भारत एवं चीन ने 26 नवंबर, 2018 को दोहरे कराधान से बचने और आय कर के संदर्भ में वित्तीय अनियमितता की रोकथाम के लिए दोहरी करवंचना समझौते (India-China Double Taxation Avoidance Agreement-DTAA) में संशोधन के लिए एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किये। केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अनुसार इस संशोधन से दोनों देशों को सूचनाओं के आदान-प्रदान के जरिए कर चोरी की रोकथाम और दोहरे कराधान से बचने में मदद मिलेगी। पहली बार यह द्विपक्षीय समझौता वर्ष 1994 में हुआ था।
सरकार करवंचना को रोकने व अधिक कर वसूल करने के उद्देश्य से करों में सुधार कर रही है जिनके अंतर्गत प्रोव्म् चलैया समिति की रिपोर्ट के आधार पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों (Direct & Indirect Taxes) से सम्बन्धित अनेक सिफरिशों को सरकार ने मानकर कार्यरूप में परिणत कर दिया हैः
अवधारणा
सामान्य रूप से शासन सम्बंधी कार्यसंचालन के लिए व्यक्तिगत इकाइयों पर अनिवार्य उद्ग्रहण के रूप में कर (टैक्स) लगाए जाते हैं। करों को सामान्यतः राजस्व वृद्धि का ही साधन माना जाता है किंतु राष्ट्र की अर्थनीति को भी ये प्रभावित करते हैं। कर लगाने का उद्देश्य विकास कार्यों के लिये धन एकत्र करना तथा यथासंभव राष्ट्र की विषमता को दूर करना है। इसीलिए जिनकी अधिक आय है, उन्हें कम आयवालों की अपेक्षा अधिक मात्रा में कर देना पड़ता है। शासन की अन्य नीतियों के सामंजस्य पर आधारित कराधान का व्यापक उद्देश्य जनता का अधिकाधिक कल्याण करना है। तात्विक कार्यों के सम्यक सम्पादन के लिए करों द्वारा ही शासन को आर्थिक दृढ़ता प्राप्त होती है।
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST)
वस्तु एवं सेवा कर (GST) भारत में 1 जुलाई 2017 से लागू अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था है। इस कर व्यवस्था को लागू करने के लिए भारतीय संविधान में संशोधन (122वां) किया गया। सरकार और अर्थशास्त्री इसे स्वतंत्रता के पश्चात सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बता रहे हैं। इसके माध्यम से केन्द्र एवम् राज्य सरकारों द्वारा भिन्न-भिन्न दरों पर लगाए जा रहे विभिन्न करों को हटाकर पूरे देश के लिए एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली लागू की गई है। यह भारत को एकीकृत साझा बाजार बनाने में सहायक है।
जीएसटी की प्रकृति: जीएसटी एक मूल्य वर्धित कर है जो कि विनिर्माता से लेकर उपभोक्ता तक वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति के प्रत्येक मूल्यवर्धन चरण पर लगता है। प्रत्येक चरण पर भुगतान किये गये इनपुट करों का लाभ मूल्य संवर्धन के अगले चरण में उपलब्ध होता है। इस प्रकार यह प्रत्येक चरण में मूल्य संवर्धन पर जीएसटी को एक आवश्यक कर बना देता है। इससे अंतिम उपभोक्ता को आपूर्ति श्रृंखला में अंतिम डीलर द्वारा लगाया गया जीएसटी ही वहन करना होता है।
विशेषतायें: पहले किसी भी सामान पर 30 से 35 प्रतिशत तक कर देना पड़ता था। कुछ चीजों पर तो प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से लगाया जाने वाला कर 50 प्रतिशत से ज्यादा होता था। जीएसटी आने के बाद यह कर अधिकतम 28 प्रतिशत हो गया है।
जीएसटी ने भारत की अर्थव्यवस्था को ‘‘एक देश, एक कर’’, वाली अर्थव्यवस्था बना दिया है। इससे पहले भारत में 17 अलग-अलग तरह के कर चुकाने होते थे। जीएसटी लागू होने के बाद एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, वैट, मनोरंजन कर, लग्जरी कर जैसे बहुत सारे कर खत्म हो गए। जीएसटी लागू होने के बाद किसी भी सामान और सेवा पर कर वहां लगता है जहां वह बिकता है।
करदाताओं को जीएसटी के लिए पंजीकरण, रिटर्न, भुगतान आदि जैसी सभी सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध हैं। जीएसटी यह सुनिश्चित करता है कि अप्रत्यक्ष कर दरें और ढांचे पूरे देश में एकसमान रहें।
जीएसटी से स्थानीय रूप से निर्मित वस्तुओं और सेवाओं की लागत कम हो जाती है। इससे भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
इस कर की दरें वस्तु एवं सेवा कर परिषद द्वारा निर्धारित की जाती है, जिसके अध्यक्ष केन्द्रीय वित्त मंत्री होते हैं।
जीएसटी काउंसिल ने जीएसटी की चार दरें निर्धारित की हैं। ये 5, 12, 18 एवं 28 प्रतिशत हैं। कई जन उपयोगी वस्तुओं को जीएसटी से छूट दी गई है। जबकि लग्जरी एवं महंगे सामान पर जीएसटी के अलावा सेस भी लगता है। सरकार के अनुसार 81 प्रतिशत चीजें जीएसटी की 18 प्रतिशत की श्रेणी में आती हैं।
20 लाख से कम की वार्षिक बिक्री वाले व्यापारियों को इस कर व्यवस्था से छूट दी गई है।
GST समिति
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 279(a) के अंतर्गत राष्ट्रपति जीएसटी परिषद का गठन करेंगे। जीएसटी परिषद के गठन में केंद्रीय वित्त मंत्री (जो परिषद के अध्यक्ष होंगे), राज्य मंत्री (राजस्व) और राज्य वित्त/कराधान मंत्री सम्मिलित होंगे।
समिति के कार्यः जीएसटी परिषद केंद्र और राज्यों को निम्न मामलों पर अपनी सलाह देगी-
ई-वे बिल वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था के तहत देश भर में अंतर-राज्यीय आवागमन के लिए महत्वपूर्ण ई-वे बिल (electronic way bill) नए वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल, 2018 से लागू हो गया। जीएसटी लागू होने के बाद 50 हजार रुपये या ज्यादा के माल को एक राज्य से दूसरे राज्य या राज्य के अंदर 50 किलोमीटर या अधिक दूरी तक ले जाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक परमिट की जरूरत होगी। इस इलेक्ट्रॉनिक बिल को ही ई.वे बिल कहते हैं, जो जीएसटीएन नेटवर्क के अंतर्गत आता है। ई-वे बिल की वैधता माल (वस्तु) ले जाने की दूरी के आधार पर तय होगी। अगर किसी वस्तु की गतिशीलता (मूवमेंट) 100 किलोमीटर तक होता है तो यह बिल सिर्फ एक दिन के लिए वैलिड (वैध) होता है। अगर इसका मूवमेंट 100 से 300 किलोमीटर के बीच होता है तो बिल 3 दिन, 300 से 500 किलोमीटर के लिए 5 दिन, 500 से 1000 किलोमीटर के लिए 10 दिन और 1000 से ज्यादा किलोमीटर के मूवमेंट पर 15 दिन के लिए मान्य होगा। |