कंबाला
पारंपरिक भैंस दौड़ कंबाला के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- कंबाला एक पारंपरिक भैंस दौड़ हैजो गीली मिट्टी और कीचड़ से भरे धान के खेतों में होती है. यह आम तौर पर तटीय कर्नाटक (उडुपी और दक्षिण कन्नड़) में नवंबर से मार्च तक होती है.
- कंबाला के तीन प्रकार हैं: बेयर कंबाला (Bare Kambala), पोकेरे कंबाला (Pokare Kambala) और अरासु कंबाला (Arasu Kambala).
उपरोक्त में से कौन सा कथन सही है?
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Explanation :
- कंबाला एक वार्षिक उत्सव है जो कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले में मनाया जाता है.
- परंपरागत रूप से, इसे स्थानीय तुलुवा जमींदारों और दक्षिण कर्नाटक के तटीय जिलों, उडुपी तथा केरल के कासरगोड, जिसे सामूहिक रूप से तुलु नाडु के रूप में जाना जाता है, की ओर से प्रायोजित किया जाता है.
- त्योहार में राज्य के कृषक समुदाय के बीच एक लोकप्रिय और अनूठा खेल पारंपरिक भैंस दौड़ होता है.
- त्योहार के शुरुआती दिनों के दौरान इसे करगा उत्सव के रूप में जाना जाता था. बाद में इसे कंबाला उत्सव के रूप में जाना जाने लगा.
प्रकार
- कंबाला के चार प्रकार हैं: बेयर कंबाला, पोकेरे कंबाला, अरासु कंबाला और आधुनिक कंबाला.
- पहले प्रकार में बैल की रस्सी पकड़ने वाला आदमी भी पीछे से दौड़ लगाता है. लेकिन इसमें हल नहीं बंधा रहता.
- दूसरे प्रकार मेंआदमी रस्सी को पीछे से नहीं चलाता हैबल्कि वह हल से एक तख्ती बांधता है और हल पर खड़ा होता है.
- तीसरे प्रकार में एक हल दो बैलों को बांधा जाता है और रस्सी को पकड़े हुए आदमी पीछे से दौड़ लगाता है.
- चौथे प्रकार को केन पड़ाव दौड़ कहा जाता है. इस प्रारूप मेंलक्ष्य तक पहुंचना महत्वपूर्ण नहीं है. इसमें दौड़ पट्टी ( running track) के दोनों ओर दो मीटर की ऊंचाई पर एक कपड़ा बांधा जाता है. दौड़ते समय, कपड़े पर पड़े कीचड़ और दाग लगते हैं. उन्हीं कीचड़ के छीटों और दागों के अनुपात के अधर पर पुरस्कार दिया जाता है.