सत्त्रिया नृत्य
सत्त्रिया नृत्य के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- सत्त्रिया नृत्य का परिचय असम के महान वैष्णव संत और सुधारक महापुरुष संस्कारदेव ने 15 वीं शताब्दी में किया था।
- इसे संगीत नाटक अकादमी द्वारा वर्ष 2001 में शास्त्रीय नृत्य का दर्जा दिया गया था।
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- महान वैष्णव संत और असम के सुधारक, महापुरुष संस्कार देव ने 15वीं शताब्दी ईसा पूर्व में सत्त्रिया नृत्य को वैष्णव विश्वास के प्रचार का एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में प्रयोग किया था।
- सत्त्रिया नृत्य परंपरा हस्त्मुद्रों, पाद,संगीत आदि के संबंध में सिद्धांतों को कड़ाई से निर्धारित करती है।
- इस परंपरा की दो अलग-अलग धाराएँ हैं - पहली धारा, गायन-भयनार नाच से शुरू होकर खर्मनार नाच तक, दूसरी धारा स्वंतंत्र धारा है जैसे चली, राजगढ़िया चाली, झुमूरा, नाडु भंगी आदि ।
- सत्त्रिया के एकांकी नाटकों को अंकिया नट कहा जाता है, जो सौंदर्य और धार्मिकता कोगीत, नृत्य और नाटक के माध्यम से प्रकट करने से सम्बंधित है। नाटक आमतौर पर मठ- मंदिरों (सत्तार) के नृत्य सामुदायिक हॉल (नामघर) में किए जाते हैं। खेले जाने वाले विषय कृष्ण और राधा से संबंधित हैं, कभी-कभी अन्य विष्णु अवतार जैसे राम और सीता।
- नृत्य के साथ संगीत रचनाएँ होती हैं, जिन्हें बोरगीत कहा जाता है यह शास्त्रीय रागों पर आधारित होता हैं।
- इसके प्रदर्शन के लिए खोल (ड्रम), ताल (झांझ) और बांसुरी जैसे वाद्य उपकरणों का प्रोयोग किया जाता हैं।
- 15 नवंबर 2000 को, संगीत नाटक अकादमी ने सत्त्रियानृत्य को भारत के शास्त्रीय नृत्य के रूपों में से एक के रूप में मान्यता प्रदान की।