भारत का अपवाह तंत्र

एक क्षेत्र में धाराओं की ज्यामितीय व्यवस्था को अपवाह प्रतिरूप कहा जाता है। इसे अनेक कारकों द्वारा नियंत्रित किया जाता है जिसमें स्थलाकृति, ढाल प्रवणता, संरचनात्मक नियंत्रण, चट्टानों की प्रकृति, विवर्तनिक प्रक्रियाएं तथा संबंधित क्षेत्र के भू-वैज्ञानिक इतिहास जैसे तत्व शामिल हैं।

भारतीय अपवाह तंत्र के प्रतिरूप

  • वृक्षाकार/डेंड्रिटिक प्रतिरूपः यह अपवाह तंत्र पेड़ की शाखाओं की भांति स्वरूप का निर्माण करता है। उदाहरण के लिए उत्तर भारत के मैदानी भाग की नदियां।
  • अरीय अपवाह प्रतिरूपः इस प्रकार का अपवाह प्रतिरूप तब निर्मित होता है जब नदियाँ एक पहाड़ी से निकलकर सभी दिशाओं में प्रवाहित होती हैं। उदाहरण के लिए, अमरकंटक से ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |

पूर्व सदस्य? लॉग इन करें


वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |

संबंधित सामग्री