मिजोरम में वन अधिकार अधिनियम निरस्त
- 21 Nov 2019
- 19 नवंबर, 2019 कोमिजोरम सरकार ने अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकार की मान्यता) अधिनियम, 2006 (FRA) के कार्यान्वयन को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया।
- मिजोरम ने 29 अक्टूबर, 2009 को अधिनियम को लागू करने का प्रस्ताव पारित किया था। यह अधिनियम राज्य में 21 दिसंबर, 2009 से लागू हुआ है।
- अनुच्छेद 371 (जी) के तहत प्रदान किये गए विशेष प्रावधानों का उपयोग करते हुए, राज्य सरकार ने एफआरए को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया।
निरस्त करने का कारण
- मिजोरम सरकार ने आरोप लगाया कि एफआरए,अनुच्छेद 371 (जी) के तहत राज्य कोप्राप्त विशेष दर्जा का सीधे अतिक्रमण करता है |
- राज्य सरकार के अनुसार,2014-15 से केंद्र सरकार FRA के कार्यान्वयन के लिए धन प्रदान नहीं कर रही है। 8 अप्रैल, 2015 को आयोजित अपनी परियोजना मूल्यांकन समिति की बैठक में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने राज्य में अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए राज्य के 10 लाख रुपये के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था जिसके बाद राज्य को इस मद में सहायता नहीं मिली है।
अनुच्छेद 371 (जी)
(a) संसद द्वारा बनाया गयाकोई भी नियम मिजोरम राज्य पर तब तक लागू नहीं होगा जब तक की राज्य की विधानसभा ऐसा करने का निर्णय न करे - i.मिज़ो की धार्मिक या सामाजिक प्रथाएं ii.मिजो प्रथागत कानून और प्रक्रिया iii.मिजो प्रथागत कानून के अनुसार निर्णय लेने वाले नागरिक और आपराधिक न्याय का प्रशासन iv.भूमि का स्वामित्व और हस्तांतरण | (b) मिजोरम राज्य की विधान सभा में चालीस से कम सदस्य नहीं होंगे | |
- भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा 2017 की राज्य वन रिपोर्ट के अनुसार, मिज़ोरम में कुल 5,641 वर्ग किलोमीटर वन भूमि का लगभग 20 प्रतिशत अवर्गीकृत वन के रूप में है जो स्वायत्त ज़िला परिषदों के अधीन है।(नोट:राज्य में वनों का एक बड़ा हिस्सालाई, मारा और चकमा स्वायत्त ज़िला परिषदों के स्वामित्व में है।)
- वनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा जो पारंपरिक रूप से नियंत्रित और प्रबंधित समुदाय द्वारा प्रबंधित होते हैं, वे अवर्गीकृत वन की श्रेणी में आते हैं।
- सभी उत्तर पूर्वी राज्यों में मिज़ोरम में अवर्गीकृत वन का क्षेत्र सबसे कम है, जिसमें कहा गया है कि एफआरए कार्यान्वयन की क्षमता भी राज्य में सबसे अधिक है।
प्रभाव
- मिज़ोरम राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा वनाच्छादित है तथा उस भूमि पर विभिन्न समुदायों का स्वामित्त्व है,एफआरए को निरस्त करने का एक अर्थ वन भूमि को वन विभागों के पास रखना है जिसे बाद में किसी अन्य उद्देश्य के लिए प्रयोग किया सकता है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, हाशिए पर पड़ेसामाजिक-आर्थिक वर्ग का वन एवं वन-उत्पादों पर अधिकार को मान्यता देता है |
- इसके साथ ही यह अधिनियम उपरोक्त अधिकारएवं पर्यावरण की रक्षाके बीच संतुलन को भी स्थापित करता है |
एफआरए के तहत प्रदान किए गए विशेष अधिकारव्यक्तिगत वन अधिकार
सामुदायिक वन अधिकार
सामुदायिक वन संसाधन अधिकार
|
अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया
- वन अधिकार समिति से सूचना प्राप्त होने पर, वन और राजस्व विभागों के अधिकारी दावों के सत्यापन के दौरान मौजूद रहेंगे और उनके पदनाम, तिथि और टिप्पणियों के साथ हस्ताक्षर करेंगे।
- वन या राजस्व विभागों के प्रतिनिधि के फील्ड सत्यापन के दौरान अनुपस्थितहोने के आधार पर दर्ज आपत्ति की स्थिति मेंग्राम सभा द्वारा फिर से सत्यापन किया जाएगाऔर यदि प्रतिनिधि फिर से सत्यापन प्रक्रिया में भाग लेने में विफल रहते हैं, तो फील्ड सत्यापन पर ग्राम सभा का निर्णय अंतिम होगा।
एफआरए का महत्व
अधिनियम सुरक्षित करता है -
- सामुदायिक अधिकार या उनके व्यक्तिगत अधिकारों के अलावा समुदायों केसंसाधनों पर सामान्य संपत्ति अधिकार को,
- सभी वन गांवों, पुरानी बस्ती, गैर-सर्वेक्षण किए गए गांवों और जंगलों के अन्य गांवों को विवादित भूमि पर निपटानऔरअधिकार को मान्यता प्रदान करता है | साथ ही ऐसे गांवों को राजस्व गांवों में बदलने का अधिकार,
- किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की रक्षा, पुनर्जनन या संरक्षण या प्रबंधन करने का अधिकार, जिसे समुदाय पारंपरिक रूप से स्थायी उपयोग के लिए संरक्षित करता रहा है।
- जैव विविधता और सांस्कृतिक विविधता से संबंधित बौद्धिक संपदा और पारंपरिक ज्ञान का अधिकार,
- विस्थापित समुदायों के अधिकार,
- विकासात्मक गतिविधियों पर अधिकार |