यह राज्य सरकार के निलंबन और उस राज्य के प्रत्यक्ष तौर पर केंद्र सरकार के नियंत्रण में आने की स्थिति को संदर्भित करता है। इसे ‘राज्य आपातकाल’ या ‘संवैधानिक आपातकाल’ के रूप में भी जाना जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1994 में बोम्मई मामले में उन सभी स्थितियों को सूचीबद्ध किया था, जहां अनुच्छेद 356 के तहत शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता था।
ऐसी ही एक स्थिति है- ‘त्रिशंकु सदन’ (Hung Assembly) यानी वह स्थिति जहां आम चुनावों के बाद कोई भी दल बहुमत हासिल नहीं पाता है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद (कार्यपालिका) की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 के माध्यम से राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है।
राष्ट्रपति शासन तब लागू किया जाता है, जब राष्ट्रपति, राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट प्राप्त करने पर इस बात से सहमत हो कि राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जहां राज्य का प्रशासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा रहा है।
संसदीय स्वीकृति और अवधि
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद दो महीने की अवधि के भीतर इसके लिये संसद के दोनों सदनों से मंजूरी लेना आवश्यक होता है।
यह मंजूरी दोनों सदनों में साधारण बहुमत यानी सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से प्राप्त की जा सकती है।
प्रारंभ में राष्ट्रपति शासन केवल छह महीने के लिये वैध होता है और इसे संसद की मंजूरी से अधिकतम तीन वर्ष के लिये बढ़ावा जा सकता है।