बी.एन. श्रीकृष्ण समिति

मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन) विधेयक, 2021 के अंतर्गत किये गए संशोधन न्यायाधीश बी.एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के अनुरूप हैं।

  • केंद्र सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी- एन- श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति (HLC) का गठन किया गया था।
  • इस समिति के गठन का उद्देश्य संस्थागत मध्यस्थता को बढ़ावा देना तथा मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2015 की प्रयोज्यता में कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों को दूर करना था। इस उच्च स्तरीय समिति ने 30 जुलाई, 2017 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 में संशोधन की सिफारिश की।

सरकार का प्रयास

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाने संबंधी प्रावधान

  • अगस्त 2019 में संसद ने उच्चतम न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की संख्या को 31 से बढ़ाकर 34 करने के लिए एक कानून पारित किया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(1) के तहत यह प्रावधान किया गया है कि यदि संसद को यह प्रतीत होता है कि न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना आवश्यक है तो वह कानून पारित कर न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर सकती है। भारत के मूल संविधान में अनुच्छेद 124 के तहत उच्चतम न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की संख्या 8 निर्धारित की गयी थी, जिसे उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) अधिनियम 1956 के तहत उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाकर 10 कर दी गयी थी।

क्षेत्रीय न्यायपीठों की स्थापना का सुझाव

  • सितंबर 2019 में भारत के उपराष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय की चार क्षेत्रीय न्यायपीठों की स्थापना का सुझाव दिया। उच्चतम न्यायालय दिल्ली में अवस्थित है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 130 के अनुसार भारत के राष्ट्रपति के पूर्व अनुमोदन एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर उच्चतम न्यायालय को दिल्ली के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी अधिविष्ट किया जा सकता है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद को सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत लाना

  • केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल वाद में उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने घोषणा की है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत एक सार्वजनिक प्राधिकरण है।
  • सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 2(h) के अनुसार सार्वजनिक प्राधिकरण से तात्पर्य ऐसे प्राधिकरण/प्राधिकारी या निकाय अथवा स्वायत्त सरकारी संस्थान से है, जिसकी स्थापना या गठन संविधान द्वारा या उसके अधीन संसद या राज्य विधान-मंडल द्वारा बनाई गयी किसी अन्य विधि द्वारा ऐसा निकाय जो समुचित सरकार के स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या उसके द्वारा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित हो तथा ऐसा गैर-सरकारी संगठन जो समुचित सरकार द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध करायी गई निधियों द्वारा सारभूत रूप से वित्तपोषित हो