सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री : एक विमर्श - आलोक सिंह
लेटरल एंट्री पर बहस भारत की नौकरशाही में परंपरा एवं नवाचार के बीच द्वंद्व को उजागर करती है। यद्यपि राजनीतिक प्रतिरोध के कारण इसे अपनाने की प्रक्रिया धीमी हुई है, परन्तु शासन-प्रशासन में बाह्य विशेषज्ञता को शामिल करने के संभावित लाभों को उपेक्षित नहीं किया जा सकता। लेटरल एंट्री का भविष्य संभवतः एक ऐसे संतुलन पर निर्भर करेगा जो विशिष्ट कौशल की आवश्यकता और सामाजिक समानता के सिद्धांतों, दोनों को संतुष्ट कर सके।
20 अगस्त, 2024 को केंद्र सरकार ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को केंद्र में वरिष्ठ नौकरशाही पदों (10 संयुक्त सचिव पद और 35 निदेशक व उप सचिव ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 भारत में जलवायु अनुकूल कृषि की आवश्यकता : चुनौतियां एवं समाधान - डॉ. अमरजीत भार्गव
- 2 भारत में सामाजिक उद्यमिता : उदय, प्रभाव एवं संभावनाएं - महेंद्र चिलकोटी
- 3 ब्रिक्स समूह : बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत के लिए अवसर एवं चुनौतियां - आलोक सिंह
- 4 बायो -ई3 नीति : बायो- मैन्युफैक्चरिंग में नवाचार और धारणीयता को बढ़ावा - डॉ. अमरजीत भार्गव
- 5 भारत में खाद्य सुरक्षा विनियमों का सुदृढ़ीकरण - संपादकीय डेस्क
- 6 भारत एवं क्वाड : एक सुरक्षित एवं समृद्ध विश्व के लिए साझेदारी का विस्तार - आलोक सिंह
- 7 वैश्विक दक्षिण: उभरती चुनौतियां वैश्विक एवं प्रमुख अनिवार्यताएं - डॉ. अमरजीत भार्गव
- 8 भारत-पोलैंड संबंध : रक्षा, सुरक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी में सहयोग हेतु 'रणनीतिक साझेदारी' - संपादकीय डेस्क
- 9 भारत-रूस संबंध: परिवर्तनशील वैश्विक व्यवस्था में साझेदारी का विस्तार - संपादकीय डेस्क
- 10 भारत का सेवा क्षेत्र: आर्थिक संवृद्धि को गति देने का एक अहम कारक - संपादकीय डेस्क