अपशिष्ट उत्पादन की अधिकताः वर्तमान में देश में सालाना 62 मिलियन टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा, 0.17 मिलियन टन जैव चिकित्सा अपशिष्ट, खतरनाक अपशिष्ट 7.90 मिलियन टन और ई-कचरा 15 मिलियन टन है। नगरपालिका द्वारा कचरे का केवल 75-80% एकत्र किया जाता है और केवल 22-28% कचरे का प्रसंस्करण और उपचार किया जाता है। पुनर्चक्रण और चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने से संसाधन दक्षता बढ़ाने की बहुत गुंजाइश है।
प्राकृतिक संसाधन किसी भी आर्थिक विकास की रीढ़ है। संसाधन न केवल हमारी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में मदद करते हैं, बल्कि जीवन की बेहतर गुणवत्ता प्राप्ति की मानव आकांक्षाओं को भी पूरा करते हैं। आर्थिक विकास और उपभोक्तावाद ने विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों की मांग को काफी हद तक बढ़ा दिया है, जिससे पर्यावरण पर दबाव बढ़ रहा है और संधारणीयता (sustainability) से सम्बंधित चिंताएँ बढ़ रही हैं। संसाधन दक्षता और द्वितीयक कच्चे माल के उपयोग को बढ़ावा देना, विकास एवं पर्यावरणीय कल्याण के बीच संतुलन को सुनिश्चित करने की रणनीति के रूप में उभरा है।
1972 के मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (स्टॉकहोम) का एक प्रमुख विषय सतत विकास था। इसमें पर्यावरण और आर्थिक स्थिरता का विषय शामिल था। 2002 के सतत विकास पर विश्व शिखर सम्मेलन में संसाधनों के कुशल उपयोग पर जोर दिया गया था।
भारत में अपशिष्ट प्रबंधनः भारत में ई-कचरा प्रबंधन ढांचा कचरे के विषय पर विभिन्न नियमों से विकसित हुआ है। इनमें खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन और हैंडलिंग नियम, 2003 शामिल हैं, जिसे 2008 में संशोधित किया गया। इसमें ई-कचरे को विशेष रूप से शामिल किया गया था। इस नियम के अनुसार, जो व्यक्ति पुनर्चक्रण करना चाहता था, उसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ पंजीकरण करना होता था। ई-कचरे से सम्बंधित बढ़ती चिंता को देखते हुए, सरकार ने 2008 में दिशा-निर्देश जारी की ताकि ई-कचरे का पर्यावरणीय रूप से बेहतर प्रबंधन हो सके। इसके पश्चात ई-कचरा (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 लाया गया।
प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान सिद्धांत (Polluter's pay principle): इसे वर्तमान ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 को ध्यान में रख कर संशोधित किया गया है। विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (EPR) को उन नियमों की आधारशिला बनाया गया, जो सतत विकास के ‘प्रदूषणकर्ताओं द्वारा भुगतान सिद्धांत’ से निर्गत होते हैं।
हाल में सरकार द्वारा किये गये पहल
जी-वनः 28 फरवरी, 2019 को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने "प्रधानमंत्री जी-वन (JI-VAN) (जैव ईंधन-वातावरण अनुकूल फसल अवशेष निवारण) योजना" को मंजूरी दी, जिसे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत चलाया जाना है।
पृष्ठभूमिः भारत सरकार ने पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण करने के लिए 2003 में इथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम शुरू किया, जिसका उद्देश्य जीवाश्म ईंधन जलने के कारण होने वाले पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करना था। वर्तमान नीति में गुड़ (molasses) और गैर-खाद्य फीड स्टॉक जैसे सेल्यूलोज और लिग्नोसेल्यूलोज सामग्री से उत्पादित इथेनॉल की खरीद की अनुमति देता है। |
उद्देश्यः प्रधानमंत्री जी-वन योजना को लिग्नोसेल्यूलिक बायोमास और अन्य नवीकरणीय फीडस्टॉक का उपयोग करके एकीकृत बायोएथेनॉल परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए शुरू किया गया था। लाभार्थियों द्वारा उत्पादित इथेनॉल को अनिवार्य रूप से तेल विपणन कंपनियों (OMCs) को आपूर्ति करनी होगी, ताकि म्ठच् कार्यक्रम के तहत सम्मिश्रण प्रतिशत को बढ़ाया जा सके।
बायो-एटीएफ में खाना पकाने के तेल का रूपांतरणः तलने के दौरान, तेल के गुण बदल जाता है, बार-बार एक ही तेल में तलने से कुल ध्रुवीय यौगिक (टीपीसी) बनते हैं। इन यौगिकों की विषाक्तता उच्च रक्तचाप, एथेरोस्क्लेरोसिस, अल्जाइमर रोग, यकृत रोगों जैसे कई रोगों से जुड़ी है। इसलिए तलने के दौरान वनस्पति तेलों की गुणवत्ता की निगरानी करना आवश्यक है।
फरवरी 2019 में भारतीय पेट्रोलियम संस्थान द्वारा कुकिंग ऑयल को बायो-एविएशन टर्बाइन फ्यूल में बदलने के पायलट टेस्ट का सफलतापूर्वक संचालन किया गया। यह खाद्य मूल्य शृंखला से प्रयोग किये गये कुकिंग ऑयल को डायवर्ट करने और वर्तमान अवैध प्रथाओं पर अंकुश लगाने में सहायक होगा।
नोटः मुख्य मुद्दा बायोडीजल निर्माण इकाइयों और रिपर्पस यूज्ड कुकिंग ऑयल (RUCO) का संग्रह करने वाले एग्रीगेटर्स के पंजीकरण से संबंधित है, इससे जैव-एटीएफ की लागत बढ़ेगी।
राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति का मसौदाः पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 25 जुलाई, 2019 को राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति का मसौदा, 2019 जारी किया है। यह नीति क्रॉस-सेक्टोरल सहयोग, नीति उपकरणों के विकास, कार्य योजनाओं का कुशल कार्यान्वयन और निगरानी रूपरेखाओं को बढ़ावा देता है, जिससे सभी क्षेत्रों में संसाधन दक्षता के लिए एक सुविधाजनक और विनियामक वातावरण बनाना चाहता है। नीति का मार्गदर्शक सिद्धांत प्राथमिक संसाधन खपत को टिकाऊ स्तरों तक कम करना, संसाधन कुशलता एवं कम सामग्री का उपयोग कर उच्च मूल्यवर्द्धन करना और अपशिष्ट निर्माण को कम करना है।
टेराकोटा ग्राइंडरः 2 सितंबर, 2019 को वाराणसी के सेवापुरी में खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने पहली बार टेराकोटा ग्राइंडर लॉन्च किया। यह मशीन बेकार और टूटे हुए मिट्टी के बर्तनों को पीस कर फिर से उपयोग करने के लायक बना देगी।
केवीआईसी ने कुमारप्पा नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट (KNHPI) में प्लास्टिक-मिश्रित हस्तनिर्मित कागज का निर्माण भी शुरू कर दिया है, जो परियोजना REPLAN (REducing PLAstic in Nature) के तहत KVIC की जयपुर इकाई में निर्मित किया जा रहा है। इस परियोजना में बेकार प्लास्टिक को मृदु बनाया जाता है। इसके बाद इसे 80% (लुगदी) और 20% (प्लास्टिक अपशिष्ट) के अनुपात में कागज के कच्चे माल, अर्थात कपास की लुगदी के साथ मिलाया जाता है।
ई-कचरा क्लिनिकः भोपाल में भारत का पहला ई-कचरा क्लिनिक स्थापित करने के लिए भोपाल नगर निगम (बीएमसी) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक कचरे को डोर-टू-डोर एकत्र किया जाएगा या एक शुल्क के बदले सीधे क्लिनिक में जमा किया जाएगा।
इस्पात स्क्रैप नीतिः इस्पात मंत्रालय ने 8 नवंबर, 2019 को स्टील स्क्रैप नीति जारी की। नीति का लक्ष्य निम्नलिखित उद्देश्यों को प्राप्त करना है-
नोटः स्टील स्क्रैप नीति भारत में मिश्रित अपरिष्कृत स्क्रैप में वृद्धि कर सकती है। |
पर्यावरण और सामाजिक प्रबंधन ढांचाः पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अगस्त 2019 में पर्यावरण और सामाजिक प्रबंधन ढांचे का मसौदा जारी किया है।
यह विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित परियोजना है। यह दस्तावेज तटीय राज्यों को तटीय क्षेत्रों में परियोजनाओं को मंजूरी देने और विनियमित करने के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश देता है। यह दस्तावेज एक ढांचा प्रदान करता है कि परियोजनाओं को सांस्कृतिक गुणों और प्राकृतिक आवासों पर कम से कम प्रभाव डालने का प्रयास करना चाहिए, आजीविका या संपत्ति के किसी भी नुकसान की भरपाई करना चाहिए एवं उच्च कार्य सुरक्षा मानकों, व्यावसायिक और सामुदायिक स्वास्थ्य तथा सुरक्षा को अपनाने का प्रयास करना चाहिए।
जहाजों का पुनर्चक्रण अधिनियम, 2019: जहाजों के पुनर्चक्रण उद्योग के साथ विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दे और श्रमिकों की सुरक्षा चिंताएँ जुड़ी हुई हैं। इस विधेयक में इन दोनों मुद्दों को पर्याप्त रूप से संबोधित किया गया है। पर्यावरण का संरक्षण और श्रमिकों की सुरक्षा इस विधेयक की आत्मा है। अब, भारत में पुनर्चक्रण किए जाने वाले जहाजों को हांगकांग कन्वेंशन के अनुसार रेडी फॉर रिसाइकलिंग सर्टिफिकेट प्राप्त करना होगा। विस्तृत प्रमाणन और अनुपालन के कारण पर्यावरण प्रदूषण कम हो जाएगा।
नोटः शिप ब्रेकिंग में विखण्डन की जटिल प्रक्रिया शामिल है और इसमें श्रम सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण प्रदूषण जैसे मुद्दे शामिल हैं।
चुनौतियां
बढ़ती असमानता उपभोक्तावाद और संसाधनों के अपव्यय की तरफ ले जा रही है।
सुझाव
2G इथेनॉल सेक्टर एक नया उद्योग है और तेल विपणन कंपनियों को इसका समर्थन करने की आवश्यकता है।