क्र.
| प्रमुख युद्ध
| कब हुआ
| किसके-किसके मध्य हुआ
| परिणाम व तथ्य विशेष
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1 | दशराज्ञ युद्ध | - | पुरु तथा त्रित्सु योद्धाओं के मध्य | - इस युद्ध को ‘बैटल आफ टेन किंग’ भी कहा जाता है। यह युद्ध आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब में पुरूष्णी (रावी नदी) नदी के तट पर हुआ था।
- ऋग्वेद के 7वें मंडल में इस युद्ध का वर्णन मिलता है। इस युद्ध में त्रित्सु समुदाय की विजय हुई थी, जिसका नेतृत्व राजा सुदास कर रहे थे।
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2 | कलिंग युद्ध | 261 ई.पू. (राज्याभिषेक) के 8वें वर्ष) | राजा अनंत पद्मनाभन-सम्राट अशोक | - यह युद्ध ओडिशा के धौली गिरी, भुबनेश्वर क्षेत्र में ‘दया’ नदी के तट पर हुआ था, जिसमें भारी रक्तपात हुआ था।
- इस युद्ध में सम्राट अशोक की विजय हुई थी।
- कलिंग युद्ध का विवरण अशोक के 13वें शिलालेख में प्राप्त होता है।
- अशोक के 12वां शिलालेख पूर्ण रूप से धार्मिक सहिष्णुता के प्रति समर्पित है। (स्त्री महापात्रें का उल्लेख)
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3 | हाईडेस्पीज का युद्ध | 326 ई.पू. | सिकंदर और पोरस के बीच | - इस युद्ध में सिकंदर की विजय हुई।
- इस युद्ध को झेलम के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
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4 | भारत पर प्रथम अरब/सिंध आक्रमण | 712 ई. | मो. बिन कासिम और राजा दाहिर | - इस आक्रमण में मीर कासिम ने राजा दाहिर को पराजित किया था।
- मोहम्मद बिन कासिम भारत का पहला मुस्लिम आक्रमणकारी था।
- अली अहमद द्वारा रचित ऐतिहासिक ग्रंथ ‘चचनामा’ जिसमें सिंध पर अरब विजय की जानकारी मिलती है।
- मीर कासिम जजिया लगाने वाला प्रथम मुस्लिम शासक था।
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5 | तराइन का प्रथम युद्ध | 1191 ई. | मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान | - सरहिंद किले के पास तराइन के मैदान में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच यह युद्ध हुआ।
- इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई।
- मोहम्मद गौरी का उद्देश्य भारत में मुस्लिम राज्य स्थापित करना था।
- गौरी ने वर्ष 1175 में मुल्तान के शासकों के खिलाफ अभियान शुरू किया था।
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6 | तराइन का द्वितीय युद्ध | 1192 ई. | मो. गौरी और पृथ्वीराज चौहान | - इस युद्ध में मोहम्मद गौरी की विजय हुई थी।
- इसी विजय के साथ भारत में मुस्लिम शक्ति स्थापित हुई थी।
- इस युद्ध को ‘तरावड़ी’ या ‘तराइन’ या ‘आजमाबाद युद्ध’ भी कहा जाता है।
- चन्दबरदाई जो कि पृथ्वीराज चौहान का दरबारी कवि था। उसने ‘पृथ्वीराज रासौ’ नामक पुस्तक लिखी; जिसमें पृथ्वीराज चौहान के शासन काल के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
- मोहम्मद गौरी को सबसे पहले भीम द्वितीय ने पराजित किया था।
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7 | चंदावर का युद्ध | 1194 ई. | मुहम्मद गौरी और राजा जयचंद | - इस युद्ध में मो. गौरी ने कन्नौज के राजा जयचंद को पराजित किया था। चंदावर, वर्तमान फिरोजाबाद का पूर्ववर्ती नगर था, जो उत्तर प्रदेश में फिरोजाबाद जिले का मुख्यालय है।
- यह शहर चूड़ियों के निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। इसे सुहाग नगरी के नाम से भी जाना जाता है।
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8 | तराइन का तृतीय युद्ध | 1215-1216 ई. | इल्तुतमिश और येल्दौज कुबाचा के बीच | - इस युद्ध के दौरान इल्तुतमिश ने कुबाचा को सिंध नदी में डुबा कर मार डाला था। 1217 में इल्तुतमिश ने कुबाचा को अधीनता स्वीकार करने हेतु विवश कर दिया था।
- 1228 में कुबाचा पर इल्तुतमिश ने दूसरा आक्रमण किया था।
- यह युद्ध दिल्ली की सल्तनत पर अधिकार के लिए लड़ा गया था।
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9 | बाड़ी का युद्ध (धौलपुर) | 1517-18 ई. | महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के मध्य | - बाड़ी नामक स्थान पर चौकी पहाड़ी क्षेत्र है, इसे बाड़ी धौलपुर का युद्ध के नाम से भी जानते हैं।
- इस युद्ध में महाराणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को पराजित किया था।
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10 | खतौली का युद्ध | 1518 ई. | इब्राहिम लोदी और मेवाड़ राज्य के महाराणा राणा सांगा के बीच | - इस युद्ध में मेवाड़ के राजा राणा सांगा ने इब्राहीम लोदी को पराजित किया था।
- खतोली वर्तमान में पीपल्दा तहसील, जिला कोटा (राजस्थान) में स्थित है।
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11 | गागरौन का युद्ध | 1519 ई. | राणा सांगा एवं महमूद खिलजी द्वितीय के बीच | - गागरौन के युद्ध में महमूद खिलजी पराजित हुआ तथा उसे बंदी बना लिया गया।
- गागरौन दुर्ग राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित एक दुर्ग है। यह ‘काली सिंध’ नदी और ‘आहु’ नदी के संगम पर स्थित है।
- गागरौन दुर्ग को वर्ष 2013 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था।
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12 | 21 अप्रैल, 1526 ई. | पानीपत का प्रथम युद्ध | बाबर और इब्राहीम लोधी के मध्य | - सुल्तान इब्राहिम लोदी की विशाल सेना को युद्ध में बाबर ने परास्त कर 1526 ई. में मुगल वंश की स्थापना की।
- इस युद्ध में पहली बार भारत में तोपों का प्रयोग हुआ था। तोपों को सजाने के लिए ‘उस्मानी पद्धति’ का प्रयोग किया गया था।
- बाबर की जीत का सबसे प्रमुख कारण उसकी सैन्य कुशलता थी।
- इस युद्ध में बाबर के 2 प्रसिद्ध तोपची उस्ताद और मुस्तफा ने विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- इस युद्ध में बाबर ने सैनिकों का जमाव ‘तुलुगमा रण पद्धति’ से सफलतापूर्वक किया था। ‘मुबईयान’ नामक पद्य शैली का जन्मदाता बाबर को ही माना जाता है।
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13 | खानवा का युद्ध | 1527 ई. | बाबर और राणा सांगा के मध्य | - इस युद्ध में बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया था, पहली बार बाबर ने धर्म युद्ध ‘जेहाद’ का नारा दिया।
- इसी युद्ध के बाद बाबर ने ‘गाजी’ उपाधि धारण की।
- बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में मेवाड़ के हिन्दू राज्य का वर्णन किया है।
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14 | बयाना का युद्ध (भरतपुर) | फरवरी, 1527 | राणा सांगा और बाबर के मध्य | - खानवा के युद्ध से पूर्व बयाना के युद्ध में राणा सांगा ने मुगल सम्राट बाबर की सेना को परास्त कर बयाना का किला जीता था।
- बयाना का युद्ध महाराणा सांगा और बाबर के मध्य लड़ा गया पहला युद्ध था।
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15 | घाघरा का युद्ध | 6 मई 1529 ई. | बाबर और अफगानों के मध्य | - घाघरा का युद्ध उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के निकट घाघरा नदी के तट पर लड़ा गया था।
- इस युद्ध में बाबर ने अफगानों को पराजित किया। बाबर ने ‘घाघरा के युद्ध’ में बंगाल एवं बिहार की संयुक्त सेनाओं को पराजित किया था।
- इस युद्ध की विजय के उपलक्ष में बाबर ने काबुल के निवासियों को एक-एक चांदी का सिक्का उपहार में दिया था। इसी उदारता के चलते बाबर को फ्कलंदरय् की उपाधि दी गई।
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16 | चौसा का युद्ध | 25 जून, 1539 ई. | शेरशाह सूरी और हुमायूं | - यह युद्ध गंगा नदी के उत्तरी तट बिहार में बक्सर के निकट कर्मनाशा नदी के किनारे स्थित ‘चौसा’ नामक स्थान पर लड़ा गया था।
- इस युद्ध में हुमायूं बुरी तरह पराजित हुआ और शेरशाह बंगाल और बिहार का सुल्तान बन गया। इस जीत के बाद शेरशाह ने ‘सुल्तान-ए-आदिल’ की उपाधि धारण की।
- जीत के बाद शेर खां ने शेरशाह की पदवी ग्रहण की थी।
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17 | कन्नौज /बिलग्राम का युद्ध | 1540 ई. | शेरशाह सूरी और हुमायूं | - शेरशाह सूरी ने हुमायूं को पराजित कर भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। इस युद्ध के बाद बादशाह हुमायूं बिना राज्य का राजा था। शेर खां ने आगरा एवं दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
- कन्नौज समृद्ध पुरातत्व और सांस्कृतिक विरासत वाले भारत के सबसे प्राचीन स्थलों में से एक है। इसका प्राचीन नाम कान्यकुब्ज या महोद्या है। उत्तर प्रदेश का कन्नौज जिला इत्र के लिए प्रसिद्ध है। कन्नौज को भारत की "इत्र की राजधानी" के रूप में जाना जाता है।
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18 | सेमल का युद्ध | 5 जनवरी, 1544 ई. | राजा रावमलदेव और अफगान शासक शेरशाह सूरी की सेनाओं के मध्य | - अजमेर और जोधपुर के बीच स्थित ‘सेमल’ नामक स्थान पर यह युद्ध हुआ था।
- शेरशाह इस युद्ध में विजयी रहा था।
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19 | मच्छिवारा का युद्ध | 15 मई, 1555 ई. | बादशाह हुमायूं एवं अफगान सरदार नसीब खां एवं तातार खां के मध्य | - यह युद्ध पंजाब के लुधियाना से लगभग 19 मील पूर्व में सतलुज नदी के किनारे स्थित ‘मच्छीवारा’ नामक स्थान पर हुआ था।
- इस युद्ध में हुमायूं ने विजय प्राप्त की थी, जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण पंजाब मुगलों के अधिकार में आ गया।
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20 | पानीपत का द्वितीय युद्ध | 5 नवम्बर, 1556 ई. | अकबर और हेमू | - पानीपत का दूसरा युद्ध उत्तर भारत के हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) और अकबर की सेना के बीच हरियाणा राज्य में पानीपत के मैदान में लड़ा गया था। अकबर के सेनापति खान जमान और बैरम खां के लिए यह एक निर्णायक जीत थी।
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21 | तालीकोटा का युद्ध या राक्षसी तंगड़ी का युद्ध | 23 जनवरी, 1565 ई. | दक्कन के सल्तनतों और विजयनगर साम्राज्य के बीच | - इसी युद्ध में विजय नगर साम्राज्य का अंत हो गया था। विजयनगर साम्राज्य, जो कि दक्षिण भारत का शक्तिशाली साम्राज्य था। इसकी स्थापना दो भाइयों हरिहर और बुक्का द्वारा 1336 ई. में की गई थी।
- दक्षिणी राज्यों के संघ में बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुण्डा एवं बीदर शामिल थे। इस संयुक्त मोर्चे का नेतृत्व अती आदिलशाह कर दहा है। विजयनगर का नेतृत्व रामराय कर रहा था।
- इस युद्ध को बन्नीहट्टी का युद्ध भी कहा जाता है।
- विजयनगर साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध राजा कृष्णदेव राय हुए, जो एक महान विद्वान, संगीतज्ञ एवं कवि थे, उन्होंने तेलुगू भाषा में ‘अमुक्तमाल्यदा’ तथा संस्कृत में ‘जामवंती कल्याणम’ नामक पुस्तक की रचना की। विजयनगर का वर्तमान नाम हम्पी (हस्तिनावती) है।
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22 | हल्दी घाटी का युद्ध | 18 जून, 1576 ई. | अकबर और महाराणा प्रताप के बीच | - इस युद्ध में अकबर ने महाराणा प्रताप को पराजित किया था।
- हल्दीघाटी अरावली पर्वत शृंखला से गुजरने वाला एक दर्रा है, जो राजस्थान में उदयपुर से करीब 40 किमी दूर है। इस दर्रे की मिट्टी हल्दी की तरह पीली है, इसलिए प्रचलित नाम हल्दीघाटी पड़ा। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्त्व आमेर के राजा मानसिंह द्वारा किया गया था। कर्नल टाड ने इस युद्ध को "थर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़" की संज्ञा दी है। महाराणा प्रताप मेवाड़ के 13वें राजा थे और उदय सिंह द्वितीय के सबसे बड़े पुत्र थे।
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23 | दिवेर का युद्ध | अक्टूबर, 1582 ई. | महाराणा प्रताप और अकबर | - दिवेर के युद्ध को कर्नल टाड ने फ्मेवाड़ का मैराथनय् कहा है। इस युद्ध में मुगल सेना की अगुवाई अकबर के चाचा सुल्तान खां कर रहे थे। इस युद्ध में अकबर की सेना बुरी तरह से पराजित हुई।
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24 | उतराधिकार का युद्ध | सितम्बर, 1657 में शाहजहां के बीमार पड़ने के पश्चात आरम्भ | शाहजहां के पुत्रें के मध्य | - धरमट का युद्धः 15 अप्रैल, 1658 को दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच धरमट का युद्ध हुआ, जिसमें दारा की पराजय हुई थी।
- सामूगढ़ का युद्धः 29 मई, 1658 को दारा शिकोह और औरंगजेब के मध्य सामूगढ़ के युद्ध में भी दारा की हार हुई।
- देवराई युद्धः यह युद्ध मार्च 1659 में हुआ, यह अंतिम युद्ध था ।
- दारा को इस्लाम धर्म की अवहेलना करने के अपराध में 30 अगस्त, 1659 को हत्या कर दी गई।
- ‘सिर्र-ए-अकबर’ नाम से दारा शिकोह ने 52 उपनिषदों का अनुवाद किया है। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता और योग वशिष्ठ का भी फारसी भाषा में अनुवाद किया।
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25 | खेड़ा का युद्ध | अक्टूबर, 1707 ई. | शिवाजी के पौत्र शाहू और ताराबाई की सेना के मध्य | - इस युद्ध में शाहू की विजय हुई। शाहू ने 22 जनवरी, 1708 ई. को सतारा में अपना राज्याभिषेक करवाया।
- 1713 में शाहू ने बाला जी विश्वनाथ को पेशवा बनाया था।
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26 | करनाल का युद्ध | 24 फरवरी, 1739 ई. | नादिरशाह और मुहम्मदशाह के मध्य | - करनाल युद्ध तीन घण्टे तक चला था। 57 दिन तक दिल्ली में रहने के बाद नादिरशाह वापस जाते समय अपार धन के साथ ‘तख्त-ए-ताऊस’ तथा कोहिनूर हीरा भी ले गया।
- एक सैनिक की हत्या की अफवाह के कारण नादिरशाह ने 22 मार्च, 1739 ई. को दिल्ली में कत्लेआम का आदेश दे दिया था।
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27 | गिरिया का पहला युद्ध | 1740 ई. | बंगाल के नवाब अलीवर्दी खां और सरफराज खां के बीच | - गिरिया नामक स्थान बिहार के राजमहल के निकट स्थित है।
- यहां पर पहला युद्ध 1740 ई. में बंगाल के नवाब अलीवर्दी खां और उसके प्रतिद्वन्द्वी सरफराज खां के बीच हुआ था।
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28 | प्रथम कर्नाटक युद्ध | 1740 - 1748 ई. | फ्रांसीसी सेना एवं कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन के मध्य | - प्रथम कर्नाटक युद्ध यूरोप के एंग्लो-फ्रांसीसी युद्ध का विस्तार था, जो ऑस्ट्रियाई उत्तराधिकार के लिए हुआ था।
- कर्नाटक का प्रथम युद्ध ‘सेण्ट टोमे’ के युद्ध के लिए जाना जाता है।
- ‘कैप्टन पेराडाइज’ के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने भारतीय सेना, जो महफूज खां के नेतृत्व में लड़ रही थी, को ‘अदमार नदी’ पर स्थित ‘सेण्ट टोमे’ नामक स्थान पर पराजित किया था।
- अक्टूबर 1748 में ऐक्स-ला-चैपल (Aix-la-Chapelle) की संधि के साथ यह युद्ध समाप्त हो गया।
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29 | द्वितीय कर्नाटक युद्ध | 1751-1755 ई. | फ्रांसीसी और अंग्रेज सेना | - कर्नाटक का दूसरा युद्ध हैदराबाद तथा कर्नाटक के सिंहासनों के विवादास्पद उत्तराधिकारियों के कारण हुआ था।
- जनवरी, 1755 ई. में ‘पाण्डिचेरी की सन्धि’ हुई। इस सन्धि के साथ ही युद्ध विराम हो गया।
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30 | प्लासी का युद्ध | 23 जून, 1757 ई. | अंग्रेजों और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच | - प्लासी का पहला युद्ध बंगाल के मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में भागीरथी नदी के किनारे ‘प्लासी’ नामक स्थान पर हुआ था। इस युद्ध में अंग्रेजों की विजय हुई और भारत में अंग्रेजी शासन की नींव पड़ी।
- 27 सितम्बर, 1760 को अंग्रेजों एवं मीर कासिम के मध्य एक संधि हुई, जिसमें मीर कासिम ने कम्पनी को बर्दवान, मिदनापुर तथा चटगांव के जिले देने की बात मान ली तथा इसके साथ ही दक्षिण के सैन्य अभियान में कम्पनी को 5 लाख रुपये देने की बात कही।
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31 | तृतीय कर्नाटक युद्ध | 1756 - 1763 ई. | फ्रांसीसी और अंग्रेज | - कर्नाटक का तृतीय युद्ध ‘सप्तवर्षीय युद्ध’ का ही एक महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है। इस युद्ध में फ्रांस ने ऑस्ट्रिया को तथा इंग्लैण्ड ने प्रशा को समर्थन देना शुरू किया था, जिसके परिणामस्वरूप भारत में भी फ्रांसीसी और अंग्रेज सेना में युद्ध प्रारम्भ हो गया।
- यह युद्ध वर्ष 1763 में हुई फ्पेरिस शांति संधिय् के साथ समाप्त हो गया था। संधि के अनुसार पुदुच्चेरी एवं चंदन नगर पुनः फ्रांस को सुपुर्द किये गए, लेकिन वह उन क्षेत्रें में सिर्फ व्यापारिक गतिविधियां ही कर सकते थे।
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32 | वांडीवाश का युद्ध | 1760 ई. | अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच | - इस युद्ध में अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को पराजित कर दिया था। इसके पश्चात फ्रांसीसियों ने पाण्डिचेरी को अंग्रेजों को सौंप दिया।
- इसी युद्ध में अंग्रेजों ने भारत में फ्रांसीसियों की राजनीतिक शक्ति को पूर्णतः समाप्त कर दिया था।
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33 | पानीपत का तृतीय युद्ध | 14 जनवरी, 1761 ई. | अहमदशाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच | - यह युद्ध 18वीं सदी का सबसे बड़ा युद्ध माना गया है। इस युद्ध में मराठों की पराजय के पश्चात ब्रिटिश सत्ता के उदय का रास्ता लगभग साफ हो गया था।
- वालाजी वाजीराव के समय में यह युद्ध हुआ।
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34 | गिरिया का दूसरा युद्ध | सितंबर 1763 ई. | नवाब मीर कासिम और अंग्रेज ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बीच | - इस युद्ध में मीर कासिम की अंग्रेजों द्वारा पराजय हुई थी।
- बंगाल से मंगहिर तक मीर कासिम की हार हुई तथा मीर जाफर मुर्शिदाबाद नवाब के रूप में फिर से स्थापित किया गया।
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35 | बक्सर का युद्ध | 22 अक्टूबर, 1764 ई. | अंग्रेजों और शुजाउद्दौला, मीर कासिम एवं शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच। | - इस युद्ध में अंग्रेजों ने तीनों सेनाओं को संयुक्त रूप से पराजित कर विजय हासिल की थी।
- इस लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई और इसके परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, झारखंड, और बांग्लादेश का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कंपनी के हाथों में चला गया था।
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36 | प्रथम आंग्ल- मराठा युद्ध | 1775-82 ई. | मराठा और अंग्रेजों के मध्य | - वर्ष 1782 में सालबाई की संधि के साथ ही इस युद्ध की समाप्ति हो गयी। इस संधि ने सिंधिया को उसके सभी क्षेत्र वापस कर दिये और दोनों पक्षों के मध्य आने वाले 20 वर्षों तक शांति स्थापना की बात स्वीकार की गई। इस समय गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग था।
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37 | प्रथम आंग्ल- मैसूर युद्ध | 1767-69 ई. | हैदर अली और मद्रास प्रेसिडेंसी के मध्य | - इस युद्ध में अंग्रेजों की हार हुई थी। दक्कन में भारतीय शक्तियों में हैदर अली पहला ऐसा व्यक्ति था, जिसने अंग्रेजों को पराजित किया।
- हैदर अली और अंग्रेजों के मध्य वर्ष 1769 ई. में मद्रास की संधि हुई। इस संधि में दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के जीते हुए क्षेत्रें को वापस लौटा दिया तथा युद्ध की स्थिति में दोनों ने एक-दूसरे का साथ देने की बात भी स्वीकार की।
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38 | द्वितीय आंग्ल- मैसूर युद्ध | 1780-84 ई. | हैदर अली और अंग्रेजों के मध्य | - द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध 4 वर्षों तक जारी रहा। हैदर अली और जनरल आयरकूट के बीच 1781 ई. में ‘पोर्टोनोवा’ का युद्ध हुआ।
- इस युद्ध में हैदर अली पराजित हुआ। वर्ष 1782 ई. में हैदर अली का निधन हो गया।
- इसके बाद टीपू सुल्तान ने 1784 ई. तक युद्ध को जारी रखा और अंततः वर्ष 1784 ई. में टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के मध्य, मंगलौर की संधि हुई। इस संधि में जीते गये प्रदेशों को एक दूसरे ने वापस कर दिया। इस प्रकार यह युद्ध अनिर्णायक रहा।
- गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स था।
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39 | तृतीय आंग्ल- मैसूर युद्ध | 1790-92 ई. | टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के बीच | - तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध टीपू के ‘त्रवणकोर’ पर आक्रमण करने के साथ ही शुरू हुआ, त्रवणकोर ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये काली मिर्च का एकमात्र स्रोत था।
- वर्ष 1792 में श्रीरंगपट्टनम की संधि के साथ युद्ध समाप्त हुआ। इस युद्ध के कारण दक्षिण भारत में टीपू की प्रभावशाली स्थिति नष्ट हो गई एवं वहां अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित हो गया।
- गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस था।
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40 | चतुर्थ आंग्ल- मैसूर युद्ध | मार्च 1799 ई. | टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के बीच | - 17 अप्रैल, 1799 को युद्ध शुरू हुआ और 4 मई, 1799 को युद्ध समाप्त हुआ। इस युद्ध में टीपू की पराजय हुई, जिसके साथ ही मैसूर शक्ति का पतन हो गया था।
- गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेक्सी था।
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41 | द्वितीय आंग्ल- मराठा युद्ध | 1803-1805 ई. | अंग्रेजों और मराठों के मध्य | - लॉर्ड वेलेजली द्वारा मराठों पर सहायक संधि थोपने और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की नीति के चलते द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध प्रारंभ हो गया।
- 1802 ई. में पेशवा ने अंग्रेजों के साथ बेसिन की संधि की, जिसके तहत पेशवा ने अंग्रेजों का संरक्षण स्वीकार कर पूरी तरह से उन पर निर्भर हो गए थे। 1806 में होल्कर व अंग्रेजों के मध्य राज घाट की संधि हुई और युद्ध समाप्त हो गया।
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42 | आंग्ल-नेपाल युद्ध या गोरखा युद्ध | 1814-16 ई. | ब्रिटिश भारतीय सरकार और नेपाल के बीच | - गोरखा युद्ध के समय भारत का गवर्नर-जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स था।
- दोनों पक्षों द्वारा नवम्बर, 1815 ई. में सुगौली की संधि की गई,जिसके तहत नेपाल को अपना एक-तिहाई भूभाग ब्रिटिश हुकूमत को देना पड़ा।
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43 | सीताबल्डी का युद्ध | 1817 ई. | भोंसलें शासक अप्पा साहब तथा अंग्रेजों के मध्य | - इस युद्ध में भोंसला के नेतृत्व में मराठों की सेना पराजित हो गई। अप्पा साहब ने आत्म-समर्पण कर दिया।
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44 | तृतीय आंग्ल- मराठा युद्ध | 1817-1819 ई. | मराठा और अंग्रेजों के मध्य | - इस युद्ध में मराठा सरदारों द्वारा अपनी खोई हुई स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया गया था।
- हेस्टिंग के पिण्डारियों के अभियान से मराठों के प्रभुत्व को चुनौती मिली और युद्ध आरम्भ हो गया। बाजीराव द्वितीय ने वर्ष 1818 ई. को जॉन मेलकबम के सामने आत्म-समर्पण कर दिया।
- इस युद्ध में पिंडारियों का दमन कर दिया गया था।
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45 | प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध | वर्ष (1823-24 ई.) | अंग्रेज और बर्मा के मध्य | - 1823 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर-जनरल के रूप में लॉर्ड एमहर्स्ट भारत आया, जिसने फरवरी 1824 में बर्मा पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। इस युद्ध का मुख्य कारण बर्मा राज्य की सीमाओं का ब्रिटिश साम्राज्य के आस-पास तक विस्तृत किया जाना था।
- अंग्रेजों ने वर्ष 1825 में असम पर विजय प्राप्त कर रंगून से आगे बढ़ गए। अंततः याण्डबू की संधि पर फरवरी, 1826 में दोनों पक्षों ने हस्ताक्षर किए और युद्ध की समाप्ति हुई।
- लार्ड एमहर्स्ट को ब्रिटिश सरकार द्वारा उनके कार्य से प्रसन्न होकर उन्हें फ्अर्ल आफ अराकानय् की उपाधि से सम्मानित किया।
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46 | प्रथम आंग्ल-अफगान | 1839-1842 ई. | अंग्रेजों और अफगान सैनिकों के मध्य | - आंग्ल-अफगान युद्ध को ‘अफगान युद्ध’ भी कहा जाता है।
- इस समय गवर्नर-जनरल लॉर्ड ऑकलैण्ड था।
- इस युद्ध का प्रमुख कारण अंग्रेजों को रूसी साम्राज्य के विस्तार नीति से डर था।
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47 | प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध | 1845-46 ई. | सिख और अंग्रेजों के मध्य | - वर्ष 1844 ई. में लॉर्ड हार्डिंग गवर्नर जनरल बनकर भारत आया।
- सिख सिपाहियों ने सतलुज नदी को पार करने को अंग्रेजों द्वारा 1809 में अमृतसर की संधि का उल्लंघन माना और इसके कारण सिखों और अंग्रेजी कंपनी के बीच प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध हुआ था। इस युद्ध में सिखों की सेना का नेतृत्व लालसिंह और तेजा सिंह कर रहे थे।
- इस युद्ध में अंग्रेजों ने सिखों को पराजित किया।
- इस युद्ध का अंत 9 मार्च, 1846 को लाहौर की संधि से हुआ।
- अंग्रेजों ने दिलीप सिंह को ही राजा बनाए रखा।
- लाहौर की अपमानजनक संधि के बाद सिख काफी नाखुश थे और उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था तथा फिर से भैरोवाल की संधि (1846) हुई।
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48 | द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध | 1848 - 1849 ई. | सिक्ख और अंग्रेजों के मध्य | - द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध के समय भारत का गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी था।
- इस युद्ध के दौरान पहली लड़ाई चिलियानवाला वाला की लड़ाई सिख नेता शेर सिंह एवं अंग्रेज कमांडर गफ के मध्य लड़ा गया था।
- दूसरी लड़ाई गुजरात के चिनाब नदी के किनारे चार्ल्स नेपियर के नेतृत्त्व में अंग्रेजों ने 21 फरवरी, 1849 को लड़ा गया।
- इस युद्ध में भी सिखों को हार का सामना करना पड़ा।
- 29 मार्च, 1849 को डलहौजी ने सम्पूर्ण पंजाब का विलय अंग्रेजी राज्य में कर लिया
- महाराजा दिलीप सिंह को 50,000 पौंड वार्षिक पेंशन देकर शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैंड भेज दिया गया।
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49 | चिलियांवाला युद्ध | 13 जनवरी, 1849 ई. | ईस्ट इंडिया कंपनी और सिखों के बीच | - इस युद्ध में सिखों का नेतृत्व शेर सिंह ने किया था। इस युद्ध में सिखों की हार हुई थी।
- यह युद्ध पंजाब के चिलियांवाला (वर्तमान पाकिस्तान) में लड़ा गया था, इसलिए इसे चिलियांवाला युद्ध कहा जाता है।
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50 | द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध | 1852 ई. | अंग्रेजों और बर्मा के मध्य | - लार्ड डलहौजी इस समय गवर्नर-जनरल था।
- यांडबू की संधि के आधार पर राजनीतिक एवं व्यावसायिक मांगों के फलस्वरूप 1852 ई. में द्वितीय बर्मा युद्ध प्रारंभ हो गया था।
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51 | द्वितीय आंग्ल-अफगान युद्ध | 1878-1880 ई. | अंग्रेजों और अफगान सैनिकों के मध्य | - यह युद्ध वायसराय लॉर्ड लिटन प्रथम के शासन काल से प्रारम्भ होकर उसके उत्तराधिकारी लॉर्ड रिपन (1880-1884 ई.) के शासन काल में समाप्त हुआ।
- इस युद्ध में अंग्रेज अफगानिस्तान पर स्थायी कब्जा तो नहीं कर सके, लेकिन नीति पर नियंत्रण जरूर बनाये रखा।
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52 | पोर्टो नोवो की लड़ाई | 1781 ई. | हैदरअली और अंग्रेजों के मध्य | - 1781 में कोलेरून नदी के तट पर हुए इस युद्ध में टीपू सुल्तान ने ब्रिटिश-भारतीय सैनिकों को पराजित कर दिया था।
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53 | तृतीय आंग्ल-बर्मा युद्ध | 1885 ई. | अंग्रेजों और बर्मा के मध्य | - यह 19वीं सदी में बर्मन तथा ब्रिटिश लोगों के बीच लड़े गए तीन युद्धों में से अंतिम था।
- उस समय भारत का वायसराय लार्ड डफरिन था; जबकि थिबा बर्मा का शासक था। मांडले उसकी राजधानी थी।
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54 | तृतीय आंग्ल-अफगान युद्ध | 1919 ई. | अंग्रेजों और अफगान के मध्य | - तृतीय और अंतिम युद्ध में अफगानों की करारी हार हुई और अगस्त, 1919 ई. ‘रावलपिण्डी की सन्धि’ के साथ युद्ध विराम हुआ।
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