्रीय आंदोलन में विविध विचारधाराएं।
- मध्यम वर्गीय कांग्रेसी आंदोलन।
- उदारवादी/उग्रवादी/कांग्रेसी/जातिवादी/संप्रदायवादी आंदोलन।
- गांधीवादी विचारधारा।
- धार्मिक मजहबी (हिंदू महासभा/मुस्लिम लीग) विचारधारा।
- साम्यवादी, समाजवादी, श्रमिक संघ, औद्यौगिक संगठन, देशी रियासतें, कृषक, दलित, महिला व क्षेत्रीय जातिगत आंदोलन।
- इन सभी आंदोलनों का प्रभाव व दायरा और जुड़े लोगों की स्थिति।
ये 7 विविध प्रकार के पहलू हैं िजन्हें 250 शब्दों मे लिखे जाने की उम्मीद एक परीक्षार्थी से की जाती है। ठीक इसी तरह एक दूसरे वर्ष 2019 के प्रश्न में (धर्मनिरपेक्षता+भारतीय सांस्कृतिक प्रथाएं+चुनौतियां) इतिहास व संस्कृति, सामाजिक मुद्दे, सामाजिक न्याय, ‘एथिक्स, इन्टीग्रिटी व एप्टीटड्ढूड’जैसे सभी पक्ष एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और इसे 150 शब्दों में लिखना है। इस प्रश्न को लिखते- समय यह उम्मीद की जाती है कि एक परीक्षार्थी निम्नलििखत विविध पहलुओं को ध्यान में रखे:
- धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा व स्थिति।
- धर्मनिरपेक्षता का व्यावहारिक प्रदर्शन।
- भारतीय सांस्कृतिक प्रथाएं।
- वर्तमान धर्मनिरपेक्ष राजनीति कैसे चुनौती दे रही है।
- चुनौती देने वाली घटनाएं-क्रियाकलाप।
- क्या यह सही है अथवा गलत।
- क्या धर्मनिरपेक्षता महज तुष्टिकरण है।
ये 8 विविध पहलू इस प्रश्न के उत्तर में अपेक्षित हैं। जिनकी मांग यह प्रश्न कर रहा है और इन्हें 150 शब्दों में लिखना है।
हिन्दी राज्यों की व्यथा
परिवर्तित पाठ्यक्रम का सर्वाधिक नकारात्मक परिणाम हिन्दी बेल्ट पर पड़ा है। पूरे भारत में, तीन दशक से मशहूर एक प्रसिद्ध विशेषज्ञ एवं मार्गदर्शन देने वाली संस्था के प्रमुख ने हिन्दी बेल्ट के निराशाजनक परिणाम पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि समस्या परीक्षार्थियों में नहीं, बल्कि समस्या हिन्दी भाषी राज्यों की परंपरागत शिक्षा प्रणाली में है। जो हर विषय को रटते है, प्रश्नों को समझने की अपेक्षा पेज भर कर नंबर पाने की उम्मीद रखते हैं। ये वो तरीका है जो हाईस्कूल से ग्रेजुएशन तक विद्यार्थी अपनाते रहे हैं। क्वेश्चन को गेस करने और लिखने का परंपरागत तरीका सिविल सर्विसेज परीक्षाओं में आज भी उसी तरह आजमाया जा रहा है। देश व समाज की बदलती परिस्थितियों का आकलन कर उनको अपने उत्तर में कैसे समेटें, इसका न अभ्यास होता है न उत्तर लिखकर अपना आकलन करने की प्रवृत्ति। परीक्षार्थियों को मार्गदर्शन देने के नाम पर शिक्षण संस्थाएं भी अपने दायित्व को पूर्ण नहीं करतीं और न ही बदलते मानक व पाठ्यक्रम की तरफ नए परीक्षार्थियों को मोड़ने की कोशिश करती हैं। अनेक संस्थाओं के द्वारा तो सिर्फ अपने नोट्स रटने को प्रेरित कर यह दावा किया जाता है कि सब कुछ इसमें से ही फंसेगा। यही विश्वास परीक्षार्थियों के लिए ज्यादातर आत्मघाती होता है। देखा जाए तो यह वक्तव्य रटन्ट, घोटन्त, लिखन्त वाली विचारधारा पर ही की गई टिप्पणी है जो दशकों बाद आज भी हिन्दी बेल्ट पर शत प्रतिशत सही व सटीक बैठती है।
भविष्य की राह
इन विकट परिस्थितियों से बचने या निकलने के लिए परीक्षार्थियों को कुछ विशेष मुद्दों पर ध्यान देते हुए कुछ शैक्षणिक संस्कारों को अपने अंदर विकसित कर उनको अपनाना चाहिए:
- पुस्तक अवश्य पढ़ें।
- पूर्व के पूछे गए प्रश्नों का अवलोकन करते रहें।
- प्रश्नों का फॉर्मेट (Answer Format) बनाने की कोशिश करें।
- “क्या-कितना-कैसे-किस तरह”उत्तर लिखना है, इसका निर्धारण करें।
- उत्तर को हमेशा ‘टू द प्वॉइन्ट’लिखने की कोशिश करें।
- प्रतिदिन 2-3 प्रश्नों को लिखने की अवश्य प्रैक्टिस करें।
- लिखे गए प्रश्नों का किसी प्रसिद्ध विशेषज्ञ से आकलन कराएं।
- अपनी कमियों को पहचानें, संचार क्रांति का उपयोग करें।
- देश की बदलती विचारधारा को समझें।
- बदलती विचारधारा को कैसे संतुलित तरीके से समझें, लिखें व बोलें, यह संस्कार भी धीरे-धीरे अपने अंदर समाहित करें। किसी मुद्दे को पढ़ने से ज्यादा उसे प्रश्न-उत्तर शैली में लिखने की कोशिश करें।
ये कुछ महत्वपूर्ण प्रसंग हैं, जिन्हें परीक्षार्थियों, विशेषकर हिन्दी बेल्ट के परीक्षार्थियों द्वारा अपनाया जाना चाहिए। ये शैक्षणिक संस्कार इंग्लिश मीडियम के परीक्षार्थियों में व्यापक पैमाने पर प्रकट होते हैं। सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल जैसी पत्रिकाएं लम्बे समय से अपनी विविध पुस्तकों, मॉक टेस्ट, प्रश्नोत्तर शैली वाले स्तंभों के माध्यम से बदलाव लाने की मुहिम में शामिल हैं। (क्रमशः)