अमेरिका के सार्वजनिक स्वास्थ्य अनुसंधान संगठन- ‘सेंटर फॉर डिजीज डायनामिक्स, इकॉनोमिक्स एंड पॉलिसी’ (Center for Disease Dynamics, Economics - Policy-CDDEP) द्वारा 11 अप्रैल, 2019 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 6 लाख डॉक्टरों तथा 20 लाख नर्सों की कमी है। ‘एक्सेस बैरियर्स टू एंटीबायोटिक्स’ (Access Barriers to Antibiotics) नामक इस रिपोर्ट के अनुसार एंटीबायोटिक प्रतिरोध, एंटीबायोटिक दवाओं के अति प्रयोग और दुरुपयोग से उभरता एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा है। भारत में मरीज स्वास्थ्य खर्च के 65% हिस्से का वहन करने में असमर्थ हैं और इसीलिये मजबूरन किए गए इन स्वास्थ्य खर्चों के कारण प्रतिवर्ष 5.7 करोड़ लोग गरीबी का शिकार हो जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, एंटीबायोटिक दवाइयों से ठीक हो सकने वाली बीमारियों की वजह से विश्वभर में प्रतिवर्ष होने वाली 57 लाख मृत्युओं में से अधिकांश मृत्यु अल्प व मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। भारत में प्रत्येक 10,189 लोगों के लिए एक हजार सरकारी डॉक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा 1 हजार लोगों पर एक डॉक्टर (1: 1,000 के अनुपात) की सिफारिश की गई है। इस प्रकार भारत में 6,00,000 डॉक्टरों की कमी है। वहीं भारत में ‘नर्स व रोगी का अनुपात’ 1: 483 (nurse: patient ratio is 1 : 483) है; यानी प्रत्येक 483 लोगों पर यहां एक नर्स हैं। इस प्रकार दो मिलियन नर्सों की कमी है। वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी के कारण जीवन रक्षक दवाओं तक मरीजों की पहुंच नहीं हो पाती। एंटीबायोटिक की उपलब्धता के बावजूद मरीज उसका खर्च वहन करने में असमर्थ हैं।