बालश्रम

बालश्रम एक विश्वव्यापी समस्या है। यह समस्या हर युग में किसी न किसी रूप में विद्यमान रही है। भारतीय उपमहाद्वीप में 19वीं शताब्दी में औद्योगीकरण के मध्य बालश्रम के विस्तृत एवं विभिन्न स्वरूपों का विस्तार हुआ। प्राचीन काल से ही बालक एवं बालिकायें कृषि एवं पारंपरिक व्यवसायों में पूर्ण रूप से सहायता करते थे। परंतु विश्व के औद्योगिक विकास के साथ-साथ बालश्रम के स्वरूप में निरंतर परिवर्तन होता रहा। भारतीय उपमहाद्वीप में 19वीं शताब्दी में औद्योगीकरण के मध्य बालश्रम के विस्तृत एवं विभिन्न स्वरूपों का विस्तार हुआ। विश्व के कुल बाल श्रमिकों में से 50 प्रतिशत से अधिक भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान एवं श्रीलंका में हैं। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार अकेले भारत में ही 5 से 10 करोड़ के बीच बाल श्रमिक हैं।

बाल श्रम की सुरक्षा और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए समय-समय पर पारित किया जाता रहा है। वे कानून हैं:

  • बाल (श्रम का वचन) कानून, 1933
  • बाल रोजगार कानून, 1938
  • न्यूनतम मजदूरी कानून, 1948
  • कारखाना अधिनियम, 1948
  • वृक्षारोपण श्रम कानून, 1951
  • खदान कानून, 1952
  • बागान श्रम एक्ट 1952
  • वाणिज्य-पोत कानून, 1958
  • मोटर परिवहन श्रमिक कानून, 1961
  • बीड़ी एवं सिगार श्रमिक (रोजगार स्थिति) कानून, 1966
  • अनुबंधित श्रमिक (विनियमितिकरण और उन्मूलन) अधिनियम 1975
  • बाल श्रमिक (प्रतिबंध एवं नियमन) अधिनियम 1986
  • बाल श्रम (प्रतिबंध एवं नियमन) संशोधन अधिनियम, 2016

बालश्रम कल्याण और पुनर्वास योजना

खतरनाक व्यवसायों और पेशों से हटा लिए गए बच्चों के पुनर्वास के लिए सरकार राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना को देश के 21 राज्यों के 250 जिलों में लागू कर रही है। इस योजना के तहत बाल मजदूरों से जुड़ी राष्ट्रीय सोसायटियों द्वारा विशेष स्कूल खोले जाते हैं, जहां इन बच्चों को बुनियादी शिक्षा प्रदान की जाती है, ताकि वे बाद में नियमित स्कूली शिक्षा प्राप्त कर सकें।

इसके लिए धनराशि का निर्गमन राज्य सरकारों के बजाय राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना के तहत उपयोग के लिए विभिन्न जिलों को सीधे जारी की जाती है। जिन राज्यों को यह राशि जारी की गयी उनके नाम हैं: आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, गोवा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर।

राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग

केंद्र सरकार ने 24 फरवरी 2007 को बाल अधिकारों की रक्षा के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया। आयोग में अध्यक्ष के साथ अन्य छः सदस्यों का प्रावधान है। आयोग के अधिकार व कार्य क्षेत्र निम्न हैं-

  • बाल अधिकारों पर नजर रखना।
  • संबंधित कानूनों व कार्यक्रमों पर प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
  • संबंधित मामलों की जांच करना।
  • किशोरगृह या आवास का निरीक्षण करना।
  • आयोग किसी भी व्यक्ति को पूछताछ के लिए अपने समक्ष उपस्थित होने का आदेश दे सकता है।

बचपन बचाओ आन्दोलन

यह एक एनजीओ है, जो कैलाश सत्यार्थी द्वारा 1980 में प्रारम्भ किया गया था। इस आन्दोलन का उद्देश्य बच्चों मुख्यतः बाल श्रमिकों को मुक्त कराकर उनके सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करना है। आज यह 15 राज्यों के 200 जिलों में सक्रिय है और इसमें लगभग 70,000 स्वयंसेवक कार्यरत हैं। यह आन्दोलन बाल श्रमिकों को सामान्य तरीके से भी मुक्त कराता है और छापेमारी द्वारा भी, तत्पश्चात उनका पुनर्वास कराने के साथ ही दोषियों को सजा दिलाते हैं।

इस संगठन के अनुसार भारत में बाल श्रम के चार प्रमुख कारण हैं-

  1. गरीबी,
  2. अशिक्षा,
  3. क्षेत्रीय विषमता,
  4. सरकार की उदासीनता।

1998 में 103 देशों से गुजरने वाली ‘बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा’ का आयोजन एवं नेतृत्व इस संस्था और इसके संस्थापक कैलाश सत्यार्थी द्वारा किया गया था। इस क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ कार्य हेतु कैलाश सत्यार्थी को 2014 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

बाल अपराध रोकने के कानूनी प्रयास

1860 में भारतीय दंड संहिता के भाग 399 व 562 में बाल अपराधियों को जेल के स्थान पर रिफारमेट्रीज (सुधार गृह) में भेजने का प्रावधान किया गया। 1876 में सुधारालय स्कूल अधिनियम बनाया गया, जिसमें 1897 में संशोधन किया गया। राष्ट्रीय स्तर के स्थान पर अलग-अलग प्रांतों में बाल अधिनियम बने। 1920 में मद्रास, बंगाल, बम्बई, दिल्ली, पंजाब में, 1949 में उत्तर प्रदेश में और 1970 में राजस्थान में बाल अधिनियम बने।

1986 में बाल न्याय अधिनियम पारित हुआ, जिसमें सारे देश में एक समान बाल अधिनियम लागू किया गया। इसके अनुसार 16 वर्ष की आयु से कम के लड़के व 18 वर्ष से कम आयु की लड़की द्वारा किए गए कानून विरोधी कार्यों को बाल अपराध की श्रेणी में रखा गया।

1960 के बाल अधिनियम के तहत बाल न्यायालय स्थापित किए गए हैं। वर्ष 2000 में ‘जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2000 (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) लाया गया।

किशोर न्याय

केन्द्रीय कैबिनेट ने 22 अप्रैल, 2015 को किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन बाल (सुरक्षा और देख-भाल) अधिनियम (Care and Protection of Child) 2014 के उस प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी है, जिसके तहत 16 से 18 वर्ष के किशोरों पर जघन्य अपराधों (Heinous Crimes) के मामले में वयस्क अपराधियों के समान मुदकमा चलाने की व्यवस्था की गई है।

भारत में अनाथ व फुटपाथी बच्चे

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल देश में 45,000 बच्चे खो जाते हैं और उनमें 11,000 बच्चे फिर कभी नहीं मिलते। गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश के 16 राज्यों में आंतरिक संघर्ष के चलते इससे पीडि़त बच्चे बहुत ही कठिन परिस्थितियों में जी रहे हैं। पिछले वर्ष राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने ‘स्ट्रीट टू स्कूल अभियान’ शुरू किया था। इसका उद्देश्य अनाथ, बेसहारा, फुटपाथी, कचरा बीनने, भीख मांगने वाले बच्चों की पहचान कर उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना था।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुमान के मुताबिक भारत में करीब एक करोड़ 80 लाख बच्चे सड़कों पर रहते या काम करते हैं। इनमें ज्यादातर बच्चे अपराधों, यौन विकृतियों, सामूहिक हिंसा तथा नशीले पदार्थों के शिकार हैं।