भगवान महावीर की शिक्षाएं: वर्तमान में प्रासंगिकता
महावीर, जिन्हें वर्धमान (Vardhamana) के नाम से भी जाना जाता है, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। महावीर ने लगभग 30 वर्ष की आयु में तपस्वी बन गए। महावीर ने सम्यक ज्ञान, सम्यक विश्वास और सम्यक आचरण (जैन धर्म के त्रि-रत्न) के माध्यम से कैवल्य (ज्ञान) की प्राप्ति की।
- सत्य (सच बोलना), अहिंसा (हिंसा न करना), अस्तेय (चोरी न करना), अपरिग्रह (धन का संग्रह न करना) और ब्रह्मचर्य (इंद्रिय निग्रह करना) की शिक्षा जन सामान्य को प्रदान की। इनके द्वारा प्रदान की गई शिक्षाएं आज समाज के विभिन्न समस्याओं के समाधान प्रस्तुत करते हैं।
इनके द्वारा प्रदान की गई शिक्षाओं ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 गांधीवादी नैतिकता एवं इसकी प्रासंगिकता
- 2 सुशासन में पारदर्शिता का महत्व
- 3 लोक सेवा में सत्यनिष्ठा की भूमिका
- 4 सिविल सेवा में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की भूमिका
- 5 सहभागी, समावेशी एवं धारणीय कॉर्पोरेट गवर्नेंस: महत्व एवं मुद्दे
- 6 लोक सेवा में मूल्य एवं इसका महत्व
- 7 मानव जीन एडिटिंग: नैतिक मुद्दे एवं समाधान
- 8 वर्तमान वैश्विक चुनौतियों से व्युत्पन्न नैतिक मुद्दे
- 9 वर्तमान परिदृश्य में व्यावसायिक नैतिकता
- 10 पारंपरिक मूल्यों को परिवर्तित करने में सोशल मीडिया की भूमिका