अगस्त 2021 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने अल्पसंख्यक स्कूलों का राष्ट्रव्यापी मूल्यांकन किया। रिपोर्ट का शीर्षक था ‘अल्पसंख्यक समुदायों की शिक्षा पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21ए के संबंध में अनुच्छेद 15(5) के तहत छूट का प्रभाव’।
मूल्यांकन का उद्देश्यः यह आकलन करना था कि भारतीय संविधान में 93वां संशोधन, जो अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षा के अधिकार के अनिवार्य प्रावधानों से छूट देता है, अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को कैसे प्रभावित करता है।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख तथ्य
अल्पसंख्यक संस्थानों में गैर-अल्पसंख्यक छात्रः रिपोर्ट के अनुसार अल्पसंख्यक स्कूलों में 62.5 प्रतिशत छात्र गैर-अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित है।
अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में असमानताः पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक आबादी का 92.47 प्रतिशत मुस्लिम और 2.47: ईसाई हैं। इसके विपरीत 114 ईसाई अल्पसंख्यक स्कूल हैं और मुस्लिम अल्पसंख्यक दर्जे वाले केवल दो स्कूल हैं।
मदरसों के एकरूपता का अभावः रिपोर्ट के मुताबिक देश में तीन तरह के मदरसे हैं:
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानः अल्पसंख्यक संस्थानों को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अपनी पसंद के अनुसार अपने शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का मौलिक अधिकार है। परन्तु वे राज्य द्वारा अनुशंसित नियमों की अवहेलना नहीं कर सकते।
अल्पसंख्यक स्कूलों पर RTE अधिनियमः अल्पसंख्यक स्कूल RTE अधिनियम के दायरे से बाहर हैं। इसके अलावा वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रमति के फैसले (Pramati Judgment) में पूरे RTE अधिनियम को अल्पसंख्यक स्कूलों के लिये अनुपयुक्त बना दिया।
अनुच्छेद 15 (5): यह राज्य को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर निजी शिक्षण संस्थानों (चाहे राज्य द्वारा सहायता प्राप्त या गैर-सहायता प्राप्त) सहित शैक्षणिक संस्थानों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिये विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।