भारतीय रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण: भारत के वैश्विक दर्जे की प्रगति की दिशा में एक कदम - महेंद्र चिलकोटी
मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण एक नीतिगत मुद्दा है तथा यह इसे जारी करने वाले देश के व्यापक आर्थिक उद्देश्यों पर निर्भर करता है। इसमें पूंजी खाता उदारीकरण की सीमा जैसे विभिन्न नीतिगत मुद्दे शामिल हैं। व्यवहार में उदारीकरण के दृष्टिकोण में सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। वृहत् आर्थिक असंतुलन की स्थिति में पूंजी खाता उदारीकरण से उतना ही नुकसान होने की संभावना है जितना लाभ होने की। इसलिए पूंजी खाता उदारीकरण के प्रभाव को निर्धारित करने में सुधारों की एक व्यापक शृंखला इस संबंध में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
हाल ही में मिस्र के काहिरा में आयोजित 17वें भारतीय विदेशी ....
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