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निबंध परिचर्चा


निबंध का अर्थ

सामान्यतः निबंध की चर्चा होते ही विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले विषय हिन्दी साहित्य की प्रचलित अवधारणा ही सामने आने लगती है कि निबंध भावों एवं विचारों को समुचित तरीके से जोड़कर प्रस्तुत करने का एक माध्यम है, जिसमें किसी विषय पर व्यक्ति के भाव, विचार, अनुभव को प्रस्तुत किया जाता है। निबंध के संदर्भ में यह अवधारणा साहित्य के स्तर पर तो प्रचलित है किन्तु निबन्ध की इस विधा से एक प्रशासनिक अधिकारी की खोज कैसे होगी, सामान्यतः इस पर निष्पक्षता से चर्चा नहीं होती।

दरअसल निबंध एक नजरिया है, जो किसी विषय पर टीवी, समाचारपत्र, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से तथा वर्तमान की प्रचलित अवधारणा के जरिये किसी भी व्यक्ति के अंदर विशेष दृष्टिकोण के तहत निर्मित होता रहता है। एक ही विषय पर कई अलग-अलग विचारधाराएं सामने आती हैं और इन सबके अलग-अलग तर्क होते हैं, प्रत्येक तर्क को प्रस्तुत करने वाला विचारक इतना तार्किक होता है कि वह अपने तर्कों से स्वयं को सही व उचित बताता है और जिससे दूसरी विचारधारा गलत या कमजोर पड़ने लगती है। इस परिस्थिति में निबंध लेखन के लिए विषय, तथ्य, विश्लेषण करने की पद्धति की आवश्यकता प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले परीक्षार्थियों के लिए हमेशा एक वैचारिक संकट जैसी पहेली बनी रहती है।

सिविल सेवा परीक्षा में निबंध के माध्यम से परीक्षार्थियों के अंदर की मौलिक समझ का आकलन किया जाता है कि वह किसी विशेष विषय पर कितना व्यावहारिक ज्ञान और समझ रखता है। विषय के सकारात्मक - नकारात्मक पहलुओं के साथ समस्या का समाधान कैसे व किस तरह हो सकता है इसी की पहचान निबंध के माध्यम से सिविल सेवा परीक्षाएं करती हैं।

निबंध के प्रकार

निबंध के कितने प्रकार होते हैं ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया गया है किन्तु विगत कई वर्षों के पूछे गए प्रश्नों के आधार पर इनको व्याख्यायित करने का प्रयास किया जाता है। सामान्यतः दो खंडों में विभाजित कुल 8 निबंध पूछे जाते हैं जिनमें एक-एक निबंध का चुनाव कर प्रत्येक को 1200 शब्दों में लिखना होता है।

इन निबंधों में भावना प्रधान, अनुभव, वस्तुस्थिति लिए हुए विश्लेषण करने वाले निबंध वर्णनात्मक निबंध कहलाते है। इसे निबंधों में किसी भी परीक्षार्थी की भावना का आकलन होता है। वर्ष 2020 में इस शीर्षक से जुड़े चार निबन्ध पूछ लिए गए। इसमें ‘मनुष्य’ व ‘मनुष्य होने’ के बीच अर्न्तसंबंध, मानव व्यक्तित्व में विचारधारा की भूमिका, मानव समाज के अंदर की अंतर्रनिहित कमियां, सफलता ही मूलमंत्र है जैसे शीर्षक, कुछ गूढ़ शब्दों के माध्यम से पूछे गए जिनकों एक बार में पढ़ कर कोई परीक्षार्थी विचलित हो सकता है किन्तु ध्यानपूर्वक पढ़ने, चिन्तन करने, समझने के पश्चात पूछे गए शीर्षक के तहत शब्द सीमा के अंदर लेखन के नियमित अभ्यास से निबंध का उत्तर लिखा जा सकता है।

निबंध का दूसरा खंड विवरणात्मक विषय से जुड़ा रहता है जो देश व समाज की यथास्थिति से संबंधित होता है। इसमें देश पर पड़ने वाले प्रभाव-परिणाम की चर्चा कर परीक्षार्थी के सामाजिक ज्ञान का आकलन किया जाता है। सोशल मीडिया का प्रभाव, नए कृषि कानून, नई शिक्षा नीति, पक्षपात पूर्ण मीडिया जैसे वर्तमान के कई प्रचलित विवादित विषय इस श्रेणी में शामिल है। वर्ष 2020 के संघ लोक सेवा आयोग के प्रश्नों को देखें तो दूसरा खंड इस श्रेणी से जुड़ा रहा, जिसमें सभ्यता व संस्कृति, सामाजिक न्याय व आर्थिक समृद्धि, समाज का पुरुष प्रधान पितृसत्तात्मक स्वरूप, अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करने में प्रौद्योगिकी जैसे शीर्षक वाले निबंध पूछे गए जो क्रमशः सामान्य अध्ययन से जुड़े विषय इतिहास व संस्कृति, राजव्यवस्था व अर्थव्यवस्था, सामाजिक न्याय व अंतरराष्ट्रीय संबंध से संबंधित थे, किन्तु उनका जुड़ाव वर्तमान भारत से संलग्न कर पूछा गया।

निबंध लिखने का तरीका

एक सामान्य समस्या आती है कि निबन्ध लिखें कैसे, उसके लिखने का तरीका क्या हो। इसके लिए कुछ विशेष मानदंडों का पालन करना चाहिए-

  • सर्वप्रथम शीर्षक का चुनाव करें;
  • शीर्षक का प्रारूप बनाएं;
  • शब्द सीमा का ध्यान रखते हुए निबंध के प्रारूप का विभाजन करें;
  • शीर्षक से जुड़े तथ्य, आंकड़े, संदर्भ को एकत्र कर एक स्थान पर पहले ही लिख लें;
  • फिर स्टेप बाई स्टेप लिखें, व्याख्या करें;
  • निबंध का विश्लेषण हमेशा सकारात्मक, देशबोधक, उम्मीदपरक, भविष्योउन्मुखी होना चाहिए।

ये कुछ महत्वपूर्ण निर्देश हैं जिनका पालन करके निश्चित समय सीमा में परीक्षार्थी बेहतर अंक प्राप्त कर सकते है। अधिकांश परीक्षार्थी टाइम और वर्ड मैनेजमेंट में संतुलन नहीं बना पाते किन्तु निरन्तर अभ्यास से इसमें सुधार लाया जा सकता है।

किस विचारधारा को लिखें?

एक बड़ी व्यावहारिक समस्या विचारधारा को लेकर आती है। यह समस्या सोशल मीडिया के आने पर ज्यादा गंभीर हुई है। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि देश के ज्यादातर मीडिया जगत कुछ विचारों से विविध खेमों में बंटे हैं, उनकी रिर्पोटिंग कई उलझनें पैदा करती है। एक परीक्षार्थी के लिए उनमें संतुलन बनाना बेहद कठिन कार्य है। उदाहरण के लिए नए कृषि कानून, किसान आंदोलन, कोविड की स्थिति, चीन से सीमा पर तनाव, राफेल विमान खरीद जैसे कई मुद्दों पर इतने तथ्य, विश्लेषण, आँकड़े सामने आते रहे जिससे किसी भी स्थिति में उलझनें दूर नहीं हो सकतीं। इस परिस्थिति में भी परीक्षार्थी को कुछ विशेष मानदंडों का पालन करना चाहिए-

  • प्रत्येक विषय के सकारात्मक-नकारात्मक पहलुओं को एकत्र करें;
  • किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें;
  • किसी भी संगठन, पार्टी, दल या खास विचारधारा से सहानुभूति न रखें;
  • क्रांतिकारी, उत्तेजक शब्दों या विचारों का प्रयोग न करें;
  • अपनी बात सहज, सरल शब्दों में रखें;
  • हमेशा संतुलित, मर्यादित शब्दों का प्रयोग करें;
  • कभी भी हमलावर या प्रहार करने की भाषा या तथ्य का प्रयोग न करें।

वास्तव में ये कुछ विशेष सावधानियां होती हैं जिनके पालन करने की अपेक्षा एक प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने वाले परीक्षार्थी से की जाती है। ज्यादातर ऐसा देखा गया है कि परीक्षार्थी इन विभिन्न प्रकार के विवादित प्रसंगों में संतुलन नहीं बना पाते, जो बना लेते है उन्हें बेहतर अंक मिलते है।

प्रशासनिक अधिकारी व निबंध

एक प्रशासनिक अधिकारी के तमाम गुणों की खोज निबंध के माध्यम से कैसे होती है, वास्तव में यही सबसे महत्वपूर्ण प्रसंग है, जिस पर विशेषकर हिन्दी भाषी राज्यों से जुड़े परीक्षार्थी ध्यान नहीं देते। हिन्दी भाषी राज्यों की विशेषता कहें या विडंबना, उनके हर विषय या प्रसंग का जुड़ाव किसी न किसी विशेष विचारधारा से होता है। राजनैतिक रूप से बेहद जागरूक व सक्रिय रहे इन राज्यों के निवासियों में बचपन से ही प्रत्येक विषय पर एक विशेष विचारधारा बनने लगती है जो अंत तक हावी रहती है। यह सोच, समझ, रुझान, निबंध लेखन में भी झलकता है। उदाहरण के लिए इतिहास व संस्कृति में प्राचीन जाति-वर्णव्यवस्था, हिन्दू मुस्लिम संबंध, देश विभाजन, स्वतंत्रता प्राप्ति, संविधान निर्माण, मूल अधिकार, न्यायपालिका, पंचायती राज, समाजिक रीति रिवाज, आरक्षण व्यवस्था, मीडिया का स्वरूप, महिलाओं की स्थिति जैसे कई प्रसंगों पर उनकी समझ किताबी ज्ञानों से एक दम अलग होती है। जबकि एक प्रशासनिक अधिकारी से उम्मीद की जाती है वह सभी प्रकार के वैचारिक पूर्वाग्रहों से मुक्त हो, वह किसी प्रकार का वैमनस्य समाज की किसी जाति, धर्म, संप्रदाय, समुदाय, पार्टी, संगठन से न रखे। उसका दृष्टिकोण निरपेक्ष हो, वह हमेशा सकारात्मक सोच रखे, वह हमेशा सही दिशा में बदलाव की उम्मीद रखे, वह हिंसक क्रांतिकारी या सत्ता को पलटने जैसी विचारधारा का पोषक न हो।

इसी प्रकार के कुछ विशेष गुण संघ लोक सेवा आयोग द्वारा परीक्षार्थी के लेखन के माध्यम से जाँचे जाते हैं। कई बार किसी विषय पर बेहतरीन लेखन भी उम्मीद के अनुसार नंबर नहीं दिला पाता। इसका कारण कहीं न कहीं विचारों का भटकाव या प्रस्तुतीकरण में कुछ विशेष खामियों की ओर इशारा करता है, जिन्हें परीक्षार्थी लेखन करते वक़्त समझ नहीं पाते। सामान्यतः जो उनके हृदय व मस्तिष्क में होता है वही लेखन में झलकने लगता है। किसी भी प्रसंग पर स्पष्ट समझ व निरन्तर अभ्यास से ही इन विशेष गुणों को सही दिशा दी जा सकती है।

संपादकीय लेख व निबंध

प्रशासनिक सेवा के अधिकांश परीक्षार्थी निबंध लेखन अभ्यास के साथ सम-सामयिक मुद्दों के लिए अखबारों, पत्रिकाओं में प्रकाशित संपादकीय लेखों का प्रयोग करते है। द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस, फ्रंटलाइन, इंडिया टुडे, दैनिक जागरण, जनसत्ता जैसी कुछ विशेष पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों का वैचारिक व तथ्यात्मक प्रभाव गहराई से पड़ता है। ज्यादातर परीक्षार्थियों का लेखन संपादकीय शैली में होता है, जो कि उतना सही नहीं माना जाता। संपादकीय लेखों से भी विशेष विचारधारा झलकती है जिसमें विशेषज्ञ अपनी बातों, तथ्यों से किसी भी प्रसंग पर इतनी विशेषताएं या खामियां गिना देते हैं कि एक निष्पक्ष दृष्टिकोण का बनना मुश्किल हो जाता है। इस स्थिति में संपादकीय लेखों को पढ़ते वक्त कुछ विशेष सावधानियां बरती जानी चाहिए जैसे-

  • संपादकीय लेखों से विचार या तथ्य को निकालें;
  • हमेशा सकारात्मक तथ्यों को एकत्र करें;
  • नकारात्मक तथ्यों को हमेशा चुनौती समझें;
  • सिर्फ वैश्विक, अंतरराष्ट्रीय या राष्ट्रीय स्तर के संगठन के आंकड़ों, विश्लेषणों का प्रयोग अपनी बातों को रखने में करें;
  • संशकित, उलझन, अन्जान भय, नकारात्मक प्रभावों वाले लेखों से बचें;
  • वामपंथ, दक्षिणपंथ, लिबरल, नेशनलिस्ट जैसे वैचारिक खेमे के समर्थन वाले विचारों से बचें;
  • एक ही विषय पर दो अलग-अलग वैचारिक खेमों के सिर्फ कुछ विचारों को लें ताकि संतुलन बना रहे।

वास्तव में ये कुछ ऐसे निर्देश हैं जिनका निरन्तर पालन करने से न सिर्फ समझ का दायरा विस्तृत होता है वरन् परीक्षा में बेहतर परिणाम भी मिलते हैं। उदाहरण के लिए नए कृषि कानून, न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा कृषि क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं पर इतने संपादकीय लेख उपलब्ध हैं, जिनसे वैचारिक उलझन हमेशा बनी रहती है। इनमें संतुलन बनाना बेहद आवश्यक है ताकि सामान्य अध्ययन के साथ निबन्ध व साक्षात्कार के स्तर पर भी इस संतुलित ज्ञान का प्रयोग किया जा सके।

निबंध और वास्तविकता

एक अन्य महत्वपूर्ण प्रसंग समाज की वास्तविकता और प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्नों की प्रवृत्ति को लेकर है। भारत के एक सामान्य नागरिक का अनुभव देश के पुलिस प्रशासन, न्यायपालिका एवं सरकारी विभागों के प्रति कैसा है, यह किसी से छुपा नहीं है। ज्यादातर नागरिकों का उत्तर नकारात्मक प्रवृत्ति का ही मिलेगा। उसी तरह भ्रष्टाचार-कालाधन, विदेशी निवेश, भारत-चीन विवाद, भारत-पाक संबंध, राज्यपालों की षडयंत्रकारी भूमिका, गरीबी का मापन, बेरोजगारी दूर करने के उपाय, विश्व व्यापार संगठन व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की शर्तें, संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका जैसे दर्जनों विषयों पर लेख, विचार व तथ्य सामने आते रहते हैं।

प्रशासनिक सेवा की तैयारी में लगे एक परीक्षार्थी का सामना पुस्तकीय तथ्यों के अध्ययन करने के पश्चात समाज की वास्तविकता से होता है। कुछ परीक्षार्थी जो महज पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित होते हैं उनका चयन अंतिम रूप से नहीं हो पाता; होता भी है तो इसमें लंबा समय लग जाता है। कुछ परीक्षार्थी जिनका सामाजिक ज्ञान अन्य से बेहतर होता है, वे सामाजिक घटनाओं के प्रति सजग होते हैं किन्तु जैसे-जैसे उन्हें समाज का सच पता चलता है, वास्तविक कारण सामने आते है, वे अपने इन अनुभवजन्य ज्ञान और प्रशासनिक अधिकारी की आवश्यकता में संतुलन नहीं बना पाते, परिणामस्वरूप वे अपने नकारात्मक अनुभवों को लिख आते हैं। अपने अनुभवजन्य ‘सच’ को लिखने की यह प्रवृत्ति सामान्य अध्ययन के साथ निबंध के अतिरिक्त इंटरव्यू में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देते समय भी प्रकट होती है।

उदाहरण के लिए इस देश में भ्रष्टाचार सरकारी विभाग का एक प्रमुख गुण है। पिछले कई वर्षों से अनेक सरकारें इसे नियंत्रित करने की सिर्फ घोषणा ही करती रही हैं। सीबीआई व सीवीसी जैसी संस्थाएं महज मुखौटा बनी हुई हैं। नियंत्रक व महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट की मानें तो केन्द्र व राज्य स्तर पर 2014 तक 500 बड़े व 5000 छोटे घोटाले हो चुके हैं, किन्तु इनमें 1 प्रतिशत लोगों को भी सजा नहीं हो पाई है। न्यायालयी भ्रष्टाचार के संदर्भ में देखें तो इस देश की ज्यादातर अदालतों में निर्णय भ्रष्टाचार से प्रभावित हैं। एक सामान्य नागरिक के लिए अदालती क्रियाकलाप चक्रव्यूह की तरह हैं जो उसे टार्चर करते रहते हैं।

पड़ोसी देशों के साथ बनते बिगड़ते संबंधों की सच्चाई पर गौर करें तो हम पाते हैं कि भारत-चीन विवाद में चीन का पलड़ा अभी भी भारी है। 14देशों के साथ उसकी सीमा लगती है, सभी के साथ उसका विवाद है। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट व वैश्विक लेखकों की मानें तो चीन भारत से 10 वर्ष आगे है, उसके घरेलू उत्पाद भारतीय उद्योगों को तबाह कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त भारत-पाक संबंधों में विश्लेषक यही मानते हैं कि अगले 50 वर्षों तक फिलहाल सुधार हो ही नहीं सकता; पाकिस्तान का जन्म ही भारत विरोध पर हुआ है और यह अंत तक जारी रहेगा।

राज्य में राज्यपालों की भूमिका पर ध्यान दें तो हम देखते हैं कि राज्यपालों के संबंध में न जाने कितनी कमेटियों ने अपनी रिपोर्ट दी, सुधार की पहल की, किन्तु अभी भी उनकी षडयंत्रकारी भूमिका ही सामने आती रही है; पांडिचेरी (फरवरी 2021) का उदाहरण सामने है। इसी तरह से गरीबी और बेरोजगारी ही समस्या भी आर्थिक वृद्धि की कड़वी सच्चाई बयां करती हैं। वैश्विक संगठनों में संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं महज अमरीका जैसे देशों के हाथों की कठपुतलियां हैं, वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका सालों से संदेह के घेरे में है।

कुल मिलाकर देखें तो मामला भारत का हो या विश्व का, कुछ चुनिंदा लोग, संस्थाएं, संगठन ही इन सभी पर कब्जा किए हुए हैं और अपने अनुसार सत्ता चला रहे है। इन्हीं सब सामाजिक वास्तविकताओं से सिविल सेवा की तैयारी कर रहे परीक्षार्थी रूबरू होते हैं, परिणामस्वरूप यही सच उनके लेखन में भी प्रकट होने लगता है। उदाहरण के लिए परीक्षार्थियों को लेखन में कुछ विशेष दृष्टिकोण व भाषा शैली का प्रयोग करना चाहिए जैसे-

  • भ्रष्टाचार व कालाधन भारतीय अर्थव्यवस्था की एक विशेष समस्या है, जिन पर उचित नियंत्रण करने की आवश्यकता है;
  • भारत-चीन संबंधों को विश्लेषित करने में सावधानी बरतने की आवश्यकता है, क्योंकि चीन का विवाद लगभग सभी देशों से है;
  • वैश्विक संगठनों में कुछ विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभाव देखा जा रहा है, जिनका दृष्टिकोण विकासशील देशों के प्रति भेदभावपूर्ण वाला है।

ऐसी संतुलित भाषा शैली का प्रयोग बहुत कम परीक्षार्थी कर पाते हैं। समाज व देश की समस्या कहें या सच्चाई, ये पहले भी थीं, अभी भी हैं और आगे भी रहेंगी। इनमें परिवर्तन धीरे-धीरे होता है। इस परिस्थिति में एक प्रशासनिक अधिकारी की तैयारी में लगे परीक्षार्थी से उम्मीद की जाती है कि वे व्यावहारिक ज्ञान रखें, वास्तविकता समझें तथा सच्चाई जानने के बाद भी उनकों संतुलित दृष्टि से प्रस्तुत करें; साथ ही हमेशा सुधार की उम्मीद रखें। इन विशेष प्रशासनिक गुणों वाली प्रवृतियों का विकास एकाएक नहीं हो सकता। हर घटना, प्रसंग पर क्या पढ़ना है और क्या नहीं पढ़ना है, से ज्यादा आवश्यक है कि क्या लिखना है और क्या नहीं लिखना है।

ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं जिनमें देखा गया है कि एक सामान्य विद्यार्थी भी उच्च रैंक प्राप्त कर लेता है वहीं बहुत मेधावी विद्यार्थी अंतिम रूप से भी चयनित नहीं हो पाते। इस प्रवृत्ति का शिकार हिन्दी भाषी राज्यों के परीक्षार्थी सबसे ज्यादा रहे हैं। यह तब होता है जब उत्तर लिखते समय वैचारिक जंजाल उन्हें उलझा कर रख देता है; किन्तु सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल जैसी पत्रिकाएं उनको एक दृष्टिकोण देती हैं तथा किसी संकीर्ण दृष्टिकोण को अपनाने से बचाती हैं। शेष वे किसी कैरियर कंसल्टेंट की सहायता से निरन्तर अभ्यास कर अपने इस भटकाव को रोक कर स्वयं को संतुलित कर सकते हैं। समाज की वास्तविकता व प्रशासनिक सेवा की परीक्षाओं में लिखे जाने वाले निबंध दो अलग-अलग कड़ी हैं; इनमें सामंजस्य व संतुलन आवश्यक है।

निबंध के विषय क्या हो सकते हैं?

एक अन्य महत्वपूर्ण प्रसंग है कि निबंध के विषय क्या-क्या हो सकते हैं तथा वर्तमान में सिविल सेवा की तैयारी में लगे परीक्षार्थी किन-किन विषयों पर अपना ध्यान केंद्रित करें। इस पर स्वयं को फोकस करने के लिए सबसे बेहतर विकल्प है कि देश जिन परिस्थितियों से गुजर रहा है उसका अवलोकन करते रहें; उनसे जुड़े डेटा, फैक्ट, फिगर, एनालिसिस, रिपोर्ट का अध्ययन करते रहें। उदाहरण के लिए संविधान व राजव्यवस्था से जुड़े विषयों में नागरिकता, निजता रूपी मूल अधिकार, अल्पसंख्यकवाद, धर्म आधारित शिक्षा, धर्मान्तरण, समान नागरिक संहिता, मीडिया सेंसरशिप, पूर्वाग्रहपूर्ण मीडिया, केन्द्र-राज्य संबंध, न्यायिक सक्रियता, जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति, पंथनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद, भारतीय समाज की विविधता जैसे विषयों पर नए-नए प्रकट होते स्वरूप, पड़ोसी देशों के साथ बदलते संबंध, आंतरिक सुरक्षा को चुनौती देने वाले नए-नए तत्व जैसे अनेकों प्रसंग हैं जिन पर एक संतुलित समझ या नजरिया बनाने की आवश्यकता है। पिछले दो दशकों के निबंध के प्रश्न पत्रों को उठाकर देखें तो पता चलता है कि पूछे गए प्रसंग का संबंध कहीं न कहीं देश की मौजूदा व्यावहारिक परिस्थितयों से जुड़ा रहा है, जिनको अध्ययन की सुविधा के लिए संविधान व राजव्यवस्था, आर्थिक विकास, पर्यावरण या आंतरिक सुरक्षा जैसे विषयगत शीर्षकों से जोड़ कर बताया जाता है। यह देखने में सामान्य लगता है किन्तु इतना सामान्य होता नहीं है।

निबंध के प्रथम खंड के लिए सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल में प्रकाशित विविध प्रसंगों की व्याख्या का नियमित अध्ययन बेहद प्रभावकारी है, जिसमें विषय, विषय के प्रस्तुतीकरण तथा उनकी व्याख्या बेहद सहज, सरल शब्दों में की जाती है, जिनका नियमित अध्ययन परीक्षा में हमेशा उत्कृष्ट अंक प्राप्ति का एक माध्यम बन कर प्रकट होता रहा है। वहीं दूसरे खंड के लिए निरन्तर अभ्यास करने की आवश्यकता है। विषय का संतुलित, सारगर्भित, उचित व पूर्वाग्रह से मुक्त होना तथा महत्वपूर्ण डेटा, फैक्ट-फिगर, विश्लेषण एवं रिपोर्ट के माध्यम से किसी प्रसंग की व्याख्या आधारित लेखन ही मौलिक प्रतिभा की खोज करने वाले संघ लोक सेवा आयोग का पहला पैमाना है। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में एक सामान्य समझ वाले व्यावहारिक, प्रशासनिक व्यक्ति की खोज की जाती है जो वर्तमान के सिस्टम की विशेषताओं व खामियों से परिचित हो, उसे समझे और कुछ सुधारों के साथ देश के सिस्टम को चलाए; न कि किसी खोजी रिपोर्टर की तरह किसी मुद्दे को परत दर परत उधेड़े या सच को उजागर करे।

ये ही कुछ विशेष प्रसंग हैं जो निबंध परिचर्चा में शामिल हैं तथा इन पर अमल करके सफलता सुनिश्चित की जा सकती है।


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