Question : अमेरिकी क्रांति एक वयस्क हो चुके उपनिवेशी समाज में एक स्वाभाविक एवं अपेक्षित घटना थी। इस कथन का परीक्षण कीजिए।
Answer : उत्तरः उपनिवेशवाद के विघटन का बीज उसकी नाभि में ही निहित होता है अतः उपरोक्त कथन की सत्यता का परीक्षण भी इसी परिप्रेक्ष्य में किया जाना चाहिए।
Question : फ्रांस की क्रांति से उत्पन्न राष्ट्रवाद ने 19वीं सदी के यूरोप में एकीकरण की तुलना में विभाजन को अधिक प्रोत्साहन दिया। अपना मत प्रकट कीजिए।
Answer : उत्तरः फ्रांस की क्रांति से उत्पन्न राष्ट्रवाद की आधुनिक विचारधारा यूरोपीय व्यवस्था में एक बड़ी विभाजक रेखा बनकर आई। इसने यूरोप में एक ही साथ एकीकरण तथा विभाजन के तत्वों को प्रोत्साहित किया, लेकिन फिर भी हमें एकीकरण की तुलना में विभाजन के तत्व ज्यादा प्रबल दिखते हैं।
Question : ‘‘क्रांतियां विचारात्मक निर्वात में विकसित नहीं होती।’’ फ्रांसिसी क्रांति के परिप्रेक्ष्य में इसकी व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः फ्रांसीसी क्रांति का 1785ई. से 1799ई. तक का समय फ्रांस में आमूल सामाजिक तथा राजनैतिक परिवर्तन का समय था, जिसने व्यापक रूप से फ्रांस ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया। इसने शक्तिशाली राजशाही तथा चर्च का पतन किया, साथ ही लोकतंत्र तथा राष्ट्रीयता की भावना का मार्ग प्रशस्त किया।
Question : ‘‘पेरोस्तराइका तथा डेंग जियोपिंग के आर्थिक सुधारों का आविर्भाव समान था, परंतु इसके प्रभाव संबंधित देशों की अर्थव्यवस्था पर बहुत अलग हुए।’’ चर्चा करें।
Answer : उत्तरः दोनों प्रयास दो बड़े साम्यवादी देशों के परिप्रेक्ष्य में सामने आए। ताकि अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण किया जा सके। किंतु चीन की जीडीपी जहां 1980 के दशक के पश्चात् निरंतर बढ़ती जा रही है, वहीं रूस की जीडीपी में 1990 के दशक के पश्चात् कमी देखी गई।
Question : उपनिवेशों पर साम्राज्यवाद के सकारात्मक प्रभावों की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः आधुनिक शिक्षा तथा तकनीक का आगमन हुआ।
Question : ‘‘साम्यवाद अंततः मानवीय प्रकृति को पुन-निर्धारित कर पाने में अपनी विफलता के परिणामस्वरूप पराजित हुआ।’’ उपयुक्त उदाहरण के साथ कथन को विस्तारित करें।
Answer : उत्तरः रूस की बोल्शेविक क्रांति (1917) से दर्जनों प्रयास किए जा चुके हैं, कभी धन देकर तो कभी हथियार देकर ताकि साम्यवाद सम्पूर्ण विश्व पर छा सके। पर अन्ततः सब व्यर्थ हो गया।
Question : आर्थिक प्रतिस्पर्धा तथा उपनिवेशों हेतु राष्ट्र राज्यों के झगड़ों ने साम्राज्यवाद तथा प्रथम विश्व युद्ध को जन्म दिया। उदाहरण के साथ स्पष्ट करें।
Answer : उत्तरः संसार की पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाए 19वीं सदी के मध्य से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के विकास क्रम में अनेक देशों में विकसित हुईं।
Question : पूंजीवाद इस विचार पर आधारित है कि अच्छी प्रतिस्पर्धा वैयक्तिक प्रयासों को निर्देशित करने का सबसे अच्छा मार्ग है। इस परिप्रेक्ष्य में औद्योगीकरण के विशेष उल्लेख के साथ पूंजीवाद के विभिन्न अवयवों की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः औद्योगिक क्रान्ति ने अर्थव्यवस्था के आधार को कृषि से उद्योग तथा वाणिज्य में बदल कर रख दिया।
Question : ‘‘उपनिवेशीकरण से आशय केवल सामान्य राजनीतिक आधिपत्य से नहीं बल्कि यह उससे भी कहीं अधिक है।’’ दक्षिण-पूर्व एशिया में उपनिवेशीकरण के परिप्रेक्ष्य में इसकी व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः उपनिवेशों के लोगों के जीवन के आधारभूत निर्णय भी शासक सत्ता द्वारा अपने हित में लिए जाते थे।
Question : ‘‘बिस्मार्क की विदेश नीति का आधार यथास्थिति को बनाए रखना था, वहीं कैसर विलियम द्वितीय का अपनी प्रकृति में वैश्विक प्रशासीकरण (arrandizement)।’’ दोनों नीतियों की, विश्व को युद्ध की ओर धकेलने के संदर्भ में निभायी भूमिका के संदर्भ में, विवेचना करें।
Answer : उत्तरः 1870 से 1914 के मध्य बिस्मार्क तथा कैसर विलियम-ii ने अलग-अलग समय पर सत्ता का उपभोग किया पर दोनों की विदेश नीति के प्रति सोच अलग-अलग थी। बिस्मार्क ने सतर्क नीति अपनाई जिसका आधार 1871 के पश्चात जर्मनी द्वारा पाए गए क्षेत्रों का एकीकरण था।
Question : ‘‘औद्योगिक क्रांति ने औद्योगिक श्रमिकों/सर्वहारा के एक वर्ग के विकास को जन्म दिया जो कि पूंजीवादियों/बुर्जुआ के द्वारा गंभीर रूप से शोषित था।’’ औद्योगिक क्रांति के सामाजिक- सांस्कृतिक प्रभाव, जो कि आज भी मानव जीवन को प्रभावित कर रहे हैं, का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
Answer : उत्तरः 18वीं सदी में औद्योगिक क्रान्ति के समय इग्लैण्ड में मजदूर वर्ग का उदय हुआ। भाप के इंजन, बुनने की मशीन तथा लूम के आविष्कार से औद्योगिक क्रान्ति को गति मिली। शीघ्र ये देखा जाने लगा कि पूंजीपतियों के हाथ में सब कुछ था तो मजदूरों के हाथ पूरी तरह खाली थे।
(i)पूंजीपति।(ii) श्रमजीवी।
Question : हर विद्रोह विचारकों और दार्शनिकों की विचारधारा के भीतर क्रांतिकारी बदलाव की अभिव्यक्ति है। सत्रहवीं और अठारहवीं सदी की दुनिया की प्रमुख क्रांतियों की चर्चा करते हुए इस बात की व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः समाज, शासन एवं विश्व व्यवस्था में यदा-कदा सुनियोजन एवं विकास की दृष्टि से हेर-फेर होते रहते हैं, किन्तु जब इनमें अराजकता, अव्यवस्था तथा अवांछनीयता सामान्य प्रयत्नों के बाहर हो जाती है, तो व्यापक परिवर्तन वाली क्रांतियों का जन्म होता है। परिवर्तन एवं नव निर्माण वाली क्रान्तियों का प्रारम्भिक रूप वैचारिक होता है, बाद में ही वे साकार रूप लेती हैं। विश्व के इतिहास में जितनी भी महाक्रान्तियाँ हुई, उनमें क्रान्तियों के इस स्वरूप को स्पष्ट देखा जा सकता है।
Question : नव-उपनिवेशवाद यथार्थ है। व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः उपनिवेशवाद अपने परम्परागत स्वरूप में तो अब लगभग समाप्त हो चुका है, परन्तु यह अपने आधुनिक परिवेश व परिधान के साथ अभी भी जीवित है। इसे ही नव उपनिवेशवाद कहा जाता है। उपनिवेशवादी राज्य, विशेष कर पश्चिमी विकसित राज्य तथा संयुक्त राज्य अमेरिका, अभी भी अपनी नीतियों के द्वारा नये देशों (अर्थात् 1945 ई. के बाद स्वतंत्र हुए देशों या फिर विकासशील देशों) की नीतियों को मनमाने ढंग से चलाने के लिए कार्य कर रहे हैं। ये देश शस्त्र दौड़ को बढ़ावा देकर शस्त्र आपूर्ति, विदेशी सहायता,विश्व आर्थिक संस्थाओं पर अपने नियंत्रण, परोक्ष युद्ध नीति, अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में कूटनीति तथा कई प्रकार के अन्य दबाव साधनों जैसे-मानव अधिकारों की रक्षा, परमाणु निरस्त्रीकरण, उदारीकरण व वैश्वीकरण के नाम पर कम शक्तिशाली या फिर विकासशील देशों पर अपना प्रभुत्व तथा दबदबा बनाए रखने की नीति का अनुसरण कर रहे हैं। यही आज का यथार्थ है।
Question : शीतयुद्ध कभी शीत नहीं था। व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः ‘शीतयुद्ध’ शब्द से सोवियत संघ-अमरीकी शत्रुतापूर्ण एवं तनावपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की अभिव्यक्ति होती है, जो द्वितीय महायुद्धोतर विश्व राजनीति की वास्तविकता है। इस शत्रुतापूर्ण सम्बन्धों को वास्तविक युद्ध में परिवर्तित किये बिना, इस शीत युद्ध मे वैचारिक घृणा, राजनैतिक अविश्वास, कूटनीतिक जोड़-तोड़, सैनिक प्रतिस्पर्द्धा, जासूसी, मनोवैज्ञानिक युद्ध और कटुतापूर्ण सम्बन्ध देखे गये। शीत युद्ध काल निरंतर तनावों, षडयंत्रों व हिंसक संघर्षो से भरा रहा रहा था जैसे-
उपरोक्त तनाव पूर्व वातावरण व परिस्थितियों के आधार पर कहा जा सकता है कि शीत युद्ध कभी शीत नही था।
Question : नेपोलियन द्वारा जर्मनी की राष्ट्रीय भावनाओं को आहत किया गया, जबकि बिस्मार्क द्वारा जर्मनी का एकीकरण किया गया। व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः नेपोलियन और जर्मनीः नेपोलियन मार्च 1794 ई. में फ्रांस का सम्राट् बन गया। नेपोलियन ने इंग्लैण्ड पर आक्रमण करने के लिए उत्तरी समुद्री तट पर बोलोन (Boulogne) में अपनी सेना भेजी। अमिऐं की संधि समाप्त होते ही विलियम पिट शासन में आया और उसने इंग्लैण्ड, आस्ट्रिया, रूस आदि राष्ट्रों को मिलाकर एक तृतीय गुट (1705) बनाया।
बिस्मार्क और जर्मनी का एकीकरणः ओटो एडुअर्ड लिओपोल्ड बिस्मार्क जर्मन साम्राज्य का प्रथम चांसलर तथा तत्कालीन यूरोप का प्रभावी राजनेता था। वह ‘ओटो वॉन बिस्मार्क’ के नाम से अधिक प्रसिद्ध है।
Question : फ्रांस की क्रांति यूरोप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसने बेल्जियम की आजादी को सुनिश्चित किया, फ्रांस में एक संवैधानिक सरकार की स्थापना की और इंग्लैंड में संसदीय सुधार का कारण बनी। व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः फ्रांसीसी क्रांति का सबसे बड़ा प्रभाव गणराज्यवाद का विचार था, जो शीघ्र ही पूरे यूरोप में फैल गया। गणराज्यवाद से जुड़े अन्य तत्व हैं- जनमत की अभिव्यक्ति और राष्ट्रवाद।
Question : अमेरिकी संविधान एक आर्थिक दस्तावेज था। टिप्पणी करें।
Answer : उत्तरः अमेरिकी क्रान्तिकारियों तथा वहां के संविधान के प्रारूपकारों ने जिनमें 13 कॉलोनियां शामिल थी, शाही ब्रिटेन को हराने के बाद आधुनिक विश्व के प्रथम संविधान का निर्माण किया।
अमेरिकी संविधान की आर्थिक दस्तावेज के रूप में आलोचना
चार्ल्स बीयर्ड नामक विद्वान ने अपनी प्राचीन रचना "संविधान का आर्थिक विवेचन" में अमरिकी संविधान के प्रारूपकारों के उद्देश्य पर प्रश्नचिह्न लगाया है-
1.उन्होंने कहा की अमरिकी संविधान निमात्री सभा में दो प्रकार के प्रारूपकार थे, पहले व्यापारी तथा दूसरे ऐसे लोग जिनके पास पर्याप्त मात्रा में जमीन मौजूद थी। ये लोग संविधान निर्माण की प्रक्रिया से अनभिज्ञ थे।
2.उन्होंने कहा की संविधान के प्रारूपकारों में कोई भी कृषि तथा शिल्पी कर्म से जुड़ा हुआ नहीं था।
3.उनके अनुसार इस प्रक्रिया में तीन-चौथाई योग्य मतदाताओं को बाहर रखा गया तथा जो शामिल हुए वे भी अपने आर्थिक हितों से प्रभावित थे।
उपर्युक्त विश्लेषण के क्रम में हमें यह नही भूलना चाहिए की अमरिकी संविधान में व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा मूल अधिकारों को भी पर्याप्त जगह दी गई है तथा इसे मात्र एक आर्थिक दस्तावेज कहना उचित नहीं होगा।Question : बोल्शेविक कौन थे? रूसी क्रांति के विरासत का विश्लेषण करें।
Answer : उत्तरः बोल्शेविक ‘‘रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक कामगर पार्टी’’ के वामपंथी लोगों को कहा जाता है, जो 1917 में हुई रूसी क्रांति के आधार स्तम्भ थे। ब्लादीमिर लेनिन रूस की इसी बोल्शेविक क्रांति के समाजवादी नेता थे। बोल्शेविकों का सामाजिक आधार गरीब व बेसहारा मजदूर एवं किसान थे, जो जारशाही की निरकुंशता पूंजीपतियों, जमींदारों एवं सामंतों की स्वेच्छाचारिता एवं राजशाही को समाप्त करना चाहते थे ताकि मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक समाजवाद को मूर्त रूप दिया जा सके।
नवम्बर 1917 में हुई इस बोल्शेविक क्रांति ने अपने पीछे निम्न विरासतों की लम्बी शृंखला छोड़ी-
राजनैतिक परिणाम
आर्थिक परिणाम
सामाजिक परिणाम
वैश्विक प्रभाव
Question : उपनिवेशवाद के मूलभूत लक्षणों को परिभाषित करें। यह साम्राज्यवाद से किस प्रकार भिन्न है?
Answer : उत्तरः किसी एक भौगोलिक क्षेत्र के लोगों द्वारा किसी दूसरे भौगोलिक क्षेत्र में उपनिवेश (कॉलोनी) स्थापित करना और यह मान्यता रखना कि यह एक अच्छा काम है, उपनिवेशवाद (colonialism) कहलाता है। इतिहास में प्रायः पन्द्रहवी शताब्दी से लेकर बीसवीं शताब्दी तक उपनिवेशवाद का काल रहा।
Question : भारत ने दोनों विश्व युद्धों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। चर्चा करें।
Answer : उत्तरः 1914 से 1918 के मध्य मुख्यतः यूरोप में व्याप्त इस महायुद्ध को प्रथम विश्व युद्ध कहते हैं। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ्रीका तीन महाद्वीपों और जल, थल तथा आकाश में लड़ा गया। इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र (जिसमें यह लड़ा गया) तथा इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे विश्वयुद्ध कहते हैं।
Question : उस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य की चर्चा कीजिए जिसके अंतर्गत विभिन्न देशों के उपनिवेशीकरण ने भिन्न मार्ग का अनुसरण किया। इस परिप्रेक्ष्य में आप भारत को कहां वर्गीकृत करेंगे।
Answer : उत्तरः 1945 से 1960 के मध्य लगभग तीन दर्जन देश एशिया एवं अफ्रीका में यूरोपीय दासता से स्वतत्र हुए, परंतु सभी देशों द्वारा विऔपनिवेशीकरण के लिए भिन्न-भिन्न तरीके अपनाए गए। कहीं पर शांतिपूर्ण तथा कहीं पर हिंसात्मक तरीके अपनाए गए। कुछ देशों को तुरंत ही लोकतांत्रिक व शांतिपूर्ण सरकारें मिल गई, वहीं कुछ देशों को आगे आने वाले कई वर्षों तक सैन्य शासन का सामना करना पड़ा। कुछ देशों ने स्वतंत्रता के बाद शीतयुद्ध के दौर में पूंजीवादी अमरिका को अपना सहयोगी बनाया तो कुछ देशों ने साम्यवादी सोवियत संघ से हाथ मिलाया। वहीं भारत जैसे कुछ देश ऐसे भी थे जिन्होंने गुटनिरपेक्षता का सहारा लेते हुए शांतिपूर्ण स्वायत विकास का मार्ग प्रशस्त किया।
Question : गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने कभी भी अपनी पूरी क्षमता को प्राप्त नहीं किया। शीत-यु़द्ध के वर्तमान पुनर्जीवन के प्रकाश में इसकी चर्चा करें।
Answer : उत्तरः वैश्विक राजनीति और क्षेत्रीय कूटनीति के इतिहास में कभी इस बात का ठोस प्रमाण नहीं मिला कि कब शीत युद्ध का आरंभ या अंत हुआ। इतिहासकार इसे 1947-1991 का काल मानते हैं। लेकिन कूटनीतिज्ञ यह कहते हैं कि शीत युद्ध के आरंभ या अंत के सबूत नहीं, बल्कि संकेत मिलते हैं, खास तौर पर इसके आरंभ के।मौजूदा वैश्विक राजनीति में इसके चार महत्वपूर्ण संकेत मिल रहे हैं। पहला और सबसे प्रासंगिक संकेत यूक्रेन संकट है। दूसरा संकेत सीरिया संकट है। तीसरा संकेत इराक के हालात हैं। चौथा संकेत अफगानिस्तान की स्थिति है। बीते तीन वर्षों में पश्चिमी एशिया और आज मध्य एशिया शीत युद्ध की जमीन बन चुका है। पहले के शीत युद्ध और 2000 के बाद के शीत युद्ध में कुछ विशेष फर्क है।
Question : अमेरिका द्वारा तीव्र रूप से प्रवर्द्धित ‘मुक्त द्वार नीति’ (ओपन डोर पॉलिसी) की चर्चा कीजिए और इसका आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।
Answer : उत्तरः इतिहासकारों के एक बड़े वर्ग की मान्यता है कि संयुम्त राज्य अमेरिका के प्रारंभिक दृष्टिकोण, उद्देश्यों एवं नीतियों की परिणति तथा 1865 के पश्चात उसकी कूटनीति को प्रभावित करने वाले कारकों का निरूपण ‘‘मुक्त द्वार’’ नीति के रूप में हुआ।
Question : ‘शीत युद्ध’ शब्द से आप क्या समझते हैं? शीत युद्ध के कारण के महत्वपूर्ण घटकों का सूक्ष्म परीक्षण करें। क्या आपको लगता है कि यह वर्तमान के भू राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रासंगिक है? प्रकाश डालें।
Answer : उत्तरः शीतयुद्ध विश्व की दो महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ के बीच चलने वाला भूराजनीतिक, सैद्धांतिक तथा आर्थिक संघर्ष था, जो द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात 1947 से 1991 में सोवियत संघ के विघटन तक चलता रहा।
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों के बीच प्रत्यक्ष सशस्त्र संघर्षनहीं हुआ, परंतु इसके अतिरिक्त अन्य सभी उपायों से अपने प्रभाव में वृद्धि तथा अपने शत्रु को कमजोर करने का प्रयास किया गया। इसके अंतर्गत जासूसी सैन्य हस्तक्षेप, समर्थकों को सैन्य एवं आर्थिक सहायता देना, संगठनों का निर्माण, प्रचार आदि का सहारा लिया गया।
शीत युद्ध के कारण
Question : आर्कड्यूक फर्डिनेंड को मारने वाली गोली विश्व में पश्चिमी सर्वोच्चता को खत्म करने में मदद कर सकती है। इस कथन की परीक्षण उदाहरणों की मदद से करें।
Answer : उत्तरः बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में यूरोप अपनी शक्ति के चरम स्तर पर था, पृथ्वी के बड़े भूभाग पर यूरोपीय देशों का नियंत्रण था, उनकी नौसेनाओं द्वारा महासागरों की निगरानी की जाती थी।
Question : ग्लासनोस्ट और पेरेस्ट्रोइका के रूप में सुधार की उच्च मात्रा ने अप्रत्याशित परिणाम उत्पन्न किया और इसने यूएसएसआर में साम्यवाद द्वारा बनाए गए सभी कवचों को तोड़ दिया। यूएसएसआर के विखंडन में दो महत्वपूर्ण कारकों के रूप में इस नीति की गहनता से चर्चा करें।
Answer : उत्तरः सोवियत संघ की सत्ता में आने के पश्चात मिखाइल गोर्बाचेव ने कम्युनिस्ट प्रणाली में नई जान फूंकने के उद्देश्य से सुधारों को लागू किया। इन सुधारों के प्रभावों का आकलन करने के लिए सोवियत संघ की तत्कालीन परिस्थितियों का विश्लेषण आवश्यक है।
Question : फासीवाद के बुनियादी सिद्धांतों की चर्चा करें। यह किस प्रकार यूरोपियन देशों में प्रवेश कर गया? वर्तमान में पश्चिमी यूरोपीय देशों में फैले नव-जागरणवाद का विश्लेषण करें।
Answer : उत्तरः इटली के फासीवादी तानाशाह बेनितो मुसोलिनी द्वारा 1930 के दशक में प्रयुक्त ‘‘फासिस्ट’’ (अथवा ‘‘फासिस्टी’’) शब्द संभवतः इटालियन शब्द ‘‘फासिस’’ अथवा लैटिन शब्द ‘‘फासेस’’ से उद्भूत हुआ है। ‘‘फासिस’’ का अर्थ ‘‘इकाई’’ अथवा ‘‘गट्ठर’’ होता है जबकि ‘‘फासेस’’ प्रभुसत्ता का प्रतीक है।
फासीवादी आंदोलन के मूलभूत सिद्धांत निम्नलखित थे-
1-राज्य की परमसत्ता 2-सर्वोत्तम की उत्तरजीविता
3-कठोर सामाजिक व्यवस्था 4-तानाशाही नेतृत्व
फासीवादी विचारधारा के अंतर्गत राज्य को गौरवपूर्ण जैविक सत्ता माना जाता था, जो किसी भी व्यक्ति से अधिक महत्वूर्ण था। यह विचारधारा युद्ध करने तथा उनमें विजय प्राप्त करने पर बल देती थी तथा शांति को दुर्बलता का प्रतीक माना जाता था। अराजकता तथा भीड़तंत्र को रोकने के लिए सामाजिक व्यवस्था कठोरता के साथ स्थापित की गई थी। राज्य की महानता तथा शक्ति को बनाए रखने के लिए सम्पूर्ण प्रभुसत्ता से युक्त एक करिश्माई नेता की उपस्थिति पर बल दिया जाता था।
Question : यूरोप में औद्योगिक क्रांति के प्रभावों की चर्चा कीजिए।
Answer : उत्तरः औद्योगिक क्रांति अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में प्रारंभ हुई। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक यूरोप के अधिकांश देशों तथा अमेरिका में भी औद्योगिक क्रांति प्रारंभ हो चुकी थी। औद्योगिक क्रांति उत्पादन पद्धति में एक मूलभूत परिवर्तन को इंगित करती है। इसके अंतर्गत उत्पादन, परिवहन, विनिर्माण, कृषि आदि क्षेत्रों में व्यापक परिवर्तन हुए, क्योंकि इसमें व्यापक तौर पर मशीनीकरण पर बल दिया गया था। वाष्प चलित इंजन के विकास, कोयले के बढ़ते प्रयोग, इस्पात के बड़े पैमाने पर उत्पादन, रेलवे के विकास आदि द्वारा औद्योगिकरण को समझा जा सकता है।
Question : अमेरिकी तथा फ्रांसीसी क्रांति का एक मूल्यांकन प्रस्तुत कीजिए।
Answer : उत्तरः अमेरिकी तथा फ्रांसीसी क्रांतियों का विश्व इतिहास में विशिष्ट स्थान है। आधुनिक मूल्यों की स्थापना एवं प्रचार-प्रसार में इनकी भूमिका असंदिग्ध है। इन क्रांतियों के माध्यम से उन मूलभूत विचारों तथा संस्थाओं का उद्भव हुआ, जिन्होंने आगे चलकर प्रजातंत्र के विकास में अहम भूमिका निभाई। इन क्रांतियों द्वारा राजतंत्र पर प्रहार किया गया तथा गणतांत्रिक सरकारों की स्थापना के माध्यम से गणतंत्रवादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया गया। इन दोनों ही क्रांतियों के मूल में आर्थिक कारण विद्यमान थे।
Question : वर्साय की संधि में द्वितीय विश्व युद्ध के बीज निहित थे, स्पष्ट करें।
Answer : उत्तरः प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के उपरांत विजित राष्ट्रों द्वारा जर्मनी पर आरोपित वर्साय की संधि स्वयं में विरोधाभासी थे, जिसने शांति की पूर्व संध्या पर ही अशांति, युद्ध, कलह एवं विश्व व्यवस्था में अराजकता के बीज समाहित कर लिए थे।
निम्नलिखित कारणों से इसे द्वितीय विश्व युद्ध का उत्तरदायी कारक माना जा सकता है-
Question : मलय प्रायद्वीप में उपनिवेश उन्मूलन के प्रक्रम में सन्निहित क्या-क्या समस्याएं थी?
Answer : उत्तर- मलय प्रायद्वीप दक्षिण पूर्व एशिया का एक महत्वपूर्ण स्थल था। मलक्का जल-डमरू-मध्य के समीप अवस्थिति के कारण इस स्थल का विशेष राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक महत्व था। यही वजह है कि इस क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए यूरोपीय शक्तियों, अमेरिका एवं जापान में होड़ लगी हुई थी और अंततः सफलता जापान को मिली।