राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट
- 25 Nov 2019
- हाल ही में, सरकार ने पांच औद्योगिक गलियारे परियोजनाओं के विकास को मंजूरी दीजो राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (National Industrial Corridor Development and Implementation Trust - NICDIT) के माध्यम से कार्यान्वित किये जायेंगे।
- सरकार ने दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा परियोजना कार्यान्वयन ट्रस्ट फंड (DMIC-PITF) के विस्तार को मंजूरी दे दी और इसे राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (NICDIT) के रूप में नामित किया।
राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (NICDIT)
- NICDIT की स्थापना 2017 में की गयी थी | यह औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (DIPP) के प्रशासनिक नियंत्रण के तहतदेश के सभी पांच औद्योगिक गलियारों के समन्वित और एकीकृत विकास के लिए सर्वोच्च निकाय है।
कार्य
- यह विकास परियोजनओं से सम्बंधित गतिविधियों का मूल्यांकन, अनुमोदन तथामंजूरी प्रदान करने से सम्बंधित है।
- यह विकास परियोजनाओं को भारत सरकार के कोषों के साथ-साथ संस्थागत कोषोंकी उपलब्धता सुनिश्चित करता है जिससे किव्यापक राष्ट्रीय हित में विभिन्न औद्योगिक गलियारों और शहर के विकास से सम्बंधित परियोजनाओं का विकास एवं कार्यान्वयन हो सके।
लाभ
- औद्योगिक गलियारों के विकास से अनुभव को साझा करने का मंच उपलब्ध करता है ।
- समग्र योजना और विकास दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है |
- ऐसी परियोजनाओं के योजना बनाने, प्रारूपके विकास और वित्त पोषण जैसे क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देता है |
- देश में विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ाने, विनिर्माण और सेवा उद्योग क्षेत्रों में निवेश को आकर्षित करने में सहायक है ।
पांच औद्योगिक गलियारे
- भारत सरकार द्वारा पांच औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं को प्रारंभ किया गया है। ये गलियारे औद्योगिकीकरण और नियोजित शहरीकरण को गति प्रदान करने है एवं समावेशी विकास को ध्यान में रखते हुए पूरे भारत में फैले हुए हैं।
उद्देश्य
- जीडीपी में विनिर्माण की कुल हिस्सेदारी में वृद्धि, अच्छा प्रदर्शन करने वाले क्षेत्रों की मजबूती का लाभ उठाना।
- समग्र आर्थिक समृद्धि को बढ़ाने के लिए उच्च तकनीक और उच्च मूल्य संवर्धित क्षेत्रों को बढ़ावा देना।
- वैश्विक उत्पादन नेटवर्क और वैश्विक मूल्य श्रृंखला (GVC) में व्यापार प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना।
- लैंगिक समानता और एमएसएमई क्षमताओंके माध्यम से समावेशन को विकसित करना।
क्र.सं. |
औद्योगिक गलियारा |
राज्यों |
1 |
दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC) |
उत्तर प्रदेश, हरियाणा,राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र |
2 |
अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारा (AKIC) |
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल |
3 |
चेन्नई बेंगलुरु इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (CBIC) |
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल |
4 |
विजाग चेन्नई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (VCIC) के साथ ईस्ट कोस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर (ECEC) चरण -1 |
पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु |
5 |
बेंगलुरु मुंबई औद्योगिक गलियारा (BMIC) |
कर्नाटक, महाराष्ट्र |
औद्योगिक गलियारों की वर्तमान स्थिति
दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC)
- सभी चिन्हित नोड्स/शहरों के लिए विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी)का गठनकर लिया गया हैं, भूमि निपटान नीतियों को अंतिम रूप दे कर निम्नलिखित स्थानों पर निवेशकों को भूमि आवंटन की प्रक्रिया शुरू की गई है:
- धोलेरा गुजरात में विशेष निवेश क्षेत्र
- महाराष्ट्र में शेंद्रा-बिडकिन औद्योगिक क्षेत्र
- उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप परियोजना
- मध्य प्रदेश में उज्जैन के पास एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप परियोजना ‘विक्रमउद्योगपुरी’
अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारा (AKIC)
- AKIC कॉरिडोर का समग्र ख़ाका तैयार किया जा चुका है और निम्नलिखित राज्यों में एकीकृत विनिर्माण क्लस्टर (IMC) विकास के लिए साइट की पहचान की जा चुकी है:
- पंजाब (राजपुरा-पटियाला)
- उत्तराखंड (प्राग-खुर्पिया फार्म)
- उत्तर प्रदेश (भाऊपुर)
- बिहार (गम्हरिया)
- झारखंड (बरही)
- पश्चिम बंगाल (रघुनाथपुर)
- हरियाणा (साहा)
चेन्नई बेंगलुरु इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (CBIC)
- गलियारे के लिए समग्रपरिप्रेक्ष्य योजना पूरी हो चुकी है और विकास के लिए तीन नोड्स की पहचान की गई है:
- कृष्णापटनम (आंध्र प्रदेश)
- तुमकुरु (कर्नाटक)
- पोंनेरी (तमिलनाडु)
- आंध्र प्रदेश में कृष्णापटनम नोड में परियोजना के निष्पादन के लिए एक एसपीवी को निगमित किया जा चुका है। विस्तृत मास्टर प्लानिंग और प्रारंभिक इंजीनियरिंग गतिविधियों का अंतिम प्रारूप तैयार कर किया गया जिसे NICDIT ने 30 अगस्त, 2019 को हुई बैठक में परियोजना प्रस्ताव पर विचार कर और आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) से अंतिम अनुमोदन के लिए भेज दी।
विजाग चेन्नई औद्योगिक गलियारा (VCIC)
- आंध्र प्रदेश सरकार (GoAP) 631 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ADB ऋण के साथ VCIC परियोजना को लागू कर रही है। एशियाई विकास बैंक (ADB) ने VCIC के लिए प्रारंभिक परियोजना विकास गतिविधियों को अंजाम दिया है।
- ADB ने विकास के लिए विशाखापत्तनम, चित्तूर, दोनाकोंडा और मछलीपट्टनम नामक चार नोड्स की पहचान की है। इनमें से विशाखापत्तनम और चित्तूर को आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिकता दी गई है।
बेंगलुरु मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (BMIC)
- कर्नाटक में समग्र BMEC परियोजना और धारवाड़ नोड के लिए परिप्रेक्ष्य योजना पूरी कर ली गई है और इसके कार्यान्वयन के लिए धारवाड़ नोड (कर्नाटक) को प्राथमिकता नोड के रूप में पहचाना की गयी है।
- महाराष्ट्र सरकार भूमि और पानी की समस्याओं के कारण नोड्स के गठन को अंतिम रूप नहीं दे पाई है।
औद्योगिक गलियारों की महत्ता
- प्रगति के पहिये: औद्योगिक गलियारे अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की अन्योन्याश्रयता को मान्यता देते हैं और उद्योग और बुनियादी ढांचे का प्रभावी एकीकरण करते हैं जिससे समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास होता है। औद्योगिक गलियारे अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे बने होते है; जैसे उच्च गति परिवहन (रेल/सड़क) नेटवर्क, उन्नत कार्गो हैंडलिंग उपकरण के साथ बंदरगाह, आधुनिक हवाई अड्डों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों/औद्योगिक क्षेत्रों, लॉजिस्टिक पार्क आदि | ये उद्योग की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से बनाये गए होते है।
- विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा: इन गलियारों में से प्रत्येक में विनिर्माण एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि होगा और इन परियोजनाओं कासमग्र जीडीपी में, विनिर्माण का हिस्से को बढ़ाने में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कॉरिडोर के किनारे स्मार्ट औद्योगिक शहर विकसित किए जा रहे हैंजो विनिर्माण और नियोजित शहरीकरण को बढ़ावा देगा।
- बड़े पैमाने पर रोजगार: औद्योगिक गलियारा औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के इरादे से बनाये जा रहे है | यह विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार की नौकरियों) करने में सक्षम है।
- राज्यों की आर्थिक वृद्धि: यह परियोजना रिवर्स माइग्रेशन को बढ़ावा देगा |राज्य के बाहर कार्य कर रहे युवा श्रम शक्ति (कुशल एवं अकुशल) को अपने राज्य में कार्य करने के लिए आकर्षित करेगा| इस परियोजना से राज्यों की समग्र आर्थिक वृद्धि और इसकी रोजगार सृजन को स्थायी मोड पर लाया जा सकता है।
- लॉजिस्टिक लागत को कम करना: औद्योगिक गलियारा मल्टी-मोडल परिवहन सेवा उपलब्ध कराता है जो मुख्य धमनी के रूप में राज्यों से होकर गुजरेगी। इस मुख्य धमनी के दोनों किनारों पर स्थित औद्योगिक और राष्ट्रीय विनिर्माण और निवेश क्षेत्र (NMIZ) से माल को रेल और सड़क फीडर लिंक के माध्यम से औद्योगिक गलियारे में लाया जाएगा जो लास्ट मील कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। इससे लॉजिस्टिक्स की लागत कम होगी और कंपनियां ‘कोर कम्पटीशन’ पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
- मेक इन इंडिया का प्रोत्साहन: मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों को देश के आगामी औद्योगिक गलियारों को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश आकर्षित होंगे और देश की आर्थिक वृद्धि होगी।
- सामाजिक एकता में वृद्धि: गलियारे लोगों को घरों के करीब रोजगार के अवसर प्रदान करते हैं और उन्हें दूर-दूर के स्थानों पर नहीं जाना पड़ता है, जिससे एक संस्था के रूप में परिवार का संरक्षण होता है। अंततः इससेदेश में सामाजिक एकीकरण भी बढ़ेगा।
औद्योगिक गलियारों के विकास को चुनौती
भूमि अधिग्रहण
- भूमि अधिग्रहण राज्य का विषय है, और गलियारे में भूमि अधिग्रहण एक प्रमुख मुद्दा रहा हैं, जिससे परियोजना कार्यान्वयन में देरी हुई है। चूंकि औद्योगिक गलियारा राज्य के बीच से होकर गुजरेगी, इसलिए कानूनी बाधाओं और मुआवजे की राशि के विवाद के कारण भूमि का अधिग्रहण धीमा हो गया है।
- औद्योगिक गलियारे में बड़े पैमाने पर निवेश, मानव विस्थापन और उपजाऊ कृषि भूमि के औधोगिक कार्य में विपथन जैसे समस्याओं को जन्म देगा |इससे देश में खाद्य सुरक्षा और अन्य विभिन्न सामाजिक समस्याओं के लिए गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा।
परियोजना अनुमोदन में देरी
- भारत में किसी भी औद्योगिक गतिविधि के लिए अवधारणा से लेकर आयोग तक कई मंजूरी की आवश्यकता होती है और औद्योगिक गलियारा इसके अपवाद नहीं है।
नीतिगत अड़चनें
- कंबोडिया, थाईलैंड और वियतनाम जैसे पड़ोसी देशों की तुलना में भारत में बहुत अधिक कॉर्पोरेट कर की दर है। यह प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में भारत को एक अनाकर्षक निवेश गंतव्य बनाता है।
- इसके अलावा, भारत में आयात शुल्क की दर अधिकहै, जो वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं को स्थापित करने के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति बनती है।
आगे की राह
- औद्योगिक गलियारों की रणनीति एक स्वस्थ औद्योगिक आधार विकसित करने के लिए जरुरी है, जिससे उत्कृष्ट बुनियादी ढांचे का विकास और विनिर्माण की स्वाभाविक वृद्धि होगी। हालाँकि, यह सब केवल आलंकारिक ही रहेगा अगर औद्योगिक गलियारे की परियोजनाओं के मुद्दों का समाधान नहीं किया जाता है।
- इसके लिए सभी सरकारी विभागों और हितधारकों को समग्र दृष्टिको के साथ भागीदारी की आवश्यकता है जो जमीन अधिगृहित किये गए किसानों ,उत्पादनके लिए इकाइयां स्थापित करने वाले निर्माता,परिवहन ऑपरेटरों आदि को शामिल करता हो ।