निजता का मुद्दा और भारत के निगरानी कानून

वर्ष, 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में निजता को व्यक्ति का मौलिक अधिकार (Fundamental Right) माना था। तब डेटा की सुरक्षा और प्राइवेसी के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिये नौ जजों की संविधान पीठ ने सामूहिक सहमति से फैसला दिया था।

  • न्यायालय ने कहा था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता यानी निजता का अधिकार है। जस्टिस के. एस. पुत्तुस्वामी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2017 के अपने निर्णय में निजता को मौलिक अधिकार तो माना, लेकिन यह भी कहा कि यह अधिकार निरंकुश और असीमित नहीं है।

आईटी एक्ट की धारा 66A

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, (Information Technology Act), 2000 की धारा 66। के इस्तेमाल पर केंद्र को नोटिस जारी किया है, जिसे कई वर्ष पहले खत्म कर दिया गया था।

  • वर्ष 2015 में न्यायालय ने श्रेया सिंघल मामले में दिये गए अपने निर्णय में आईटी एक्ट के प्रावधानों को असंवैधानिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया।
  • आईटी अधिनियम, 2000 इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से लेन-देन को कानूनी मान्यता प्रदान करता है, जिसे ई-कॉमर्स (e-commerce) भी कहा जाता है। यह अधिनियम साइबर अपराध के विभिन्न रूपों पर जुर्माना/दंड भी आरोपित करता है।
  • धारा 66A ने पुलिस को इस संदर्भ में गिरफ्तारी करने का अधिकार दिया कि पुलिसकर्मी अपने विवेक से ‘आक्रामक’ या ‘खतरनाक’ या बाधा, असुविधा आदि को परिभाषित कर सकते हैं।
  • धारा 66A मे कंप्यूटर या किसी अन्य संचार उपकरण जैसे- मोबाइल फोन या टैबलेट के माध्यम से संदेश भेजने पर सजा को निर्धारित किया है, जिसमें दोषी को अधिकतम तीन वर्ष की जेल हो सकती है।