ई-कॉमर्स भारत के लिए एक विश्वसनीय अवसर है, जो 70 मिलियन मध्यम और छोटे भारतीय व्यवसायों को भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ बनाने में सक्षम है।
इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स क्षेत्र की क्षमता का पूर्ण उपयोग करने और क्षमताओं को बढ़ाने के लिए, यह जरूरी है कि भारत मजबूत प्रशासनिक, नियामक और कानूनी तंत्र विकसित करे। राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति इस क्षेत्र से सम्बंधित मुद्दों (जैसे उपभोत्तफ़ा संरक्षण, डेटा गोपनीयता आदि) को हल करती है।
फरवरी 2019 में सरकार ने इस क्षेत्र की समग्र विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति का एक प्रारूप तैयार की। यह नीति घरेलू उद्योग को इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स के लिए डेटा के महत्व को पहचानती है।
राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति का मसौदा, सीमा पार डेटा प्रवाह पर प्रतिबंध के लिए एक कानूनी और तकनीकी ढांचा स्थापित करने का प्रस्ताव करता है और कुछ शर्तें के अधीन संवेदनशील डेटा को स्थानीय रूप से संग्रह या प्रसंस्करण करने तथा विदेशों में संग्रहीत करने का उपबंध करता है।
नीति सभी हितधारकों के हितों को ध्यान में रखती है; जैसे निवेशक, निर्माता, एमएसएमई, व्यापारी, खुदरा विक्रेता, स्टार्टअप और उपभोत्तफ़ा।
राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति का उद्देश्य मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया की मौजूदा नीतियों के साथ-साथ ई-कॉमर्स क्षेत्र के समग्र विकास की रूपरेखा तैयार करना है।
घरेलू उद्योग की क्षमताओं को विकसित करने के उद्देश्य से, नीति डिजिटल इंडिया पहल के मुख्य घटकों को आगे ले जाती हैः
सुरक्षित और स्थिर डिजिटल बुनियादी ढांचे का विकास।
सरकारी सेवाओं को डिजिटल रूप से वितरित करना।
सार्वभौमिक डिजिटल साक्षरता।
ई-कॉमर्स के माध्यम से होने वाले आयात की निगरानी में सुधार के लिए नीति सीमा शुल्क, आरबीआई और इंडिया पोस्ट सिस्टम को एकीकृत करने का प्रावधान है। भारत में डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध सभी ई-कॉमर्स वेबसाइट और एप्लिकेशन की भारत में एक पंजीकृत व्यवसाय इकाई होनी चाहिए।
नीति के अनुसार, ई-कॉमर्स संस्थाओं को उन विक्रेताओं के सभी प्रासंगिक विवरणों को सार्वजनिक रूप से साझा करना आवश्यक है, जो अपने उत्पादों को इन संस्थाओं की वेबसाइटों / प्लेटफार्मों पर उपलब्ध कराते हैं।