नागा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ़ ह्यूमन राइट्स बनाम भारत संघ (1998)
न्यायालय ने माना कि अधिनियम को संविधान का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है। अफस्पा की धारा 4 और 5 के तहत प्रदत्त शक्तियां मनमानी और अनुचित नहीं हैं। इसलिए ये संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करती हैं।
हालांकि, न्यायालय ने माना कि निषेधात्मक आदेशों का उल्लंघन करने के संदेह के खिलाफ सेना के जवानों को धारा 4 के तहत न्यूनतम बल का सख्ती से पालन करना आवश्यक है। साथ ही, राज्य द्वारा हर छः महीने में अधिनियम की समीक्षा की जानी चाहिए।
अन्य निर्णय
जुलाई 2017 का निर्णयः मणिपुर में कथित गैरकानूनी मुठभेड़ में हुई हत्याओं पर न्यायालय के निर्णय ने एक महत्वपूर्ण संस्थागत कदम को रेखांकित किया।
न्यायालय ने केंद्र और सेना की आपत्तियों को अस्वीकार कर दिया और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को मुठभेड़ में हुई मौतों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल गठित करने का आदेश दिया।
जुलाई 2016 का निर्णय: न्यायालय ने सशस्त्र बलों और पुलिस को ‘अशांत’ घोषित क्षेत्रें (जहां अफस्पा लागू है) में भी फ्अत्यधिक या प्रतिक्रिया रूपी बलय् का उपयोग नहीं करने का निर्देश दिया।
वर्ष 2014 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और उच्चतम न्यायालय दोनों ने मुठभेड़ में हुई मौतों के मामले में राज्य द्वारा पालन किए जाने वाले दिशा-निर्देश निर्धारित किए थे।