अदालती कार्यवाही का सीधा प्रसारण

न्यायपालिका के काम में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अदालत की कार्यवाही के सीधा प्रसारण (लाइव स्ट्रीमिंग) के लिए अपनी मंजूरी प्रदान की है और संभावना व्यक्त किया है कि इससे अधिक जवाबदेही और कानून के शासन के स्थापना में मदद मिलेगी।

अदालत के आदेश के अनुसार, पायलट प्रोजेक्ट को एक प्रगतिशील, संरचित और चरणबद्ध तरीके से कार्यान्वित किया जाना चाहिए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है कि कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग का उद्देश्य समग्र रूप से हासिल किया जा सके। लाइव स्ट्रीमिंग न तो न्यायालय के प्रशासन में हस्तक्षेप करता और न ही न्यायालय की गरिमा को धूमिल करता है।

  • एक पायलट परियोजना के रूप में यह तर्क दिया जा रहा है कि केवल संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व के मामलों को ही संवैधानिक बेंच से पूर्व अनुमति के बाद अंतिम सुनवाई के लिए लाइव-स्ट्रीम किया जा सकता है। इसके लिए यह भी कहा गया है कि संबंधित अदालत की अनुमति को पहले से ही लिखित में मांगना होगा।
  • इस कार्यवाही के लिए दोनों पक्षों से सहमति भी लिया जाना चाहिए और यदि उनके बीच कोई मतभेद हो तो संबंधित न्यायालय इस मामले में उचित निर्णय ले सकते हैं। संबंधित अदालत को कार्यवाही के किसी भी चरण में अनुमति रद्द करने की शक्ति भी होगी।
  • कोर्ट की कार्यवाही और लाइव प्रसारण के बीच उचित समय-देरी (10 मिनट का) होना चाहिए ताकि न्यायाधीश को राष्ट्रीय सुरक्षा या व्यक्तिगत निजता के मामलों में वकील के गलत आचरण पर या किसी संवेदनशील मामले में प्रसारण के दौरान आवाज को बंद (Mute) करने का अवसर मिल सके।

आम नागरिकों के लिए उपलब्ध सरकार की सुविधाओं को इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध कराना ई-गवर्नेंस या ई-शासन कहलाता है। इसके अंतर्गत शासकीय सेवाएँ और सूचनाएँ ऑनलाइन उपलब्ध होती हैं। आज भारत सरकार और लगभग सभी प्रमुख हिन्दी भाषी राज्यों की सरकारें आम जनता के लिए अपनी सुविधाएँ इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध करा रही हैं। विद्यालय में दाखिला हो, बिल भरना हो या आय-जाति का प्रमाणपत्र बनावाना हो, सभी मूलभूत सुविधाएँ हिन्दी में उपलब्ध हैं।

'हिन्दी में ई-गवर्नेंस से सबसे अधिक लाभान्वित दूर-दराज के क्षेत्रें के लोग हो रहे हैं जिनके लिए अन्यथा ऐसी सुविधाएँ पारंपरिक रूप से पाना अत्यंत खर्चीला और समय लेने वाला था। इस दिशा में अभी शुरुआत ही हुई है तथा माना जा रहा है कि आने वाले समय में सभी मूलभूत सरकारी सुविधाएँ कंप्यूटर तथा मोबाइल के माध्यम से मिलने लगेंगी जिससे समय, धन तथा श्रम की बचत होगी तथा देश के विकास में योगदान मिलेगा।

भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक विभाग की स्थापना 1970 में की और 1977 में नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर की स्थापना ई-शासन की दिशा में पहला कदम था। हाल के दिनों में सर्वत्र एक नई अवधारणा गुंजायमान हो रही है और वह है 'ई-प्रशासन' (E-Governance) 'इलेक्ट्रॉनिक प्रशासन' अथवा 'आई टी एडमिनिस्ट्रेशन' (IT Administration)। ई-गवर्नेंस वैकल्पिक प्रशासन (E-Governance is the alternative government) है। ई-प्रशासन ऐसा शासन है जो कहीं भी किसी भी समय (E-Government is government any time, any where) उपलब्ध है। ई-गवर्नेंस सक्षम सरकार] सर्वश्रेष्ठ सरकार और प्रभावी सरकार (E-Governance is really E-nabled government Exellent-Government and Effective government) है।

नैस्कॉम के अध्यक्ष स्व. देवांग मेहता के अनुसार ई-प्रशासन से तात्पर्य स्मार्ट गवर्नमेंट से है। स्मार्ट अर्थात एस से सिम्पल, एम से मॉडल, ए से एकाउन्टेबल, आर से रिस्पोन्सिबल तथा टी से ट्रांसपेरेंट। तात्पर्य यह है कि सूचना तकनीकी के प्रयोग से सरकार स्मार्ट हो जाएगी।

ई-प्रशासन

"ई-प्रशासन ऑनलाइन प्रशासन है" (The objective will be to offer all government related services and utilities on line)

ई-प्रशासन के वस्तुतः दो रूप हैं। एक रूप है सरकार और विभागों के आपने आंतरिक कामकाज संबंधी। दूसरा सरकार या विभाग के आम जनता से सीधे संपर्क संबंधी। दोनों ही रूप महत्वपूर्ण हैं। पहले स्वरूप से सरकार के अपने फैसले लेने का काम सरल, तेज और भ्रष्टाचार विहीन हो सकता है। आम जनता उससे केवल अप्रत्यक्ष रूप से ही लाभान्वित हो सकती है। दूसरे स्वरूप में आम जनता को उसकी कामकाज संबंधी सूचनाएं एवं प्रक्रियाएं ऑनलाइन मिलने लगती हैं। उसके समय में बचत होती है तथा व्यय भी कम होती है इसलिए जनता इससे अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होती है। रेल रिजर्वेशन की ई-व्यवस्था इसका अनुपम उदाहरण है।

ई-प्रशासन के लाभ

  1. ई-प्रशासन सरकार और लोगों के बीच सहज संवाद का प्रतीक है। इंटरनेट, ई-मेल, आदि के माध्यम से सरकार अपने नागरिकों से सीधा संवाद स्थापित करने में सक्षम होगी।
  2. ई-प्रशासन से पुरानी प्रक्रिया से सरकार को छुटकारा मिलेगा और काम करने के तरीकों में अनवरत सुधार होगा।
  3. दूरदराज के गांवों को शहरों में स्थित सरकारी दफ्तरों से जोड़कर दूरी को अर्थहीन किया जा सकेगा।
  4. इससे आम लोगों का पैसा और समय बचेगा।
  5. प्रशासन पारदर्शी होगा, लोगों के सूचना के अधिकार को अमली जामा पहनाना आसान हो जाएगा।
  6. प्रशासन में शीघ्र निर्णय लिए जा सकेंगे, चुस्त और सही आंकड़े एवं सूचनाएं सदैव उपलब्ध रहेंगी।
  7. ई-प्रशासन से नौकरशाही का बोझ कम होगा, कर्मचारियों एवं लागत में कटौती संभव होगी।
  8. कंप्यूटरों के माध्यम से समन्वय आसान एवं उत्तम हो सकेगा।
  9. भ्रष्टाचार में कमी आएगी और सरकारी राजस्व वसूली पर्याप्त ढंग से हो सकेगी।

ई-गवर्नेंस के प्रकार

ई-गवर्नेंस 4 प्रकार की होती है और चारो की एक अलग प्रणाली तथा कार्य श्रृंखला होती है। जिसके तहत वह कार्य करती है। इसके कुछ प्रकार निम्नवत हैं-

  • G2G (Government to Government): जी 2 जी यानी सरकार से सरकार। जब सूचना और सेवाओं का आदान-प्रदान सरकार की परिधि में होता है] तो इसे जी 2 जी इंटरैक्शन कहा जाता है। यह विभिन्न सरकारी संस्थाओं और राष्ट्रीय] राज्य और स्थानीय सरकारी संस्थाओं के बीच और इकाई के विभिन्न स्तरों के बीच कार्य करता है।
  • G2C (Government to Citizen): जी 2 सी यानी सरकार से नागरिक] यह सरकार और आम जनता के बीच बातचीत को जी 2 सी कहते हैं। यहां एक प्रकिया सरकार और नागरिकों के बीच स्थापित की गई है] जिससे नागरिक विभिन्न प्रकार की सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच सकते हैं। नागरिकों को किसी भी समय] कहीं भी सरकारी नीतियों पर अपने विचारों और शिकायतों को साझा करने की स्वतंत्रता है।
  • G2B (Government to Business): जी 2 बी यानी सरकार से व्यवसाय] इसमे ई-गवर्नेंस बिजनेस क्लास को सरकार के साथ सहज तरीके से बातचीत करने में मदद करता है। इसका उद्देश्य व्यापार के माहौल में और सरकार के साथ बातचीत करते समय पारदर्शिता स्थापित करना है।