पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार भारत अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के उद्देश्य से समुद्र के नीचे खनिजों का पता लगाने की योजना बना रहा है। दुनिया में समुद्रों की सतह पर तांबा, निकल, कोबाल्ट, मैंगनीज, लौह और दुर्लभ-मृदा तत्व (Rare earth elements) काले आलू के आकार वाले बहुधात्विक पिंड के रूप में बिखरे हुए हैं।
इनका प्रयोग स्मार्टफोन, लैपटॉप और पेसमेकर जैसे अत्याधुनिक उपकरणों को बनाने में किया जाता है। प्रोद्योगिकी और अवसंरचना क्षेत्र के विस्तार के चलते इन संसाधनों की मांग बढ़ती जा रही है और आपूर्ति लगातार घट रही है।
भारत, एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। संयुक्त राष्ट्र के निकाय अंतरराष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (International Seabed Authority - ISA) जो उच्च समुद्रों में खनन की देखरेख करती है, ने भारत को हिंद महासागर के 75,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में वाणिज्यिक प्रयोग के लिए खनन की अनुमति प्रदान की है।