अपशिष्ट समाधान की बायोरेमीडिएशन तकनीक

19 अगस्त, 2019 को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने अपने उस आदेश को संशोधित करने से इनकार कर दिया, जिसमें दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड (DCB) को राजधानी के तीन कचरा डंप को साफ करने के लिए 20 करोड़ रुपये देने के लिए कहा गया था।

  • उल्लेखनीय है कि एनजीटी ने 17 जुलाई, 2019 को दिए अपने आदेश में कचरे को साफ करने के लिए दिल्ली सरकार और स्थानीय निकायों को बायोरेमीडिएशन तकनीक (Bioremediation Technique) अपनाने का निर्देश दिया था।
  • एनजीटी द्वारा इस बायोरेमीडिएशन और बायोमाइनिंग परियोजना के लिए राज्य सरकार और नगर निकायों को एक ‘एस्क्रो खाते’ (escrow account) में 250 करोड़ रुपये की राशि जमा करने के लिए कहा गया था।
  • बायोरेमीडिएशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सूक्ष्मजीवों के माध्यम से एक नया वातावरण बनाकर दूषित पानी और मिट्टी का उपचार किया जाता है।
  • इन लैंडफिल्स (landfills), यानी अपशिष्ट भराव क्षेत्रों पर बायोरेमीडिएशन पर काम 1 अक्टूबर, 2019 से शुरू हुआ।

अपशिष्ट प्लास्टिक से डीजल बनाने का संयंत्र

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्द्धन ने 27 अगस्त, 2019 को देहरादून स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (IIP) में ‘अपशिष्ट प्लास्टिक से डीजल बनाने के संयंत्र’ (waste plsatic to diesel plant) का उद्घाटन किया।

  • इस संयंत्र की तकनीक देहरादून स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा गेल इंडिया लिमिटेड के सहयोग से विकसित की गई है। भारतीय पेट्रोलियम संस्थान की एक टीम पिछले 10 वर्षों से 15 करोड़ रुपये की इस परियोजना पर काम कर रही थी।
  • इस संयंत्र में एक टन प्लास्टिक कचरे से 800 लीटर डीजल प्रतिदिन बनाया जा सकता है। इस संयंत्र में बनने वाले ईंधन में आमतौर पर गाड़ियों में उपयोग होने वाले डीजल के गुण मौजूद हैं और इसका उपयोग कारों, ट्रकों और जनरेटर्स में किया जा सकेगा।
  • इस संयंत्र में पॉलियोलेफिनिक कचरे (polyolefinic waste) को डीजल में रूपांतरित किया जा सकता है। पॉलियोलेफिनिक कचरा देश में मौजूद कुल प्लास्टिक कचरे का 70 प्रतिशत है।

बायोरेमीडिएशन

बायोरेमीडिएशन एक उपचार प्रक्रिया है, जो खतरनाक पदार्थों को तोड़कर व निम्नीकरण करके उन्हें कम विषात्तफ़ या गैर विषैले पदार्थों में रूपांतरित करने के लिए स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाले सूक्ष्मजीवों (खमीर, कवक या बैक्टीरिया) का उपयोग करती है।

  • सूक्ष्मजीव (Microorganisms), मनुष्यों की तरह, पोषक तत्वों और ऊर्जा के लिए कार्बनिक पदार्थों को खाते और पचाते हैं।
  • हालांकि कुछ सूक्ष्मजीव ईंधन या सॉल्वैंट्स जैसे कार्बनिक पदार्थों को भी पचा सकते हैं, जो कि मनुष्यों के लिए खतरनाक है।
  • सूक्ष्मजीव, कार्बनिक संदूषित पदार्थों (organic contaminants) को गैर-हानिरहित उत्पादों (मुख्य रूप से CO2 व H2O) में तोड़ते हैं।
  • संदूषित पदार्थों के निम्नीकरण हो जाने के बाद, सूक्ष्मजीव की आबादी कम हो जाती है, क्योंकि वे अपने सम्पूर्ण खाद्य स्रोत का उपयोग कर लेते हैं।
  • भोजन की अनुपस्थिति में मृत सूक्ष्मजीवों को कोई संदूषण जोखिम उत्पन्न नहीं करते।
  • बायोरेमीडिएशन होने के लिए सूक्ष्मजीव सक्रिय और स्वस्थ होना चाहिए।
  • बायोरेमीडिएशन तकनीक सूक्ष्मजीवों के विकास में सहायता करती है और उनके लिए इष्टतम पर्यावरणीय स्थिति बनाकर माइक्रोबियल आबादी को बढ़ाती है, ताकि ये सूक्ष्मजीव अधिक से अधिक संदूषकों या विषैले पदार्थों को अपघटित कर सकें।
  • पॉलियोलेफिन कचरा पर्यावरण के लिए एक प्रमुख चुनौती है; क्योंकि यह जैविक रूप से बेहद कम अपघटित हो पाता है। प्लास्टिक से डीजल बनाने की यह तकनीक पर्यावरण के अनुकूल है। इस संयंत्र का 6 महीने तक अवलोकन करने के बाद भारतीय पेट्रोलियम संस्थान और गेल की योजना इस तकनीक का उपयोग देश भर में करने की है।
  • वर्तमान में प्लास्टिक कचरे से 1 लीटर डीजल बनाने की अनुमानित लागत 80 से 90 रुपये के बीच है। जब इस परियोजना को 10 टन प्रतिदिन क्षमता तक अद्यतन किया जाएगा, तब यह लागत 50 रुपये प्रति लीटर तक आ जाएगी।
  • यह अपनी तरह का दुनिया का चौथा ऐसा केंद्र है, जहां अपशिष्ट प्लास्टिक से कई प्रकार के रसायनों का उत्पादन किया जाएगा।
  • वैज्ञानिकों का कहना है कि यह संयंत्र पर्यावरण में प्लास्टिक की समस्या का जवाब हो सकता है और यहाँ उत्पादित डीजल औद्योगिक और वाहन दोनों के उपयोग योग्य होगा।