उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण
- 03 Dec 2019
- हाल ही में, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने अखिल भारतीय घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के परिणाम को जारी नहीं करने का फैसला किया जो 2017-2018 के दौरान राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा किये गए ।
- मीडिया रिपोर्टों में यह दावा किया गया कि डेटा के आँकड़ों को गुणवत्ता की वजह से इसे जारी नहीं करने का निर्णय लिया है।
आंकड़े को दबाने के कारण
- मीडिया लीक से पता चला है कि 2017-18 के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के नतीजे के प्रतिकूल निष्कर्षों के कारण रोक दिए गए थे, जिससे पता चलता है कि उपभोक्ता खर्च गिर रहा था।
- वस्तु एवं सेवाओं के वास्तविक उत्पादन को दर्शाने वाले प्रशासनिक आँकड़ों से ज्ञात होता है कि विगत वर्षों में लोगों के उपभोग व्यय में न केवल वृद्धि हुई है बल्कि उनके उपभोग के पैटर्न में भी विविधता आई है।
- परिवारों द्वारा सामाजिक सेवाओं, विशेषकर स्वास्थ्य एवं शिक्षा, के खपतपर सर्वेक्षण की क्षमता का अभाव है।
- 2017-18 के सर्वेक्षण के लीक हुए संस्करण के अनुसार, मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (एमपीएसई -MPCE) में गिरावट आयी है |इस तरह की यह पहली गिरावट 1972-73 के दौरान आयी थी |वास्तविक कीमतों पर वर्ष 2011-12 में MPCE 1,501 रुपए (मुद्रास्फीति के अनुसार समायोजित) था जो वर्ष 2017-18 में घटकर 1,446 रुपए रह गया।
सरकार का जवाब
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालयने कहा कि आंकड़े और रिपोर्टों के पुनरीक्षण करने की एक कठोर प्रक्रिया है, जो सर्वेक्षण के माध्यम से निर्मित होती है। मंत्रालय में आनेवाली ऐसी सभी प्रस्तुतियां, प्रकृति में मसौदे हैं और अंतिम रिपोर्ट नहीं मानी जा सकती।
- सरकार ने विशेषज्ञों की एक समिति को मामले की समीक्षा के लिए भेजा, जिसने सर्वेक्षण पद्धति में शोधन और समवर्ती आधार पर डेटा गुणवत्ता पहलुओं में सुधार सहित कई सिफारिशें की | भविष्य के सर्वेक्षणों में कार्यान्वयन के लिए समिति की सिफारिशों की जांच की जा रही है।
उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (सीईएस)
- सीईएस, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा किया गया एक पंचवर्षीय (हर पांच साल बाद होने वाला) सर्वेक्षण है, जो पूरे देश के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों के उपभोग खर्च पैटर्न पर जानकारी एकत्र करने के लिए बनाया गया है।
- उपभोक्ता व्यय पर अंतिम सर्वेक्षण का आयोजन जुलाई 2011 से जून 2012 के दौरान किया गया था जो 68वें चरण का सर्वेक्षण था।
व्यय पर सभी जानकारियां
- उपभोग व्यय सर्वेक्षण में राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोग के पैटर्न, जीवन स्तर और परिवारों के कल्याण को दर्शाते हैं, जिनका उपयोग विभिन्न सरकारी संगठनों द्वारा योजना और नीति निर्माण के लिए किए जाते हैं।
खाद्य और गैर-खाद्य व्यय
- चार्ट जुलाई 2011-जून 2012 के दौरान प्रति व्यक्ति खाद्य, गैर-खाद्य पदार्थों पर उपभोक्ता व्यय (एमपीसीई) को दर्शाता है। जो ग्रामीण एवं शहरी दोनों जगहों से लिए जाते है |
खाद्य पदार्थों में शामिल
- अनाज एवं अनाज के विकल्प,दालें व उनके उत्पाद ,दुग्धव दुग्ध उत्पाद,खाद्य तेल,अंडा, मछली और मांस,सब्जियां,फल,चीनी, नमक और मसाले,पेय पदार्थ, जलपान, प्रसंस्कृत आहार |
गैर-खाद्य पदार्थों में शामिल
- पान, तम्बाकू व नशायुक्त पदार्थ, ईंधन व प्रकाश ,वस्त्र एवं जूते, शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन, परिवहन को छोड़कर उपभोक्ता सेवाएं, विविध वस्तुएं, मनोरंजन, किराया, कर एवं उपकर, टिकाऊ वस्तुएं |
एमपीसीई (2011-2012) के अखिल भारतीय ग्रामीण व शहरी वितरण
- ग्रामीण भारत में 5% सबसे गरीब एक महीने में 816 रुपये खर्च करते हैं जबकि 5% सबसे धनी लगभग 3000 रुपये खर्च करते हैं। यह अंतर शहरी क्षेत्रों में (5 प्रतिशत परिवारों के लिए) 827 रुपये प्रति माह और शेष 95 प्रतिशत परिवारों के लिए 6000 रुपये से अधिक घोषित किया गया था।
सीईएस का महत्व
- मासिक प्रति व्यक्ति व्यय का अनुमान: इस सर्वेक्षण में इकट्ठा किए गए आंकड़ों से वस्तुओं (खाद्य और गैर-खाद्य) और सेवाओं पर प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय का पता चलता है और इस के साथ-साथ एमपीसीई वर्ग में शामिल अवयवों पर परिवारों एवं व्यक्तियों के खर्च वितरण की प्रकृति का भी पता चलता है।
- जीवन स्तर और वृद्धि का आकलन: प्रति व्यक्ति खपत खर्च के अनुमान अर्थव्यवस्था की मांग गतिशीलता को समझने में महत्वपूर्ण हैं।इसके साथ ही वस्तुओं और सेवाओं के स्थानांतरण प्राथमिकताओं को समझने और जीवन स्तर और विकास के रुझानों का आकलन करने में सहायक होगा |
- महत्वपूर्ण विश्लेषणात्मक और पूर्वानुमान साधन: यह एक अमूल्य विश्लेषणात्मक साधन उपलब्ध कराता है जो नीति निर्माताओं को संभावित संरचनात्मक विसंगतियों के पूर्वानुमानएवं पहचान करने में सहायक है | वास्तव में, इसका इस्तेमाल सरकार द्वारा जीडीपी और अन्य वृहद-आर्थिक संकेतकों को पुनर्निर्धारण करने में किया जाता है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ)
- यह अखिल भारतीय स्तर पर, विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित नमूना सर्वेक्षण का संचालन करता है। देशव्यापी घरेलू सर्वेक्षणों के माध्यम से विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विषयों, उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) आदि पर आंकड़े एकत्र किये जाते हैं।
- यह ग्रामीण और शहरी कीमतों पर आंकड़े भी एकत्र करता है | शहरी क्षेत्र में नमूना सर्वेक्षण के लिए इसका अपना संगठनात्मक ढांचा है।
अंतिम शब्द
- यदि आंकड़े के गुणवत्ता के मुद्दे थे, तो रिपोर्ट का मसौदा तैयार करने से बहुत पहले ही इसे खोज लिया जाना चाहिए था। यहां तक कि एकत्र किए गए आंकड़ों में गंभीर विसंगतियों को मानते हुए, सही निष्कर्षों और कथित सीमाओं के साथ एक रिपोर्ट प्रकाशित करना चाहिए, जो शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी हो सकता है।
- मसौदा रिपोर्ट प्रकाशित होनी चाहिए क्योंकि सरकार ने आंकड़े इकट्ठा करने में लाखों रुपये खर्च किए हैं| नागरिकों करों के रूप में सरकार को भुगतान करते है जिसका उपयोग ऐसे रिपोर्ट तैयार करने में किया जाता है।
- सर्वेक्षण के निष्कर्षों को वापस लेना समकालीन खपत आंकड़े से नीति निर्माताओं को वंचित करता है |अगले सर्वेक्षण केआंकड़े 9 या 10 वर्षों के अंतरालके बाद 2020-21 या 2021-22 में आएगा। यह समय पर एवं प्रभावी हस्तक्षेप रणनीतियों के निर्माण को हतोत्साहित करेगा।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशेष डेटा प्रसार मानक (एसडीडीएस) का भागीदार होने के नाते भारत चार क्षेत्रों में वृहत स्तर के आर्थिक आंकड़े प्रसारित करने के लिए बाध्य है- 1) आंकड़ों का समयानुसार, निश्चित समय के अंतराल पर कवरेज, 2) आंकड़ों की जनता तक पहुंच, 3) आंकड़ों की अखंडता, 4) आंकड़ों की गुणवत्ता।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की एनुअल आब्ज़रवेंस रिपोर्ट 2018 के अनुसार, भारत अपने आर्थिक आँकड़ों के प्रकाशन में प्रायः देरी करता है जो एसडीडीएस के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।
- आवश्यक आंकड़े का दमन पारदर्शी एवं जवाब देह सरकार के सिद्धांत के विरूद्ध है | एक स्वतंत्र सांख्यिकीय प्रणाली की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को कम करना बुनियादी रूप से राष्ट्रीय हित के खिलाफ है।