यह भारत के नीति निर्माणकारी निकाय नीति आयोग (पहले योजना आयोग) तथा चीन के नीति निर्माणकारी निकाय राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग के मध्य एक द्विपक्षीय वार्ता मंच है।
इसकी स्थापना दिसंबर 2010 में चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की भारत यात्रा के दौरान पूर्ववर्ती योजना आयोग तथा चीन के राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग द्वारा की गई थी।
वर्तमान में चीन, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जबकि भारत, चीन के शीर्ष दस व्यापारिक भागीदार देशों में शामिल है। जनवरी-नवम्बर 2019 में चीन के साथ 51.68 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा रहा, जिसका प्रमुख कारण चीन में विनिर्मित वस्तुओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने में भारतीय अर्थव्यवस्था की अक्षमता को प्रदर्शित करता है।
चीन से भारत को होने वाले अधिकांश निर्यातों में विद्युत मशीनरी और विद्युत उपकरण वस्तुओं के साथ-साथ सर्वाधिक मात्र में उर्वरक का निर्यात शामिल है, जबकि भारतीय निर्यात में मुख्य रूप से लौह अयस्क एवं कपास जैसी संसाधन आधारित वस्तुएं है।
भारत-चीन व्यापार का ऐतिहासिक तथ्य
वर्ष 1984 में भारत और चीन द्वारा एक व्यापार समझौता किया गया था, जिसमें दोनों देशों को मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा प्रदान किया गया।
दोहरे कराधान समझौतेः भारत-चीन के मध्य वर्ष 1992 में पूर्णतः द्विपक्षीय व्यापार सम्बन्ध स्थापित हुआ तथा दोनों देशों के मध्य 18 जुलाई 1994 में दोहरे कराधान समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जो नवम्बर 1994 से लागू हुआ।
बैंकाक समझौताः यह समझौता दोनों देशों के मध्य वर्ष 2003 में किया गया, जिसके अनुसार दोनों देशों ने एक-दुसरे को कुछ व्यापारिक मान्यता प्रदान की तथा दोनों ने सिल्क रूट के माध्यम से खुली सीमा आधारित व्यापार करने के लिए समझौता किया।
अनौपचारिक शिखर सम्मेलन 2019 के दौरान व्यापार संबंधों में सुधार हेतु अपनी प्रतिबद्धता को दोनों देशों द्वारा दोहराया गया। दोनों देशों ने उन्नत व्यापार और वाणिज्यिक संबंधों की प्राप्ति तथा दोनों के मध्य व्यापार को बेहतर ढंग से संतुलित करने के उद्देश्य से एक उच्च-स्तरीय आर्थिक एवं व्यापार वार्ता तंत्र स्थापित करने पर सहमति व्यक्ति की, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत और चीन के मध्य एक ‘विनिर्माण साझेदारी’ का निर्माण करना है।