आधार अधिनियम द्वारा समर्थित आधार योजना निजता से संबंधित के-एस- पुट्टस्वामी वाद के निर्णय में निर्धारित ट्रिपल टेस्ट के अनुरूप है, जो अनुच्छेद 21 के तहत निजता के उल्लंघन को तर्कसंगत बनाता है। आधार हेतु एक व्यक्ति के जनसांख्यिकीय और बॉयोमीट्रिक डेटा अनिवार्य रूप से आवश्यक होते हैं, जिसे निजता के मौलिक अधिकार के विरुद्ध माना गया है। इसलिए 26 सितंबर, 2018 को भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा 4:1 बहुमत से कुछ प्रशर्तो के साथ आधार की वैधता को बनाए रखा।
भारत में तीव्र गति से बढ़ती डिजिटलीकरण और इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या ने निजता के अधिकार को महत्वपूर्ण बना दिया है। 2017 में उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय संवैधानिक खंडपीठ ने न्यायाधीश के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ वाद में सर्वसम्मति से निर्णय देते हुए निजता के अधिकार को अनुच्छेद-21 के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के तहत मूल अधिकार का अभिन्न अंग माना है।
कालेकर और मंडल कमीशन वर्ष 1953 में अनुच्छेद 340(1) के तहत काका साहेब कालेकर की अध्यक्षता में पहला पिछड़ा वर्ग आयोग नियुक्त किया गया था; ताकि लोगों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए मानदंड निर्धारित किया जा सके और उनकी स्थिति को सुधारने हेतु सिफारिश की जा सके।
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