हाल ही में वैज्ञानिकों ने न्यूयॉर्क के कायरो के पास एक परित्यक्त खदान में दुनिया के सबसे पुराने जीवाश्म वन की खोज की है। 385 मिलियन वर्ष पुरानी चट्टानों में दर्जनों प्राचीन पेड़ों की जीवाश्म जड़ें पाई गई हैं।
खोजे गए वृक्षों की इस प्रकार की जड़ों से संकेत मिलता है कि इन वनों ने हवा से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करने और इसे सुरक्षित रखने में मदद की। इन वनों ने पृथ्वी की जलवायु को बदल दिया और एक ऐसे वातावरण का मार्ग प्रशस्त किया, जो आज हमारे सामने मौजूद है।
जायरो के इन वनों का प्राचीन जलवायु पर बड़ा प्रभाव पड़ा था। इन वनों के वृक्षों की गहरी जड़ें मिट्टी के भीतर की चट्टानों को भेदती और तोड़ती थीं।
भूवैज्ञानिक इस प्रक्रिया को अपक्षय (weathering) कहते हैं। यह रासायनिक प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करता है, जो वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड खींचते हैं और इसे भूजल में कार्बोनेट आयनों में बदल देते हैं। ये अंततः समुद्र में चले जाते हैं और चूना पत्थर के रूप में संचित हो जाते हैं।
आंशिक रूप से अपक्षय और इसके प्रभावों के कारण, वायुमंडलीय CO2 का स्तर आधुनिक स्तर तक गिर गया। कुछ लाख वर्ष पहले CO2 का स्तर आज की तुलना में 10 से 15 गुना अधिक था।
वैज्ञानिकों के अनुसार ये जीवाश्म आर्कियोपेरिटिस से संबंधित प्रतीत होते हैं। आर्कियोपेरिटिस वृक्ष का प्रकार है, जिसमें बड़ी जड़ें और शाखाएं होती हैं। इसके पत्ते भी आधुनिक वृक्षों से मिलते-जुलते हैं। आर्कियोपेरिटिस जीवाश्मों के पिछले खोजे गए रिकॉर्ड 365 मिलियन वर्ष से अधिक पुराने नहीं थे।
जायरो के वनों की खोज से पहले ऐसे प्राचीन वनों को जायरो स्थल से 40 किमी. दूर गिल्बोआ में खोजा गया था। ये वन भी 382 मिलियन वर्ष पुराने थे; लेकिन गिल्बोआ की जड़ें फर्न और हॉर्सटेल से संबंधित थीं। इन पौधों में लकड़ीनुमा (woody) जड़ें नहीं थीं।