अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006

भारतीय जंगलों में बड़ी संख्या में लोग (ज्यादातर जनजाति / आदिवासी) निवास करते हैं। वन भूमि पर अधिकारों को लेकर सरकार और इन लोगों के बीच संघर्ष की स्थिति है। सरकार भूमि वनों का संरक्षण करना चाहती है, जबकि आदिवासी वन भूमि को अपनी आजीविका मानते हैं।

  • सरकार ने 2005 में अवैध अतिक्रमणकारियों को बेदखल करने की पहल की, जिसका बहुत विरोध हुआ। विरोध को शांत करने के लिए सरकार ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ पारित किया।
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 की महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
  • अधिनियम में पीढि़यों से जंगलों में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को मान्यता दी गई है।
  • इसने धारणीय उपयोग, जैव विविधता के संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन के उनके तरीके को भी स्वीकार किया।
  • यह चार प्रकार के अधिकारों को मान्यता देता है-
  1. स्वामित्व का अधिकारः 4 हेक्टेयर खेती योग्य भूमि पर स्वामित्व।
  2. उपयोग का अधिकारः वे लघु वनोत्पाद, चरने वाले क्षेत्रों आदि का उपयोग कर सकते हैं।
  3. राहत और विकास अधिकारः अवैध निकासी के मामले में पुनर्वास सेवाएं प्रदान की जाएंगी।
  4. वन प्रबंधन का अधिकारः वनों के संरक्षण और प्रबंधन के उनके पारंपरिक साधनों को स्वीकार करना।

मुद्दा

अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए कोई पर्याप्त बजट आवंटन नहीं हुआ है। केंद्र और राज्य सरकारों को अधिनियम के समुचित क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए उपरोक्त कमियों को दूर करना होगा; जिससे आदिवासियों पर वन अधिकारों को मान्यता मिल सके और अतिक्रमणकारियों को बाहर निकाला जा सके।