भारतीय बुनाई में अंतर-सांस्कृतिक प्रभाव

ऐतिहासिक रूप से भारत में बुनाई के प्रमाण प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1300 ईसा पूर्व) से प्राप्त होते हैं। इस सभ्यता के अनेक स्थलों पर कपास की खेती और कपड़ा उत्पादन के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

  • मुगल काल (1526-1857 ई.) में ब्रोकेड, मलमल और मखमल जैसे शानदार वस्त्रो का विकास देखने को मिलता है।
  • यूरोपीय प्रभाव से सूती और रेशमी कपड़ों की वैश्विक मांग में वृद्धि देखने को मिलती है, इससे एक व्यापार नेटवर्क की स्थापना हुई।
  • यूरोपीय देशों ने बुनाई के क्षेत्र में मशीनीकृत करघों और सिंथेटिक रंगों की शुरुआत की।
  • बनारसी रेशम की बुनाई अपनी भव्यता, सुंदरता और जटिल ....
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