उत्तर प्रदेश में भाषा और बोलियां
- उत्तर प्रदेश में ‘देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी’ को अक्टूबर, 1947 में राजभाषा घोषित किया गया तथा राजभाषा हिन्दी का प्रयोग प्रदेश के समस्त कार्यालयों में 26 जनवरी, 1968 से अनिवार्य कर दिया गया । वर्ष 1989 में उर्दू को प्रदेश की द्वितीय राजभाषा घोषित किया गया।
- पांच जनपदों लखनऊ, वाराणसी, प्रयागराज, आगरा और मुरादाबाद में भारतीय भाषा केन्द्र स्थापित किये गये हैं।
- खड़ी बोली का मूलनाम ‘कौरवी’ है। खड़ी बोली का क्षेत्र सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर, हापुड़, गाजियाबाद, मेरठ, शामली, अमरोहा, सम्भल, मुरादाबाद, रामपुर है। ‘प्रिय-प्रवास’ खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है तथा सर्वप्रथम खड़ी बोली शब्द का प्रयोग ‘लल्लू ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 राजस्थान के प्रमुख मेले
- 2 राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां
- 3 राजस्थान के प्रमुख लोक देवता
- 4 राजस्थानी की स्थानीय बोलियां
- 5 राजस्थान के प्रमुख लोक नाट्य
- 6 राजस्थान के प्रमुख लोक संगीत वाद्य यंत्र
- 7 राजस्थान के प्रमुख लोक गीत
- 8 राजस्थान की हस्तकला
- 9 राजस्थान की चित्रकला
- 10 राजस्थान की वास्तुकला