भारत की फि़लिस्तीन नीति

प्रारंभिक चरणः भारत ने वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन में इजरायल के निर्माण के विरुद्ध मतदान किया था।

  • शीत युद्ध के दौरान इजरायली अधिग्रहण के विरुद्ध भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानदंडों के अनुरूप फिलिस्तीन को अपना नैतिक और कानूनी समर्थन प्रदान किया था, साथ ही वह फिलिस्तीनी स्वतंत्रता का दृढ समर्थक बना रहा था।
  • 1967 में छः दिवसीय युद्ध के पश्चात इजरायल ने फिलिस्तीन की लगभग 78% क्षेत्रें पर अधिकार कर लिया था, तब भारत ने सीमा पर आधारित एक स्वतंत्र संप्रभु फिलिस्तीन राज्य के निर्माण का समर्थन किया था।
  • भारत ने पूर्वी येरुशलम को उसकी राजधानी के रूप में स्वीकार किया था तथा भारत ने दो राज्य की समाधान नीति का समर्थन करता है।
  • वर्ष 1991 के मैड्रिड सम्मलेन और सोवियत संघ के विघटन तथा वैश्विक व्यवस्था में परिवर्तन के उपरान्त भारत ने वर्ष 1992 में इजरायल के साथ पूर्ण राजनयिक सम्बन्ध की स्थापना की, परन्तु इसके बाजजूद वह फिलिस्तीन का समर्थक बना रहा।

वर्तमान चरणः वर्ष 2017 में भारत की नीति में कुछ परिवर्तन हुआ है। इस दौरान भारत ने पूर्वी येरुशलम और वर्ष 1967 की सीमा का संदर्भ देना छोड़ दिया।

  • वर्ष 2018 में भारत ने डी-हाईफनेशन (Dehyphenation) की नीति को अपनाया है। यह नीति एक संतुलन पर आधारित नीति है। इसके तहत भारत पहले चार दशकों के लिये स्पष्ट रूप से फिलिस्तीन समर्थक होने से लेकर बाद के तीन दशक में इजरायल के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना वाली रही है; जिसमें भारत स्थिति की मांग के अनुसार एक तरफ से दूसरी तरफ जा रहा है।
  • इस नीति के तहत इजरायल के साथ भारत के स्वतंत्र सम्बन्ध हैं। साथ ही भारत को अपने हितों के आधार पर इन संबंधों को बनाये रखने का अधिकार प्राप्त है तथा वह फिलिस्तीनियों के साथ भारत के सम्बन्धों से भिन्न होंगे।