चीन का भू-हस्तांतरण प्रस्ताव

हाल ही में चीन ने एक बार पुनः वर्ष 1996 के भू-हस्तांतरण के प्रस्ताव की ओर संकेत देते हुए भूटान और चीन के सीमा विवाद को सुलझाने के लिये भूटान को एक समाधान पैकेज का प्रस्ताव दिया है।

  • चीन ने इस समाधान पैकेज के तहत विवादित पश्चिमी क्षेत्र (डोकलाम सहित) के बदले में उत्तर में स्थित विवादित क्षेत्रों को भूटान को देने का प्रस्ताव किया है।
  • इससे पहले वर्ष 1996 में चीन ने भूटान को पश्चिम में स्थित 269 वर्ग किमी. की चारागाह भूमि के बदले उत्तर में 495 वर्ग किमी के घाटियों वाले क्षेत्र को बदलने का प्रस्ताव रखा था।
  • इस समझौते से भूटान को दोहरा लाभ प्राप्त हो सकता था। इस समझौते से भूटान को पहले से अधिक भूमि प्राप्त होती और साथ ही चीन के साथ उसके सीमा विवाद का भी अंत हो जाता।
  • परंतु यह समझौता भारत के लिये एक बड़ी चिंता का विषय था, क्योंकि डोकलाम क्षेत्र के चीन के अधिकार में आने के बाद यह चीनी सेना को ‘सिलीगुड़ी गलियारे’ (Siliguri Corridor) के रणनीतिक रूप से संवेदनशील ‘चिकन नेक’ (Chicken Neck) तक की सीधी पहुंच प्रदान करेगा।

अन्य प्रमुख तथ्य

  • विशेषज्ञों के अनुसार, चीन द्वारा भूटान की सीमा पर किया गया नया दावा भूटान को चीन द्वारा प्रस्तावित सीमा समझौते को मानने पर विवश करने की एक नई रणनीति हो सकती है।
  • साथ ही चीन ने भूटान को इस बात का भी संकेत देने का प्रयास किया है कि यदि भूटान चीन के प्रस्ताव को नहीं मानता है, तो भविष्य में चीन का दावा बढ़ सकता है।
  • गौरतलब है कि 2-3 जून, 2020 को आयोजित ‘वैश्विक पर्यावरण सुगमता’ की एक ऑनलाइन बैठक में भूटान के सकतेंग क्षेत्र को विवादित क्षेत्र बताते हुए ‘सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य’ के विकास हेतु आर्थिक सहायता को रोकने का प्रयास किया था।
  • इससे पहले चीन ने अरुणाचल प्रदेश के संदर्भ में भी भारत के समक्ष इसी प्रकार का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसके बाद वर्ष 1985 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के ‘तवांग’ क्षेत्र पर अपना दावा प्रस्तुत किया।

भारत पर प्रभाव

डोकलाम क्षेत्र में चीन की पहुंच भारत के लिये चिंता का कारण बन सकती है।

  • वर्ष 2017 के डोकलाम विवाद के समय भारतीय सेना की कार्रवाई का उद्देश्य भूटान की सहायता के साथ-साथ रणनीतिक दृष्टि से भारत के लिये महत्त्वपूर्ण इस क्षेत्र को चीनी हस्तक्षेप से बचाना था। भूटान ने डोकलाम में चीन द्वारा सड़क निर्माण के प्रयास को भूटान और चीन के बीच 1988 और 1998 की संधि का उल्लंघन बताया था। वर्ष 2007 की भारत-भूटान मैत्री संधि के तहत दोनों ही देशों ने राष्ट्रीय हितों से जुड़े मुद्दों पर मिलकर कार्य करने पर सहमति व्यक्त की है।

भूटान का भारत के लिए महत्व

बफर स्टेट के रुप में: भूटान, भारत-चीन के बीच बफर स्टेट के रुप में कार्य करता है, जिससे भारत चीन के बीच सीधे टकराव की स्थिति की सम्भावना कम होती है। यदि भूटान चीन के साथ सीधे द्विपक्षीय वार्ता होती है तो यह भारत के लिए भू-सामरिक दृष्टि अहितकारी साबित हो सकता है।

आर्थिक महत्वः भारत, भूटान में जलविद्युत और व्यापार क्षेत्र के कई क्षेत्रों में निवेश किए हुए है। यदि वह किसी के साथ द्विपक्षीय वार्ता में सम्मिलित होता है तो इसे भारत को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।