चीन का तिब्बत में राजमार्ग का निर्माण

हाल ही में, चीन ने तिब्बत में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण राजमार्ग के निर्माण कार्य को पूर्ण कर लिया है।

  • इस राजमार्ग के निर्माण से चीन सुगमतापूर्वक भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश की सीमा के निकट स्थित सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक (अर्थात् दोनों राष्ट्रों के मध्य विवादित क्षेत्रों तक) पहुंच प्राप्त कर सकता है।
  • ब्रह्मपुत्र नदी के साथ-साथ विश्व की सबसे गहरी घाटी से होकर गुजरने वाला यह राजमार्ग, चीन के नि्ंयगची (Nyingchi) प्रान्त को अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित मेडोग (Medog) प्रांत से जोड़ेगा। इस राजमार्ग के निर्माण के कारण दोनों प्रान्तों के बीच की दूरी 346 किमी. से घटकर अब 180 किमी. हो जाएगी तथा यात्रा में लगने वाले समय में भी आठ घंटे की कमी आएगी।
  • चीन तिब्बत के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण रेलवे लिंक पर भी कार्य कर रहा है। असैन्य बस्तियों के साथ-साथ नए बुनियादी ढांचे के निर्माण को सीमावर्ती क्षेत्रों पर चीनी नियंत्रण को मजबूत करने के उद्देश्य से देखा जाता है।

तिब्बत का महत्व

तिब्बत विश्व का सबसे ऊंचा और सबसे बड़ा पठार है, जो लगभग 2-5 मिलियन वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र तक विस्तारित है। इसकी समुद्र तल से औसत ऊंचाई 4,000 मीटर से अधिक है।

  • तिब्बत से दूर स्थित किसी भी राष्ट्र के या किसी सैन्य संचालन के विरुद्ध यह भूभाग प्राकृतिक रूप से एक विशाल बफर या अवरोध के रूप में कार्य करता है। हालांकि, चीन और भारत के लिए इसका विशेष महत्व हैः

चीन के लिए महत्व

भू-रणनीतिक महत्वः दक्षिण एशिया में अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षा का विस्तार करने के लिए चीन तिब्बत को एक रणनीतिक मार्ग के रूप में देखता है।

हालांकि, माओ ने कहा था कि तिब्बत चीन की हथेली है और लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान एवं अरुणाचल प्रदेश उसकी उंगलियां हैं। साथ ही, चीन इसे अपने पश्चिमी छोर पर स्थित देशों तक पहुंचने के एक साधन के रूप में चिह्नित करता है, जो चीन एवं दक्षिण व मध्य एशिया के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है।

जल स्रोतः तिब्बत को ‘एशिया का जल स्तंभ’ कहा जाता है। तिब्बत के ग्लेशियर एशिया की विशाल नदियों (ब्रह्मपुत्र, मेकांग, यांग्त्जी, सिंधु, येलो और साल्विन) के लिए एक विशाल जल स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। पठार का खनिज युक्त जल, क्षेत्र के प्रथम व्यावसायिक रूप से उपयोगी संसाधनों में से एक बन गया है।

पर्यटन क्षमताः शांगरी ला सर्कल के अंतर्गत तिब्बत, सिचुआन और युन्नान के त्रिकोणीय सीमा क्षेत्र शामिल हैं। इसे पहले से ही एक प्रमुख राष्ट्रीय पर्यटन विकास क्षेत्र के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और घरेलू एवं विदेशी पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य बन गया है।

खनिज संसाधनः चीन का सबसे बड़ा तांबे का निक्षेप तिब्बत की तांबे की खदान यूलोंग में स्थित है। तिब्बत में बड़ी मात्र में लौह, सीसा, जस्ता और कैडमियम पाए जाते हैं, जो चीन की प्रगतिशील अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार तिब्बत में महत्वपूर्ण कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार भी मौजूद हैं।

भारत के लिए महत्व

भू-रणनीतिकः रणनीतिक रूप से, तिब्बती भारत के लिए प्रथम रक्षा पंक्ति रहा है। भारत और चीन के मध्य एक पारंपरिक बफर राज्य के रूप में तिब्बत की अनुपस्थिति ने भारत-तिब्बत सीमा को चीन-भारतीय सीमा में रूपांतरित कर दिया है। वर्ष 1914 में हुए शिमला कन्वेंशन को लेकर चीन द्वारा विरोध प्रकट किया जाता रहा है।

तिब्बत में सापेक्षिक शांति की स्थितिः तिब्बत में निर्माणकारी गतिविधियों और चीनी सरकार एवं तिब्बतियों के बीच संबंधों ने चीन-भारतीय संबंधों को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है। तिब्बत में सापेक्षिक शांति की स्थिति, भारत और चीन के मध्य संबंधों को बेहतर बनाने में सहयोग करती है। चीन-तिब्बत के तनाव बढ़ने से, चीन के साथ भारत के संबंध भी विकृत होने लगते हैं।

पारिस्थितिक महत्वः तिब्बती पठार, एशियाई मानसून को लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं और दोनों ध्रुवों के इतर हिमनदों का यह सबसे बड़ा संकेंद्रण है।

संस्कृति महत्वः बौद्ध धर्म को तिब्बत में भारतीयों द्वारा प्रारंभ किया गया था। तिब्बत को दलाई लामा का अधिवास स्थल माना जाता है, जो भारतीय बौद्धों के लिए एक सम्मानित एवं धार्मिक नेता है।

तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region: TAR)

  • 1950 के दशक में तिब्बत पर आधिपत्य के तुरंत पश्चात्, चीन ने तिब्बत को कई भू-खंडों में विभाजित कर दिया था। जिस भाग को चीन द्वारा तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (TAR) के रूप में संदर्भित किया जाता है, वह तिब्बत के पठार का लगभग आधा हिस्सा ही है।
  • TAR प्रांतीय स्तर चीन के पांच स्वायत्त क्षेत्रों में से एक है, जिसे क्षेत्रीय नृजातीय स्वायत्तता के आधार पर संचालित किया जाता है।