Question : ‘‘उत्तरदायी सांस्कृतिक पर्यटन’’ क्या है?
Answer : उत्तरः सांस्कृतिक पर्यटन, पर्यटन का एक रूप है जिसके अंतर्गत इतिहास, कला, परंपरा, वैज्ञानिक अथवा जीवन शैली संबंधी विषयों, किसी क्षेत्र, समुदाय, धर्म समूह आदि की रूचि रखने वाले लोग अपनी रूचि से संबंधित स्थानों पर भ्रमण करते हैं। इस प्रकार सांस्कृतिक पर्यटन आर्थिक विकास का एक उपकरण है। जिसके अंतर्गत पर्यटकों के आगमन से मेजबान देश लाभान्वित होता है। सांस्कृतिक पर्यटन के अंतर्गत किसी स्थान अथवा समुदाय की ऐतिहासिक, नृजातीय अथवा सांस्कृतिक विशेषताओं को पर्यटकों को आकर्षित करने तथा पर्यटन के विकास को बढ़ावा देने वाले संसाधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
उत्तरदायी सांस्कृतिक पर्यटन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
Question : औद्योगिक सभ्यता, औद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण के क्षेत्रीय कला रूपों पर किस प्रकार के सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव हुए हैं?
Answer : उत्तरः पारंपरिक थिएटर के प्रकारों के शास्त्रीय पहलू, क्षेत्रीय स्थानीय और लोक रंग ले लेते हैं। यह संभव है की इनकी शास्त्रीय दुनिया से जुड़े कार्य इनकी गिरावट के उपरान्त अन्य पड़ोसी क्षेत्रों में चले जाएं। इस प्रकार का संश्लेषण लिखित, वाचिक, शास्त्रीय, समकालीन, राष्ट्रीय व स्थानीय स्तर पर अवश्य हुआ है।
भारत में पारंपरिक रंगमंच के कुछ प्रकार-
(a) भांड पाथेरः कश्मीर के पारंपरिक थिएटर का एक प्रकार, नृत्य, संगीत और अभिनय का एक अद्वितीय संयोजन है।
(b) स्वांगः मूलतः थिएटर प्रकार स्वांग, मुख्य रूप से संगीत आधारित था और धीरे-धीरे गद्य ने भी इसके संवादों में अपनी भूमिका निभाई।
(c) नौटंकीः यह आमतौर पर उत्तर प्रदेश के साथ जुड़ा हुआ है।
(d) रासलीलाः यह भगवान कृष्ण के किंवदंतियों पर आधारित है।
(e) भवाईः यह गुजरात की पारंपरिक थिएटर रूप है। इसमें भक्ति और प्रेम भावनाओं का एक दुर्लभ संश्लेषण है।Question : कबीर तथा नानक ने भारतीय समाज और संस्कृति पर क्या प्रभाव छोड़ा था?
Answer : उत्तरः मध्यकालीन युग में सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से कबीर एवं नानक का योगदान सराहनीय था, इसलिए दोनों को सामाजिक सुधारक की संज्ञा दी जाती है।
Question : मौर्य साम्राज्य की संस्कृति एवं कला पर बौद्ध धर्म तथा उसकी शिक्षाओं का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। कथन की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
Answer : उत्तरः किसी भी काल में प्रभावी धर्म की जन लोकप्रियता एवं स्वीकार्यता के कारण, कला एवं संस्कृति इसके प्रभाव से अछूता नहीं रह पाती है। मौर्य काल में बौद्ध धर्म के विकास की चरम अवस्था में होने के कारण इसके प्रभाव को इसी संदर्भ में देखने की आवश्यकता है।
संस्कृति पर प्रभाव
Question : जैन धर्म के दर्शन के महत्व तथा उसकी मानवता के संदर्भ में प्रासंगिकता का मूल्यांकन कीजिए?
Answer : उत्तरः जैन धर्म निवृत्ति चिंतन पर आधारित धर्म था तथा जैन धर्म का जुड़ाव तात्कालिक समाज से था। जैन धर्म का महत्व तात्कालिक समाज की आर्थिक सामाजिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में बहुत अधिक था। जैन धर्म भले ही बौद्ध धर्म की तुलना में व्यापक स्वीकृति न प्राप्त कर पाया हो किंतु जैन धर्म की प्रासंगिकता मानवता के संदर्भ में बनी हुई है, अपितु बढ़ गयी है।
Question : बौद्ध धर्म उपनिषद परंपरा का विकास था। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए?
Answer : उत्तरः बौद्ध धर्म एवं उपनिषद वैदिक धर्म के विरुद्ध साथ खडे़ हुए प्रतीत होते हैं, किंतु दोनों की धर्म सुधार के संबंध में दृष्टि अलग-अलग दिखायी पड़ती है, जहां उपनिषद चिंतन कुछ परिवर्तनों की बात करता था वहीं बौद्ध धर्म मूलपरिवर्तन का समर्थन कर रहा था।
Question : भारत की विविधता के संदर्भ में क्या यह कहा जा सकता है कि राज्यों की अपेक्षा प्रदेश सांस्कृतिक ईकाइयों को रूप प्रदान करते है? अपने दृष्टिकोण के लिए उदाहरणों सहित कारण बताइए।
Answer : उत्तरः संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है। यह उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य कला आदि में परिलक्षित होती है।