Question : कठपुतली कला में प्रयुक्त महत्वपूर्ण भारतीय कठपुतलियों के प्रकारों की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः पारंपरिक कठपुतली कला में विभिन्न प्रकार की कठपुतलियों का उपयोग किया जाता है। यह भिन्नता रूप, आकार, उपयोग एवं प्रस्तुतिकरण के स्तर पर होती है। कठपुतली के प्रमुख पारंपरिक रूप छाया कठपुतली, धागा/डोर कठपुतली, दस्ताना कठपुतली, घड़ी/डंडा कठपुतली आदि हैं।
Question : मुग़ल चित्रकला की महत्वपूर्ण विशेषताओं की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः मुगल चित्रकला मध्यकालीन भारत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण चित्रकलाओं में शामिल है तथा मुगल दरबार, पेड़ पौधे, उद्यान आदि से संबंधित सूचनाओं का महत्वपूर्ण स्रोत है। मुगल चित्रकला शैली की प्रमुख विशेषताएं अग्रलिखित हैं-
1- मुखाकृति चित्रणः यह मुगल चित्रकला की प्रमुख विशेषता है। लगभग सभी चित्र ‘एक-चश्मा’ (चेहरा का एक तरपफ से चित्रण जिससे केवल एक आंख की दिखाती है) प्रकार के हैं।
2- हाशियों की विशेष सजावटः यह मुगल शैली पर ईरानी प्रभाव को दर्शाता है। लताओं-बेलबूटों द्वारा हाशियों की सजावट सामान्यतया प्रत्येक चित्र में की जाती थी।
3- प्रकृति का सजीव चित्रणः पक्षियों, पशुओं, पेड़ पोधों का सजीव चित्रण मुगल शैली की विशेषता थी। मंसूर पक्षियों का सर्वश्रेष्ठ चित्रण करने के लिए विख्यात था।
4- सूक्ष्म रेखा चित्रणः इस शैली के पोट्रेट में सूक्ष्म रेखा चित्रण का सुंदर उपयोग किया गया है।
5- पोट्रेट चित्रणः मुगल शैली में पोट्रेट व्यापक पैमाने पर चित्रित किए गए। प्रायः प्रत्येक मुगल शासक अपना पोट्रेट बनवाने में रूचि रखता था।
6-परिधानः मुगल चित्रकला में लोगों द्वारा धरण किए गए परिधानों को अत्यंत बारीकी एवं सुंदरता से चित्रित किया गया है।
7-ऐतिहासिक दृश्यः ऐतिहासिक/पौराणिक घटनाओं का भी पर्याप्त चित्रण किया गया उदाहरण के लिए दास्तान-ए-अमीर हम्ज़ा।
8- इनके अतिरिक्त मुगल चित्रकारी में भावों एवं संवेदनाओ का सुंदर चित्रण किया गया है तथा चित्रों में स्वर्ण, रजत रंगों एवं सुलेरून का सुंदर प्रयोग किया गया है।
Question : उन कारणों की चर्चा करें जिसके फलस्वरूप विद्वान गुप्त काल को ‘‘स्वर्ण युग’’ कहते हैं।
Answer : उत्तरः गुप्तकाल के दौरान भारत में धर्म, कला, दर्शन, विज्ञान, साहित्य, गणित, खगोल विज्ञान, तर्क, अभियांत्रिकी, धातु विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास हुआ।
आधुनिक अंकों तथा दशमलव प्रणाली विकसित हुई।
Question : मौखिक और जनजातीय साहित्य केंद्र के अधिदेश और उद्देश्यों की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः भारत की साहित्यिक परंपरा को भारत के समृद्ध जनजातीय साहित्य में देखा जा सकता है। यद्यपि संविधान की आठवीं अनुसूची में मात्र 22 भाषाएं शामिल हैं, लगभग 80 भाषाएं ऐसी हैं जिनके बोलने वालों की संख्या 10000 से अधिक है।
भारत की मौखिक परंपराएं
कार्ययोजना
Question : ईसा की आरंभिक शताब्दियों तक बौद्ध पंथ के स्वरूप में होने वाले परिवर्तन ने एक तरफ उसकी लोकप्रियता को बढ़ाया, वहीं दूसरी तरफ उसकी अवनति का मार्ग-प्रशस्त कर दिया। इस कथन का परीक्षण कीजिए।
Answer : उत्तरः ईसा की आरंभिक शताब्दियों का काल उभरते आर्थिक तंत्र एवं बदलते सामाजिक परिदृश्य को निरूपित कर सकता है, जिसका प्रभाव बौद्ध पंथ पर उसकी बढ़ती लोकप्रियता के रूप में देखा गया। लेकिन यही लोकप्रियता उसके पतन का कारण बन जाती है।
Question : आप इस विचार को कि गुप्त कालीन सिक्का शास्त्रीय कला की उत्कृष्टता का स्तर बाद के समय में नितांत दर्शनीय नहीं है, किस प्रकार सही सिद्ध करेंगे?
Answer : उत्तरः सिक्का शास्त्रीय कला, धातु कला का एक प्रमुख प्रकार है। भारत में गुप्तकाल से पहले कला का यह रूप प्रचलित रहा है। आरंभ में पचमार्क सिक्के प्रकाश में आए। आगे हिन्दी यूनानियों के कालमें नियमित रूप में अलग-अलग धातुओं जैसे सोना, चांदी, तांबे आदि के सिक्के बनने लगे। किन्तु गुप्तकाल में आकर सिक्काशास्त्रीय कला ने क्लासिकल मानदंड ग्रहण किए, जिसने आगे के काल की सिक्का शास्त्रीय कला को प्रभावित किया।
Question : हड़प्पा सभ्यता के काल में तकनीकी विकास के स्वरूप को निर्धारित कीजिए?
Answer : उत्तर- हड़प्पा सभ्यता के काल में तकनीकी अथवा प्रौद्योगिकी का स्वरूप विभिन्न स्तर पर परिलक्षित होता है। तकनीकी का स्तर उच्च होने के कारण ही कई विद्वानों के द्वारा इसे हड़प्पाई नगरीकरण के उद्भव का महत्वपूर्ण कारण सिद्ध किया गया। किंतु हड़प्पाई तकनीकी ज्ञान तत्कालीन सामाजिक-आर्थिक जरूरतों का परिणाम ज्यादा प्रतीत होता है।
Question : मौर्योत्तर कालीन धर्म एक जटिल सामाजिक संबंधों की उपज था। टिप्पणी करें?
Answer : उत्तरः मौर्योत्तर काल, मौर्य काल के बाद उत्तर तथा दक्षिण में उदय हुए नए राज्यों का काल था। इन्हीं राज्यों के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के सामाजिक विन्यास तथा राजनीतिक मान्यताओं ने इस काल के धर्म को एक विशिष्ठ स्वरूप प्रदान किया, जो आगे चलकर हिंदू धर्म के रूप में परिणत हुआ।
Question : गुप्तकालीन कला पर समकालीन धर्म एवं समाज के प्रभाव को दर्शाइये?
Answer : उत्तरः प्राचीन भारत में कला का स्वरूप या तो धर्म से अभिप्रेरित होता था या समाज से। यही लक्षण हमें गुप्तकालीन कला पर भी दिखायी देते हैं किंतु इस पर धर्म या समाज किसी एक ने नहीं अपितु दोनों कारकों ने प्रभाव डाला।
Question : समकालीन पुरातात्विक एवं साहित्यिक साक्ष्य के आधार पर गुप्त काल में महिलाओं की दशा पर अपना मत प्रकट कीजिए?
Answer : उत्तरः गुप्तकाल में महिलाओं की दशा पर विभिन्न प्रकार के साहित्यिक एवं पुरातात्विक साक्ष्य मिलते है। जिनसे एक प्रकार की विसंगति उजागर होती है, क्योंकि जहां एक ओर समकालीन कला एवं साहित्यमें स्त्री का आदर्शीकृत स्वरूप वर्णित है, किंतु व्यवहार में उनकी दशा दयनीय होती गयी।
Question : हिमालयी मंदिर स्थापत्य की मुख्य विशेषताएं क्या है? इस स्थापत्य शैली को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्वों के आलोक में यथोचित उदाहरणों के साथ व्याख्या कीजिए।
Answer : उत्तरः हिमालय की पहाडि़यों जैसे कुमाऊं, गढ़वाल, हिमाचल और कश्मीर में मंदिर स्थापत्य की एक विशिष्ट शैली का विकास हुआ। इस स्थापत्य शैली के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में कश्मीर में पंद्रेयान, कुमाऊं में चंपावत और जागेश्वर, गढ़वाल में केदारनाथ तथा चंबा के मंदिरों की मूर्तिकला सम्मिलित है।
हिमालयी मंदिरों की प्रमुख विशेषताएं
अनेक मंदिरों में गर्भगृह और शिखर को रेखा प्रसाद शैली में निर्मित किया गया है।
पंद्रयान मंदिर का निर्माण एक जलाशय के मध्य किया गया है, जैसा की गुजरात शैली में प्रचलित है।
चंबा में मूर्तियों में गुप्तोत्तर काल की परंपराओं के साथ स्थानीय परंपराओं का मिश्रित रूप है।
कुमाऊं के अनेक मंदिर नागर स्थापत्य के उत्कृष्ट उदाहरण है।
इस प्रकार हिमालयी मंदिर स्थापत्य कला पर विभिन्न शैलियों का प्रभाव परिलक्षित होता है, फिर भी इस शैली में कुछ ऐसी हैं, जो इसे विशिष्ट बनाती हैं।
Question : हाल के पुरातात्विक उत्खनन गतिविधियों ने सिंधु घाटी सभ्यता के अधिक बड़े क्षेत्रीय फैलाव को दर्शाया है। विवचेना करें।
Answer : उत्तरः सिंधु घाटी सभ्यता एक कांस्य युगीन सभ्यता थी जो 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू. तक अपने परिपक्व चरण में रही तथा लगभग 1300 ई.पू. में जिसका पूर्णतः पतन हो गया। रावी नदी के तट पर स्थित हड़प्पा इससे जुड़ा सर्वप्रथम सामने आया स्थल था। जिसका उत्खनन 1921 में दयाराम साहनी के नेतृत्व में हुआ था तथा 1922 में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में सिंधु नदी के तट पर दूसरा स्थल मोहन जोदड़ो उत्खनित हुआ।