Question : भारत में ब्रिटेन की आर्थिक एवं राजनीतिक नीतियां, ब्रिटिश शासन के दौरान परिवहन एवं संचार व्यवस्था के विकास को किस हद तक प्रेरित कर रहा था? चर्चा करें।
Answer : उत्तरः ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में परिवहन एवं संचार व्यवस्था के मुख्य स्तंभ के रूप में रेलवे, डाक, तार आदि जैसे उन्नत एवं प्रगतिशील माध्यमों का विकास हुआ। परंतु परिवहन संचार साधनों का यह विकास ब्रिटिश वाणिज्यिक गतिविधियों एवं राजनीतिक प्रभुत्व से प्रेरित था। भारत में परिवहन एवं संचार साधनों के विकास के पीछे मुख्य निम्न कारण थे-
अनिश्चित ही सही, भारत को लाभ-
इस प्रकार परिवहन एवं संचार व्यवस्थाओं के विकास से भारतीयों को सीमित लाभ हुआ एवं इनके विकास का मुख्य लक्ष्य ब्रिटिश औपनिवेशिक आर्थिक और राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति करना ही था।
Question : ‘‘हिक्की तथा बकिंघम ने प्रेस को सच्ची आवाज तथा लोगों का प्रतिनिधि बनाया तथा उसे वह रूप दिया जिसमें आज हम उसे देख रहे हैं। ‘‘उनके योगदान तथा स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेस की भूमिका की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः जेम्स हिक्की ने 1780 में ऐच्छिक समाचार पत्र निकाला, जिसे ‘बंगाल गजट’ नाम से प्रसिद्धि मिली। ये आयरिश नागरिक थे।
Question : भारतीय जागरण पर राजा राम मोहन राय के योगदान की संक्षिप्त चर्चा करें।
Answer : उत्तरः सामाजिक-धार्मिक एवं अन्य पुनरुद्धार
राजा राम मोहन राय उपनिषद ने और वेदों को गहराई से पढ़ा एवं अपनी पहली पुस्तक ‘ तुहफत-उल-मुवाहिद्दीन’ लिखा जिसमें उन्होंने एकेश्वरवादी वैदिक धर्म की वकालत की और हिन्दू धर्म के रूढ़िवादी रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों का विरोध किया।
Question : ‘‘पुनर्जागरण एक धार्मिक या राजनीतिक आंदोलन नहीं था।’’ यह एक मानसिक अवस्था थी।’’ टिप्पणी करें।
Answer : उत्तरः पुनर्जागरण का शाब्दिक अर्थ है, फिर से जागना। चौदहवीं और सोलहवीं शताब्दी के बीच यूरोप में जो सांस्कृतिक प्रगति हुई, इसके फलस्वरूप जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे नवीन चेतना आई।
Question : ‘‘सामाजिक-धार्मिक आंदोलन ने सामाजिक तथा धार्मिक विचारों के तार्किक समझ पर बल दिया तथा एक वैज्ञानिक एवं मानवीय दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किया।’’ विस्तार करें।
Answer : उत्तरः पश्चिम में नए विचारों का प्रभाव 18वीं सदी के बौद्धिक जागरण, फ्रांसीसी क्रान्ति तथा औद्योगिक क्रान्ति के कारण पड़ा तो भारत में 19वीं सदी में सामाजिक तथा सांस्कृतिक आन्दोलन ने शनैः शनैः अपना प्रभाव दिखाया।
Question : राजा राममोहन राय के विचारों के तहत ब्रह्म समाज के सिद्धांतों की चर्चा करें। यह सामाजिक- धार्मिक बुराईयों को समाप्त करने में किस प्रकार मददगार साबित हुआ?
Answer : उत्तरः 19वीं शताब्दी में भारत अनेक सामाजिक-धार्मिक बुराइयों से ग्रस्त था। भारत का अंग्रेजी शिक्षित, पारंपरिक मध्य वर्ग इनसे खिन्न था। ऐसी परिस्थितियों में देश के विभिन्न हिस्सों में अनेक लोगों ने देश की सामाजिक-धार्मिक स्थितियों को सुधारने तथा साथ ही पश्चिमी मिशनरियों की आलोचना से उन्हें बचाने वाले आंदोलनों का संचालन एवं नेतृत्व किया।
Question : श्रमिक आंदोलन के उद्भव और विकास ने व्यापार संघ की स्थापना में सहयोग दिया। श्रमिक आंदोलन में किसी व्यक्ति/संघ की भूमिका का वर्णन करें।
Answer : उत्तरः भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन को छह चरणों में विभक्त किया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं-
(क) 1918 से पूर्व का चरण
(ख) 1918-1924 का चरण
(ग) 1925-1934 का चरण
(घ) 1935-1938 का चरण
(ड.) 1939-1946 का चरण
(च) 1947 के बाद का चरण
Question : बंगाल में द्वैध शासन के स्वरूप कार्यान्वयन तथा परिणामों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
Answer : उत्तरः द्वैध शासन के अंतर्गत बंगाल के दायित्वों को दो भागों में बांट दिया गया अर्थात बंगाल के दीवानी कार्य (राजस्व, चुंगी तथा दीवानी न्याय) कंपनी को दे दिए गए जबकि प्रशासनिक दायित्व बंगाल के नवाब के अधीन था। दूसरे शब्दों में, शक्ति कंपनी को प्राप्त हो गई जबकि उत्तरदायित्व नवाब के ऊपर था। इसके अतिरिक्त इस व्यवस्था में एक उप-नजीम के पद का सृजन किया गया, जिस पर कंपनी की संस्तुति के द्वारा ही किसी व्यक्ति की नियुक्ति की जाती थी। नवाब की वास्तविक शक्ति इसी पद में थी।
Question : कांग्रेस अपनी संरचना और विचारधारा में ही नहीं बल्कि अपने कार्यक्रम में भी अभिजात्य संगठन बनी रही। इस कथन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
Answer : उत्तरः उपरोक्त कथन को वृहद् संदर्भ में देखने की जरूरत है। यद्यपि यह सही है कि कांग्रेस का प्रारंभिक स्वरूप संरचना एवं विचारधारा में अभिजात्य था लेकिन इसके बावजूद भी कांग्रेस निचले स्तर पर कार्य कर रही थी।
Question : सुस्पष्ट कीजिये कि मध्य अठारहवी शताब्दी का भारत विखंडित राज्यतंत्र की छाया से किस प्रकार ग्रसित था।
Answer : उत्तरः 18वीं सदी की एक महत्वपूर्ण सच्चाई है- मुगल साम्राज्य जैसे एक बड़े साम्राज्य का विघटन तथा उसकी कब्र पर अनेक छोटे-छोटे राज्यों का उदय होना। इन राज्यों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, यथा- विद्रोही राज्य, उत्तराधिकारी राज्य और मुगल साम्राज्य की परिधि से बाहर के राज्य।
विद्रोही राज्यः विद्रोही राज्य के रूप में मराठा राज्य स्थापित हुआ। इस काल में मराठा परिसंघ अस्तित्व में आ चुका था। इसके अंतर्गत कई घटक थे, जैसे- पूना का पेशवा, इंदौर का होल्कर, नागपुर का भोंसले, ग्वालियर का सिंधिया तथा बड़ौदा का गायकवाड़ा। इस प्रकार मराठा शक्ति 18 वीं सदी में भारत में प्रमुख शक्ति बन गयी थी। मराठो के अतिरिक्त अन्य विद्रोही राज्य भी थे, जैसे दिल्ली, आगरा एवं मथुरा के आस-पास जाट राज्य। उसी प्रकार अवध के उत्तर में एक स्वतंत्र राज्य के रूप में रूहेला राज्य की स्थापा पठानों द्वारा की गयी।
उत्तराधिकारी राज्यः ये वे राज्य थे जिन्हे मुगल अधिकारियों ने स्वतंत्र रूप से स्थापित किया था। इन राज्यों के अंतर्गत पूर्वी भारत में मुर्शीद कुली खां के अधीन बंगाल का राज्य तथा मध्य भारत में सआदत खां के अधीन अवध का राज्य और दक्षिण भारत में निजाम उल मुल्क के अधीन हैदराबाद का राज्य शामिल था।
मुगल साम्राज्य की परिधि से बाहर के राज्यः मैसूर राज्य, केरल का राज्य और राजपूत राज्य की गणना मुगल साम्राज्य की परिधि से बाहर के राज्यों के रूप में की जाती है।
मैसूर में हैदर अली व टीपू सुल्तान जैसे शक्तिशाली शासक स्थापित हुए। मैसूर का राज्य विजयनगर साम्राज्य का उत्तराधिकारी था। उससे पृथक केरल क्षेत्र में थिमोनिन के अंतर्गत कालीकट का राज्य था और मार्तड वर्मा के अंतर्गत त्रावणकोर का शब्द स्थापित हुआ।
मार्तड वर्मा अपने समय का बहुत ही महत्वपूर्ण शासक था, उसने डचों को पराजित किया था। राजपूतों ने मुगलों के अधीन सेवा की थी, परन्तु उनका अपना क्षेत्र स्वायत्त रहा था। इसलिए मुगल साम्राज्य के विघटन के बाद भी आमेर, मेवाड़, बीकानेर आदि राज्य के रूप में शासन करते रहे।
इस प्रकार हम देखते है कि विखंडित राज्य तंत्र मध्य अठारहवी शताब्दी के भारत की सबसे बड़ी सच्चाई थी।
Question : क्या कारण था कि उन्नीसवी शताब्दी के अंत तक आते- आते ‘नरमदलीय’ अपनी घोषित विचारधारा तथा राजनीतिक लक्ष्यों के प्रति राष्ट्र के विश्वास को जगाने में असफल हो गए थे?
Answer : उत्तरः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इतिहास में आरंभिक चरण को उदारवादी या नरमदलीय चरण के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस काल की राजनीति की अपनी अलग विशेषताएं रही हैं। फिर यह सही है कि उदारवादी नेतृत्व कोई व्यापक उपलब्धि हासिल न कर सका। इसके निम्नलिखित कारण रहे थे-
Question : भारत के पुनर्जागरण के प्रमुख अभिलक्षणों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए उनका आलोचनात्मक परीक्षण करें?
Answer : उत्तरः भारत में 19वीं सदी के आरंभ से ही समाज एवं धर्मों में व्याप्त जड़ता एवं रूढि़वादिता के विरूद्ध सुधार आंदोलन की श्रृंखला शुरू हुयी, जिसके सम्मिलित रूप को ही भारतीय पुनर्जागरण की संज्ञा दी जा सकती है। इसका स्वरूप एवं विस्तार विभिन्नताओं का समागम था।
Question : 19वीं सदी में समाज तथा धर्म सुधार आंदोलन को प्रेरित करने वाले कारकों की चर्चा कीजिए?
Answer : उत्तरः भारत में 19वीं सदी में होने वाले समाज तथा धर्म सुधार आंदोलन को ब्रिटिश नीतियों में हो रहे परिवर्तनों के प्रति आक्रोश एवं उन्हीं के द्वारा फैलाए जा रहे विचारों एवं भारतीय संस्कृति की गरिमा के पुनः बोध ने प्रेरित किया।
Question : समाज तथा धर्म सुधार आंदोलन पाश्चात्य एवं देशी तत्वों का मिश्रण था। स्पष्ट करें?
Answer : उत्तरः 19वीं सदी में होने वाले समाज तथा धर्म सुधार आंदोलन भारत के लिए एक शल्य चिकित्सा की भांति सिद्ध हुआ। जिसे भारत में पश्चिम के उदारवाद एवं भारतीय परंपरा की विशिष्टता के मेल से ही पूरा किया जा सका।
Question : ये धर्म सुधार आंदोलन अंतर्वस्तु में राष्ट्रीय तथा बाह्य आकृति में धार्मिक थे। हमारे जीवन के परवर्ती चरणों में राष्ट्रवाद को अनन्यतः अथवा प्रधानतः धर्म निरपेक्ष रूप प्राप्त हुए।
Answer : उत्तरः समाज तथा धर्म सुधार आंदोलन आधुनिक भारत के निर्माण का प्रथम प्रयास था। वस्तुतः यह पाश्चात्य तथा देशी तत्वों के बीच की अंतःक्रिया का परिणाम था। पाश्चात्य/नव शिक्षा प्राप्त भारतीय बुद्धिजीवियों ने फ्रांस की क्रांति, देशों में प्रसारित व्यक्तिवादी एवं अन्य नवीन विचारधाराओं को अंतर्निहित करने के उपरांत अपने समाज एवं अपनी संस्थाओं पर दृष्टिपात किया। इस नयी सोच की अभिव्यक्ति समाज सुधार आंदोलन के रूप में हुई। किंतु उस समय समाज में धर्म इतना गहरे तक जुड़ा हुआ था कि बिना धर्म सुधार के समाज सुधार संभव नहीं था। यही वजह रही कि इस क्रम में कभी-कभी धार्मिक प्रतीकों का सहारा लिया गया, किंतु यह अपने उद्देश्य में धर्मनिरपेक्ष ही रहा।
Question : आर्य समाज आधुनिक भारत को प्रभावित करने में विशेष सफल नहीं हुआ।
Answer : उत्तरः 19वीं सदी में दयानंद सरस्वती के द्वारा आर्य समाज की स्थापना तत्कालीन समय में देशी तथा पाश्चात्य तत्वों के बीच हुयी अन्त:क्रिया से उत्पन्न हुयी विचारधारा का द्योतक था।
Question : स्पष्ट कीजिए कि भारत के पुनर्जागरण आंदोलन ने किस सीमा तक राष्ट्रीय चेतना के उदय में योगदान दिया था? अथवा राष्ट्रीय चेतना के विकास में 19वीं सदी के सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलन की भूमिका को समझाइये।
Answer : उत्तरः भारत के सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलन को आरंभिक राष्ट्रवाद का प्रतीक माना जाता है। जिसके माध्यम से सुधारकों एवं बुद्धिजीवियों ने एक आधुनिक भारत बनाने की नींव डाली, जो ब्रिटिश एवं उनके पश्चिमी मॉडल को चुनौती दे पाया। यही नींव आगे भारतीय आधुनिक राष्ट्रवाद की शक्तिशाली दीवार खड़ी करने में सहायक हुयी।
Question : महात्मा गांधी तथा भीमराव अंबेडकर दोनों वर्गीय चेतना के विकास के प्रेरक थे तथापि दोनों के मतों में भिन्नता भी थी।
Answer : उत्तरः महात्मा गांधी ने अपने स्वतंत्रता संग्राम के मध्य दलित वर्ग के उत्थान से भी जोड़ा तथा कई विशिष्ट कदम उठाए। वहीं अंबेडकर जो स्वयं निम्न जाति से थे, ने अपने कानूनी एवं अन्य प्रकार के उपायों से इसके उत्थान का प्रयत्न किया।
Question : निम्न जाति एवं दलित वर्ग के उत्थान में गांधीजी के योगदान का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
Answer : उत्तरः गांधी के आगमन ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को तीव्रता एवं व्यापकता प्रदान की। ठीक उसी तीव्रता से उन्होंने निम्न जाति एवं दलित वर्ग के उत्थान के लिए कार्य किया। किंतु कुछ अंतर्विरोधों ने इस प्रयास को यथोचित सफलता नहीं मिलने दी।
Question : 19वीं सदी के समाज सुधार आंदोलन में स्त्री से संबंधित कुरीतियों के विरूद्ध आवाज मुखर की तो गयी, किंतु यह बहुत सी सीमाओं में बंधी थी। इससे आप कहां तक सहमत हैं?
Answer : उत्तरः किसी भी सभ्यता एवं समाज की सफलता की सबसे बड़ी कसौटी होती है महिलाओं की रक्षा। इसी बात से प्रेरित होकर 19वीं सदी में सुधारकों ने अपना सर्वाधिक ध्यान इसी पर केंद्रित किया। फिर भी यह समस्याएं कुछ हद तक ही समाप्त हो सकीं, क्योंकि इन सुधारों पर अनेक निर्बंधन लगे हुए थे।
Question : भारत में ब्रिटिश शासन में हुई धन की निकासी के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
Answer : उत्तरः ब्रिटिश शासन की हर एक नीति भारत एवं औपनिवेशिक राष्ट्र के मध्य के अंतर्विरोध का प्रकटीकरण होती थी। इन्हीं में से एक थी धन की निकासी, जिसने भारत विशेषकर भारतीय आर्थिक संरचना पर व्यापक प्रभाव डाला।
Question : भारतीय अर्थव्यवस्था पर अंग्रेजी शासन की आर्थिक नीतियों के प्रभाव का आकलन करें।
Answer : उत्तरः ब्रिटिश आर्थिक नीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रोंयथा-कृषि, उद्योग, व्यापार आदि को अपने औपनिवेशिक हितों के अनुरूप दुष्प्रभावित किया। जिसका परिणाम भारत को स्वतंत्रता उपरांत ‘भारत निर्माण’ की प्रक्रिया में भी देखने को मिला।
कृषि पर प्रभाव
ब्रिटिश शासकों के द्वारा लागू की गयी भू-राजस्व व्यवस्थाओं ने भारतीय किसान को दुर्दशा के जाल में फंसा दिया। अधिकतम रूप में राजस्व का निर्धारण करने से किसानों की क्रयशक्ति में ह्रास हुआ। जिसका परिणाम ग्रामीण गरीबी, ऋणग्रस्तता, भुखमरी के रूप में दिखायी दिया। फिर कृषि का व्यवसायीकरण किया गया, किंतु तकनीक एवं निवेश को प्रोत्साहन न देने से किसानों को एक तो खाद्यान्न से हाथ धोना पड़ा तथा इससे प्रायोजित दुर्भिक्षों (अकाल) को प्रोत्साहन भी मिला।
व्यापार पर प्रभाव
1813 के चार्टर के परिणामस्वरूप ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत पर लादी गयी मुक्त व्यापार की नीति ने भारत के परंपरागत व्यापार को दुष्प्रभावित किया। ब्रिटिश शासकों का एकमात्र प्रयास यही था कि भारत को तैयार माल का आयातक एवं कच्चे माल का निर्यातक बना दिया जाए। भारत में रेलवे के नाम पर पूंजी निवेश कर गांरटी शुदा मुनाफा के रूप में गृह व्यय के रूप में धन की निकासी की गयी।
उद्योगों पर प्रभाव
ब्रिटिश शासकों ने जानबूझ कर भारत में औद्योगीकरण नहीं होने दिया क्योंकि वे चाहते थे भारत ब्रिटिश वस्तुओं के बाजार रूप में हमेशा बना रहे। उनके द्वारा मैनचेस्टर एवं लंकाशायर के उद्योगोंसे भारत के उद्योगों की मुक्त प्रतिस्पर्धा आरंभ की गयी,उसने भारत के हस्तशिल्प उद्योगों को नष्ट कर दिया।
नोटः किसी भी प्रश्न में ब्रिटिश आर्थिक नीति का प्रभाव- कृषि पर, व्यापार पर, औद्योगीकरण पर पूछा जाए तो यही उत्तर क्रमशः अलग-अलग लिख सकते हैं।
Question : भारतीय राष्ट्रवाद का उद्भव भारतीय चेतना पर महज पाश्चात्य प्रभाव की उपज था।
Answer : उत्तरः आधुनिक राष्ट्रवाद के उद्भव में पाश्चात्य तत्वों की एक विशेष भूमिका रही थी, जिसके तहत उसके प्रभाव से ज्यादा उससे मिले विचारों को उसी के विरूद्ध प्रयोग ने भारतीय राष्ट्रवाद के उद्भव में ज्यादा महत्वपूर्ण निभाई।
Question : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आंरभिक दिनों में नरम दल के नेताओं के योगदान का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। अथवा उदारवादी चरण के नेताओं के योगदान एवं उनकी कृतियों को रेखांकित कीजिए।
Answer : उत्तरः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारवादी चरण ने ही ब्रिटिश औपनिवेशिक मानसिकता पर सुनियोजित प्रहार किया, किंतु कुछ मूलभूत कमियों के कारण यह ज्यादा प्रभावी नहीं रहा।
योगदान
कमियां
नोटः अंतिम पैराग्राफ केवल आलोचनात्मक व्याख्या कहे जाने पर ही लिखें।
Question : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राजनीति के प्रारंभिक चरण में उग्रवाद के कारण तथा उसके स्वरूप का परीक्षण करें।
Answer : उत्तरः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक चरण में उग्रवाद का उद्भव घरेलू एवं वैश्विक घटना़मों का एक परिणाम रूप ही था। जिसने अपने नए स्वरूप के माध्यम से राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रचलित कार्य शैली एवं सामाजिक संरचना में बड़ा बदलाव ला दिया।
Question : कांग्रेस के उग्रवादी नेताओं ने अपने कार्यक्रमों से कांग्रेस के जनाधार को ही बदल डाला।
Answer : उत्तरः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्रवादी नेताओं के द्वारा उदारवादी चरण के कार्यक्रमों को छोड़ नए कार्यक्रमों को अपनाया गया। जिसके फलस्वरूप अब कांग्रेस का जनाधार ज्यादा व्यापक होने लगा।
प्रारूप 2: हम पूर्णतः यह नहीं मानेंगे कि उग्रवादी नेताओं ने अपने कार्यक्रमों के माध्यम से कांग्रेस के जनाधार को बदल दिया। इसमें दूसरे पैराग्राफ को इस प्रकार लिखेंगे-
नोटः इस प्रारूप को लिखना ज्यादा उचित होगा
Question : ‘‘1857 के महान विद्रोह ने विदेशी शासन के प्रति प्रतिरोध की एक झड़ी लगा दी तथा कुछ समय के लिए भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व पर ही गंभीर खतरा उत्पन्न कर दिया।’’ स्पष्ट करें।
Answer : उत्तरः 1857 का महान विद्रोह किसी एक कारण का परिणाम न होकर अनेक कारणों का सम्मिलित परिणाम था। जिसे डलहौजी की व्यपगत नीति ने उद्वेलित किया तो कारतूस की घटना ने अंजाम तक पहुंचाया।
Question : ‘‘सविनय अवज्ञा आंदोलन हालांकि असफल रहा तथापि यह भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में एक महत्वपूर्ण पड़ाव सिद्ध हुआ।’’ सविनय अवज्ञा आंदोलन के सकारात्मक परिणामों की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः गांधीजी द्वारा उनके साबरमती आश्रम से दाण्डी तक यात्राकी गई जो सरकार को उनकी प्रथम चुनौती थी। इस शान्तिपूर्ण यात्रा द्वारा उन्होंने 6 अप्रैल 1930 को नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा।
Question : स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान मुस्लिम संप्रदायवाद के उद्भव एवं विकास की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः साम्प्रदायिकता की जड़ें आधुनिक संगठनों की विचारधारा के साथ-साथ आर्थिक, राजनैतिक तथा सामाजिक कारकों में भी निहित हैं।
Question : भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान उदारवादियों और अतिवादियों का एक ही उद्देदश्य था- राष्ट्र की स्वतंत्रता। लेकिन उसे प्राप्त करने के तरीके अलग थे। समीक्षा कीजिए।
Answer : उदारवादीः
अतिवादीः
निष्कर्षः अतः उपयुक्त विवेचन से हम कह सकते हैं कि उदारवादी तथा उग्रवादी दोनों ही राष्ट्र की स्वतंत्रता के पक्षधर थे, परन्तु दोनों के साध्य को प्राप्त करने के साधन भिन्न-भिन्न थे। चूंकि 1885 में कांग्रेस की स्थापना के समय इसका आधार इतना बड़ा नहीं था कि वह अंग्रेजों से उग्रता से पेश आए। अतः उन्होंने नम्रता में अपनी बात रखने का रास्ता चुना। उनके इसी रास्ते में आगे चलकर उग्रवादियों का समामेलन हुआ जिन्होंने उनके (उदारवादियों) द्वारा तैयार किए गए जनमत के आधार पर अपने ‘‘स्वदेशी अपनाओ विदेशी भगाओ’’ कार्यक्रम की आधारशिला रखी।
Question : शिक्षा के संदर्भ में रविन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी की सोच में सहमति एवं असहमति के तत्वों को रेखांकित कीजिए।
Answer : उत्तरः महात्मा गांधी तथा रविन्द्रनाथ टैगोर दोनों शिक्षा को मानवीय मस्तिष्क तथा चेतना के विकास के उपकरण के रूप में देखते थे। उनका मानना था कि साक्षर होना या केवल लिखने-पढ़ने की प्रक्रिया को ही शिक्षा नहीं माना जा सकता।
गांधी के विचार
टैगोर के विचार
सहमति के तत्व
असहमति के तत्व
Question : लॉर्ड कर्जन अपने कार्यों के द्वारा महान साम्राज्यवादी प्रतीत होता है। लेकिन उसे एक राष्ट्रवादी होने का भी श्रेय दिया जाना चाहिए। क्या आप इस कथन से सहमत हैं
Answer : उत्तरः लार्ड कर्जन का कार्यकाल भारत में 1899 से 1905 तक रहा, जिसमें उसने अनेक प्रशासनिक, आर्थिक, न्यायिक तथा सैनिक सुधार किए। परन्तु साथ ही उसने 1905 मे बढ़ती हुई राष्ट्रवादी लहर को रोकने के लिए बंगाल का विभाजन भी किया। जिसने अततः स्वदेशी आन्दोलन को जन्म दिया तथा साम्राज्यवादी कर्जन को वापिसइग्लैण्ड बुला लिया गया।
कर्जन के राष्ट्रवादी कार्य
Question : भारत का स्वंतत्रता संग्राम एक प्रकार से भारतीय समाज में महिला मुक्ति का प्रथम प्रयोग था। क्या आप सहमत हैं? आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
Answer : उत्तरः भारत की स्वतंत्रता हेतु चलाया गया भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन जिन मूल्यों एवं भावनाओं पर आधारित था, उनका मूल उन्नीसवीं शताब्दी में प्रारंभ हुए सामाजिक-धार्मिक पुनर्जागरण आंदोलन में खोजा जा सकता है। यही कारण है कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े अधिकांश नेता इन मूल्यों से प्रभावित थे तथा नारी मुक्ति के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते थे।
Question : 1857 का विद्रोह कुछ के लिए स्वतंत्रता का प्रथम संघर्ष था जबकि कुछ के लिए एक विद्रोह था। इतिहास व्याख्या पर निर्भर करता है। इतिहास को वैज्ञानिकता प्रदान करने वाले आगतों की प्रासंगिकता बताइए।
Answer : उत्तरः 1857 के विद्रोह के बारे में कहा जाता है की इसके निर्वचन में उतने ही भिन्न-भिन्न मत हैं, जितने कि लेखक।
Question : वल्लभभाई पटेल एक योग्य प्रशासक थे, जिन्होंने आधुनिक भारत के भौगोलिक सीमाओं का निर्धारण किया। व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के प्रथम गृहमंत्री थे। उन्होंने न सिर्फ बारदोली तथा खेड़ा आन्दोलन में बापू के साथ सक्रिय भूमिका निभाई बल्कि आजादी के वक्त भारत में मौजूद लगभग 545 देशी रियासतों के एकीकरण मे भी अपना योगदान दिया।
Question : इस अच्छी तरह से व्यवस्थित व अनुशासित अराजकता को अब जाना चाहिए’’। भारत छोड़ो आंदोलन को आंरभ करने हेतु जनता को उत्प्रेरित करने के लिए दिए गांधीजी के इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
Answer : उत्तरः भारत छोड़ो आन्दोलन 9 अगस्त, 1942 ई. को सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आवाह्न पर प्रारम्भ हुआ था। भारत की आजादी से सम्बन्धित इतिहास में दो पड़ाव सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण नजर आते हैं-प्रथम ‘1857 ई. का स्वतंत्रता संग्राम’ और द्वितीय ‘1942 ई. का भारत छोड़ो आन्दोलन’। ‘क्रिप्स मिशन’ की असफलता के बाद गांधीजी ने एक और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय ले लिया। इस आन्दोलन को ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का नाम दिया गया।
Question : प्लासी की लड़ाई विश्वासघात का परिणाम था, लेकिन बक्सर की लड़ाई वास्तविक अर्थ में एक युद्ध था। उदाहरण के साथ चर्चा करें।
Answer : उत्तरः 23 जून 1757 को लड़े प्लासी के युद्ध में क्लाइव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पराजित कर दिया। इससे भारत में अंग्रेजी प्रभुत्व की स्थापना का प्रारंभ हुआ। युद्ध से पूर्व ही क्लाइव ने सिराजुद्दौला के सेनापति मीरजाफर, दीवान राय दुर्लभ एवं बंगाल के सबसे बड़े बैंकर जगत सेठ के साथ मिलकर षडयंत्र किया। जिसके तहत युद्ध के दौरान मीर जाफर ने धोखेबाजी की तथा नवाब की सेना पराजित हो गई।
Question : विश्लेषण करें कि किस प्रकार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वाम धड़े के उद्भव ने इसके सामाजिक आर्थिक लक्ष्यों को क्रांतिकारी रूप से परिवर्तित कर दिया।
Answer : उत्तरः कांग्रेस समाजवादी दल (congress socialist party):गांधीजी के रहस्यवाद और साम्यवादी दल के रूढि़वाद के विरुद्ध कांग्रेस में वामपंथी पक्ष एक ‘विवेकयुक्त विद्रोह’ के रूप में उभरा। उनको सैद्धांतिक प्रेरणा मार्क्सवाद और प्रजातांत्रिक समाजवाद से मिली और ये लोग साम्राज्यवाद विरोधी, राष्ट्रवादी और समाजवादी संस्था के रूप में सामने आए।
Question : कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन कांग्रेस द्वारा बड़े पैमाने पर अतिरिक्त संवैधानिक कार्रवाई कार्यक्रम के लिए प्रतिबद्ध था। इस कथन के आलोक में नागपुर अधिवेशन और उसके बाद हुए संवैधानिक विकास का परीक्षण करें।
Answer : उत्तरः 1920 में नागपुर में होने वाला कांग्रेस अधिवेशन कई मायनों में ऐतिहासिक था। यहां जो निर्णय लिए गए उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के चरित्र को व्यापक रूप से परिवर्तित कर दिया तथा भारत के स्वतंत्रता की दिशा में सकारात्मक आधार निर्मित किए। नागपुर सत्र में कांग्रेस पर गांधीजी का प्रभाव पूर्णतः परिलक्षित हुआ तथा उन्हीं के प्रभाव के चलते कांग्रेस संगठन में व्यापक बदलाव किए गए।
Question : 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से बहुत से लोकतांत्रिक और राष्ट्रवादी भावनाएं जुड़ी हुई थी। भारतीय विद्रोहियों द्वारा एकता को मजबूत करने के लिए बहुत से कदम उठाए गए। इस कथन का परीक्षण उदाहरण सहित करें।
Answer : उत्तरः अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाहियों में लंबे समय से जो असंतोष व्याप्त था वह आटे में हड्डियों का चूरा मिलाए जाने और नई एनफील्ड राइफल के कारतूसों को चिकना बनाने के लिए गाय तथा सुअर की चर्बी प्रयोग की अफवाहों के चलते विद्रोह के रूप में बाहर आ गया। सैनिकों को लगा कि अंग्रेजी सरकार से उनके धर्म को खतरा है और उन्होंने विद्रोह कर दिया।
Question : भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन केवल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तक संकीर्ण नहीं था। आजाद हिन्द फौज के उदाहरण को लेते हुए आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
Answer : उत्तरः भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रमुख भूमिका निभाई परंतु राष्ट्रीय आंदोलन केवल कांग्रेस तक ही सीमित नहीं था। राष्ट्रीय आंदोलन में अन्य अनेक शक्तियों ने अपने-अपने तरीके से योगदान दिया। इनमें से आज़ाद हिंद फौज का प्रमुख स्थान है जिसने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
Question : कांग्रेस सभी का प्रतिनिधित्व नहीं करती और न भारत की प्रवक्ता है। भारत में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक हैं जो ब्रिटिश साम्राज्य से भारत के संबंध को समाप्त करने की योजना का तीव्र विरोधी हैं।क्या आप ब्रिटिश प्रधानमंत्री द्वारा 1942में दिये गयेउपर्युक्त वक्तव्य को न्यायोचित मानते हैं
Answer : उत्तरः 1937 में हुए चुनावों में पहली बार भारत की एक बड़ी जनसंख्या ने मतदान किया तथा इन चुनावों में कांग्रेस को व्यापक सफलता प्राप्त हुई। उसने अनेक राज्यों में सरकार बनाई। जब 3 सितंबर को द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ तो अंग्रेजों ने भारत को जर्मनी के विरूद्ध युद्ध में शामिल घोषित कर दिया।
Question : भारतीय शासकों में टीपू सुल्तान निश्चय ही एक सबल एवं दूरदर्शी शासक था इसीलिए वह ब्रिटिश सरकार को एक बड़ी चुनौती दे सका। इस कथन का परीक्षण कीजिए।
Answer : उत्तरः उपरोक्त कथन को वृहद् संदर्भ में समझने की जरूरत है। यद्यपि यह सही है कि टीपू एक महान वीर एवं साहसी योद्धा था, जिसका प्रमाण उसने ब्रिटिश के प्रति अपनी नीति में दिखाया था लेकिन समय एवं परिस्थिति ने उसे विफल बना दिया।
Question : 1857 के महाविद्रोह के पश्चात भारत में ब्रिटिश नीति के सभी क्षेत्रों में सतर्कता एवं सावधानी देखी गई। टिप्पणी कीजिए।
Answer : उत्तरः 1857 के महाविद्रोह ने भारत और ब्रिटेन के बीच औपनिवेशिक संबंधों पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिया क्योंकि इस महाविद्रोह में भारतीयों के असंतोष ने ब्रिटिश शासन के अस्तित्व को संकट में डाल दिया।
उदाहरण के लिए सेना में भारतीय तत्वों को यूरोपीय तत्वों से संतुलित कर उनकी राष्ट्रवादी भावना को रोका गया। किसानों के शोषण को कम करने के लिए रैयतवाड़ी जैसे कानून लाए गए और प्रबुद्ध भारतीय वर्ग, ब्रिटिश के विरुद्ध संघर्ष न करें, इसका ध्यान रखा गया।
Question : पिछली शताब्दी के तीसरे दशक से भारतीय स्वतंत्रता की संभावना बढ़ने के साथ संबद्ध हो गए नए उद्देश्यों के महत्व को उजागर कीजिए।
Answer : उत्तरः भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक कृत्रिम विकास की प्रक्रिया का परिणाम था। भारतीय स्वतंत्रता की संभावना बढ़ने के साथ देशी और बाह्य परिस्थितियों के अनुकूल नए-नए जन समूह संबद्ध होते गए।
Question : सरदार वल्लभभाई पटेल ने अनुनयशीलता एवं दबाव की नीति अपनाकर भारतीय राज्यों का भारतीय यूनियन में विलय संभव बनाया। परीक्षण कीजिए।
Answer : उत्तरः स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती थी, भारत की एकता एवं अखण्डता को सुनिश्चित करना। माउंटबेटेन योजना के तहत भारत की लगभग 565 देशी रियासतों को भौगोलिक आधार पर नवगठित डोमेनियनों में सम्मिलित होना था। सभी रियासतें अपना विलय भारत के साथ कर चुकी थीं। केवल जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ एवं हैदराबाद रियासतों ने विलय से इंकार किया। इन तीनों रियासतों के विलय में वल्लभ भाई पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।
इस प्रकार वल्लभभाई पटेल ने दंड एवं पुरस्कार की नीति अपनाकर भारत की एकता एवं अखण्डता को सुनिश्चित किया।
Question : ब्रिटिश शासन के परिणाम के रूप में हुए कुछ सामाजिक और कानूनी परिवर्तन आज भी हमारे जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
Answer : उत्तरः कुछ सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन
कुछ वैधानिक परिवर्तन
स्वतंत्र व निष्पक्ष एकल न्याय प्रणाली भी ब्रिटिश सरकार की देन है।
Question : 19वीं शताब्दी के सामाजिक सुधार आंदोलन के रूप में उठे। इस अवधि में महिलाओं से संबद्ध मुख्य मुद्दे तथा विवाद क्या थे?
Answer : उत्तर: 19वीं शताब्दी के भारतीय सामाजिक सुधार आंदोलन का मुख्य बल महिलाओं की सामाजिक दशा में सुधार पर रहा था। इसके दो प्रमुख कारण थे- प्रथम, जेम्स मिल जैसे ब्रिटिश चिंतकों ने महिलाओं की सामाजिक दशा के आधार पर ही भारतीय सभ्यता को हीन करार दिया था। द्वितीय, भारत में समाज सुधार के लिए पहली आवश्यक शर्त महिलाओं की सामाजिक दशा में सुधार थी क्योंकि अगर यह सामाजिक कुरीति समाप्त हो जाती तो समाज की कुछ अन्य कुरीतियां स्वयं ही सुधर जाती यथा- जाति विभाजन, छूआछूत आदि।
19वीं शताब्दी में महिलाओं से संबंद्ध मुद्दे एक से अधिक थे और वे थे-