वन्य जीव (संरक्षण) अधिानियम 1972

यह अधिनियम देश के वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने एवं अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से लागू किया गया था।

  • इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार, वन्यजीव संरक्षण निदेशक और उसके अधीनस्थ सहायक निदेशकों तथा अन्य अधिकारियों की नियुक्ति करती है।
  • राज्य सरकारें ‘मुख्य वन्यजीव वार्डन’ (CWLW) की नियुक्ति करती है, जो वन्यजीव प्रभाग का प्रमुख होता है और राज्य के भीतर संरक्षित क्षेत्रों (PAs) पर पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण रखता है।
  • यह अधिनियम अनुसूची I, II, III और IV में निर्दिष्ट किसी भी जंगली जानवर के शिकार को प्रतिबंधित करता है।
  • इन अनुसूचियों के तहत सूचीबद्ध जंगली जानवर के मानव जीवन या संपत्ति के लिये खतरा बनने पर, उन्हें राज्य के ‘मुख्य वन्यजीव वार्डन’ (CWLW) से अनुमति लेने के बाद ही मारा जा सकता है।

केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर वन्य जीव की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए कई नियम तथा कानून पारित किए गए हैं। इनमें से महत्वपूर्ण हैं-

  • मद्रास वाइल्ड एलीफेंट प्रिजर्वेशन एक्ट, 1873
  • ऑल इण्डिया एलीफेंट प्रिजर्वेशन एक्ट, 1879
  • द वाइल्ड बर्ड एण्ड एनीमल्स प्रोहिबिशन एक्ट, 1912
  • बंगाल राइनोसेरस प्रिजर्वेशन एक्ट, 1932
  • असम राइनोसेरस प्रिजर्वेशन एक्ट, 1954
  • इण्डियन बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ (आइबीडब्ल्यूएल), 1952
  • वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972
  • कुल छः अनुसूचियां हैं, जो अलग-अलग तरह से वन्यजीवन को सुरक्षा प्रदान करता हैः
  • अनुसूची-1 और अनुसूची-2 - इसके द्वितीय भाग वन्यजीवन को पूरी सुरक्षा प्रदान करते हैं। इनके तहत अपराधों के लिए कड़ा दंड तय है।

अनुसूची-3 और अनुसूची-4- इसके तहत भी वन्य जानवरों को संरक्षण प्रदान किया जाता है, लेकिन इस सूची में आने वाले जानवरों और पक्षियों के शिकार पर दंड बहुत कम है।

अनुसूची-5 - इस सूची में उन जानवरों को शामिल किया गया है, जिनका शिकार हो सकता है।

छठी अनुसूचीः इसमें दुलर्भ पौधों और पेडों पर खेती और रोपण पर रोक है।

ग्लोबल टाइगर इनिशिएटिवः ग्लोबल टाइगर इनीशिएटिव (GTI) की शुरुआत वर्ष 2008 में की गई थी, जिसका उद्देश्य जंगली बाघों को विलुप्त होने से बचाना था। 2013 में स्नो लेपर्ड (Snow Leopards) को भी इस पहल में शामिल किया गया।

  • इस पहल के संस्थापक भागीदारों में विश्व बैंक, ‘ग्लोबल इनवायरमेंट फैसिलिटी’ (GEF), ‘सेव द टाइगर फंड’ तथा ‘इंटरनेशनल टाइगर गठबंधन’ (International Tiger Coalition) आदि शामिल हैं।
  • ग्लोबल टाइगर इनीशिएटिव का नेतृत्व 13 बाघ रेंज देशों (TRCs) द्वारा किया जा रहा है।

यूएनडीपी सागर कछुआ संरक्षण परियोजनाः यूएनडीपी द्वारा शुरू की गई इस परियोजना का उद्देश्य कछुओं की आबादी की घटती संख्या का उचित प्रबंधन और संरक्षण करना था।

साइट्सः साइट्स (या सीआईटीईएस) सरकारों के बीच एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो यह सुनिश्चित करती है कि वन्य प्राणियों और पौधों के नमूनों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार से उन प्रजातियों के अस्तित्व पर कोई खतरा नहीं होगा।

  • कन्वेंशन के तहत सभी देशों से यह अपेक्षित है कि वे परमिट के जरिए सभी सूचीबद्ध नमूनों के व्यापार को रेगुलेट करेंगे। इसके अलावा कन्वेंशन जीवित पशुओं के नमूनों के कब्जे को भी रेगुलेट करने का प्रयास करता है। बिल साइट्स के इन प्रावधानों को लागू करने का प्रयास करता है।

मैन एंड बायोस्फीयर कार्यक्रमः मैन एंड बायोस्फीयर कार्यक्रम की शुरूआत यूनेस्को द्वारा 1971 में की गई।

  • MAB एक अंतर सरकारी विज्ञान संबंधी कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य लोगों और पर्यावरण के बीच वैज्ञानिक आधार पर संबंधों में सुधार स्थापित करना है।
  • कार्यः MAB कार्यक्रम मानवीय एवं प्राकृतिक गतिविधियों द्वारा जैवमण्डल में होने वाले परिवर्तनों तथा उनके प्रभाव का जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में आंकलन करता है।

रेड लिस्ट की विभिन्न श्रेणियां

IUCN रेड लिस्ट में निम्नलिखित 9 श्रेणियां शामिल हैं-

  • विलुप्त (Extinct या EX): प्रजाति का कोई भी जीवित सदस्य नहीं बचा है।
  • वन-विलुप्त (Extinct in the Wild या EW): प्रजाति वनों से पूर्णतः खत्म हो चुकी है और इसके बचे हुए सदस्य केवल चिड़ियाघरों या अपने मूल निवास स्थान से अलग किसी कृत्रिम निवास स्थान पर ही जीवित है।
  • अति संकटग्रस्त (Critically Endangered या CR): प्रजाति का वनों से विलुप्त होने का घोर खतरा बना हुआ है।
  • संकटग्रस्त (Endangered या EN): प्रजाति का वनों से विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है।
  • सुभेद्य (Vulnerable या VU): प्रजाति के इसके प्राकृतिक आवास में संकटग्रस्त हो जाने की संभावना है।
  • संकटापन्न (Near Threatened या NT): प्रजाति की निकट भविष्य में संकटग्रस्त हो जाने की संभावना है।
  • संकटमुक्त (Least Concern या LC): इस प्रजाति को बहुत कम खतरा है, यह बड़ी तादाद और विस्तृत क्षेत्र में पाई जाती है।
  • आंकड़े पर्याप्त नहीं (Data Deficient या DD): प्रजाति के बारे में आंकड़ों की कमी से उसकी संरक्षण स्थिति और संकट का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
  • अनाकलित (Not Evaluated या NE): प्रजाति की संरक्षण स्थिति का आकलन अभी नहीं किया गया है।