बच्चों के प्रति बढ़ती हिंसाः समाज की गिरती नैतिकता का प्रतिबिंब
अंकित सिंह
"बचाव एवं सुरक्षा स्वतः ही संभव नहीं है, यह सामूहिक सर्वसम्मति और सार्वजनिक निवेश का परिणाम है। हमें अपने बच्चों को, जो कि समाज के सबसे कोमल और कमजोर नागरिक हैं, एक यातना और भय से मुक्त जीवन देना होगा!”
-नेल्सन मंडेला
उपरोक्त कथन के माध्यम से नेल्सन मंडेला ने व्यक्ति और समाज के मस्तिष्क में स्थित उन तन्तुओं को छुआ है जो उन मासूम जिंदगियों के प्रति संवेदन शून्य होते जा रहे है, जिसके कन्धों पर भविष्य की मानव सभ्यता को ऊंचाई पर ले जाने का दायित्व है।
माना जाता है कि एक सुरक्षित, अलमस्त, बदमाशियों से भरा, हंसता ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 केवल इसलिए कि आपके पास विकल्प है इसका अर्थ यह कदापि नही की उनमे से कोई एक ठीक होगा ही - डॉ. श्याम सुंदर पाठक
- 2 जीवन, स्वयं को अर्थपूर्ण बनाने का अवसर है
- 3 क्या हम सभ्यता के पतन की राह पर हैं?
- 4 क्या अधिक मूल्यवान है, बुद्धिमत्ता या चेतना?
- 5 कौशल विकास के माध्यम से ग्रामीण भारत का रूपांतरण
- 6 सार्वजनिक नीति निर्माण में महिलाओं की भागीदारी की आवश्यकता
- 7 विकास जैसी गतिशील प्रक्रिया में मानवाधिकार, मूल्यवान मार्गदर्शक हैं
- 8 ओटीटी प्लेटफार्मः विनियमन बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- 9 क्या 21वीं सदी के नेटिज़ेंस के लिए गोपनीयता एक भ्रम है?
- 10 शहरी मध्य वर्ग, भारत के रूपांतरण की कुंजी है