अगस्त, 2019 को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा रेपो दर में 35 आधार अंकों (basis points-bps) की कटौती की गयी। इससे रेपो दर अब 5.4% पर पहुंच गया है, जो कि नौ साल में सबसे कम है। आरबीआई की रेपो दर में फरवरी से अब तक 110 आधार अंकों की कटौती की जा चुकी है।
रेपो रेट को लगातार कम करने का कारण
मौद्रिक नीति की आवश्यकता
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महत्वपूर्ण मौद्रिक नीति के साधन
रेपो रेटः रेपो रेट (Repo Rate) वह दर होती है, जिस पर बैंकों को आरबीआई ऋण देता है। बैंक इस ऋण से ग्राहकों को ऋण देते हैं। रेपो रेट कम होने से मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे, जैसे- होम लोन, व्हीकल लोन आदि।
रिवर्स रेपो रेटः रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate), वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में उपयोग किया जाता है। बाजार में जब भी नकदी की तरलता बहुत ज्यादा होती है, तो आरबीआई रिवर्स रेपो रेट को बढ़ा देता है, ताकि बाजार से नगदी की तरलता में कमी आ जाए।
सीआरआरः सभी बैंकों के लिए यह आवश्यक होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें। इसे नकद आरक्षी अनुपात (Cash Reserve Ratio - CRR) कहते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि अगर किसी भी मौके पर एक साथ बहुत बड़ी संख्या में जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आ जाएं तो बैंक डिफॉल्ट न कर सके।
आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बिना बाजार से नगदी तरलता को कम करना चाहता है, तो वह सीआरआर बढ़ा देता है। इससे बैंकों के पास बाजार में कर्ज देने के लिए कम राशि बचती है। वहीं सीआरआर को घटाने से बाजार में नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है।
एसएलआरः जिस दर पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते हैं, उसे एसएलआर (Statutory Liquidity Ratio - SLR) कहते हैं। नकदी की तरलता को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है, जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है।
मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य
भारत में मौद्रिक नीति के साधन
मौद्रिक नीति का साधन उपकरण है, जो कुछ पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा उपयोग किया जाता है। उपकरण दो प्रकार के होते हैं -
मात्रत्मक उपकरण या सामान्य उपकरणः मौद्रिक नीति के सामान्य उपकरण के रूप में मात्रत्मक उपकरण (ये उपकरण धन की मात्र / मात्र से संबंधित) हैं। इसे अर्थव्यवस्था में बैंक क्रेडिट की कुल मात्र को विनियमित या नियंत्रित करने के लिए डिजाइन किए गए हैं। ये उपकरण प्रकृति में अप्रत्यक्ष हैं और देश में ऋण की मात्र को प्रभावित करने के लिए कार्यरत हैं। ऋण नियंत्रण के मात्रत्मक उपाय हैं -
गुणात्मक उपकरणः मौद्रिक नीति के चयनात्मक उपकरण के रूप में गुणात्मक उपकरण है। ये उपकरण क्रेडिट की गुणवत्ता या क्रेडिट के उपयोग की ओर निर्देशित नहीं है। वे क्रेडिट के विभिन्न उपयोगों के बीच भेदभाव करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। इस पद्धति का ऋणदाता और उधारकर्ता पर प्रभाव हो सकता है। क्रेडिट नियंत्रण के चुनिंदा उपकरण में निम्नलिखित उपकरण शामिल हैं-
मौद्रिक नीति
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निष्कर्ष
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार मौद्रिक नीति समिति ने तिमाही बिंदु को अपर्याप्त माना है, जिसके कारण रेपो दर में 35 आधार-बिंदु की कटौती की गई है।
इस निर्णय से निवेश और कंज्यूमर डड्ढूरेबल्स की मांग में वृद्धि होगी, जो कि ऋण की लागत से कहीं अधिक आय का एक स्रोत होगा।
साथ ही निवेश की भावनाओं को बढ़ाने के लिए वित्तीय पक्ष द्वारा पर्याप्त रूप से गति उत्पन्न करने की आवश्यकता है। जब तक क्षमता उपयोग में सुधार नहीं होता है, निजी क्षेत्र से निवेश की मांग में सुधार होने की संभावना नहीं है।
कुल मांग में वृद्धि विशेष रूप से निजी निवेश को बढ़ाकर विकास चिंताओं को दूर किया जा सकता है, इसके अलावा इस समय मुद्रास्फीति को स्थिर रखना सर्वोच्च प्राथमिकता में होनी चाहिए।