ओटीटी प्लेटफार्मः विनियमन बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
क्रॉनिकल निबंध प्रतियोगिता-5 : नवीन चंदन राय (गांधी विहार, दिल्ली)
जैसे पौष्टिक भोजन स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक है वैसे ही गुणवत्तापूर्ण मनोरंजन चैतन्य एवं क्रियाशील मस्तिष्क के लिए आवश्यक है। प्रश्न है कि गुणवत्तापूर्ण मनोरंजन क्या है? इसकी परिभाषा कौन तय करे? दर्शक, निर्माता या सरकार। पुनः एक प्रश्न मनमस्तिष्क में आता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हम मनोरंजन के लिए क्या कुछ भी बना या दिखा सकते हैं, या इसके विनियमन की आवश्यकता है?
इंसान आदिम से आधुनिक बनने का सफर तय करता गया और आचार-व्यवहार, मनोरंजन, ज्ञानार्जन के साधनों में बदलाव आता गया। जहां ऐतिहासिक काल में सामूहिक नृत्य, रथदौड़ इत्यादि मनोरंजन के साधन थे। जिनमें किसी प्रकार का विनियमन नहीं था वहीं विकास के साथ कई अन्य मनोरंजन के साधन उभरे, जैसे केबल टीवी, ट्रांजिस्टर इत्यादि; जिनको सरकारों ने समय-समय पर विनियमित करने का प्रयास किया। वर्तमान में अपने सरल स्वरूप के कारण ओटीटी प्लेटफॉर्म सशक्त मनोरंजन के साधन के रूप में उभरे हैं। इनके उभार का कारण मात्र आधुनिक जीवनशैली ही नहीं वरन इनकी विषयवस्तु भी है, जो प्रत्येक दर्शक वर्ग तक अपनी पैठ बना चुकी है। इन प्लेटफॉर्म्स के द्वारा अपनी अभिव्यक्ति के उद्गारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्राप्त है, जिसका स्वरूप दोधारी तलवार जैसा है।
अब दूसरा प्रश्न यह आता है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म क्या है और यह इतना लोकप्रिय क्यों हुआ कि इसे विनियमन की परिधि में लाना पड़ा। ओटीटी, अर्थात ओवर-द-टॉप (over the top) यानी ऐसे साधन जो इन्टरनेट द्वारा ऑडियो-वीडियो विषयवस्तु को दर्शकों तक मांग एवं सुविधानुसार उपलब्ध कराते हैं। इन विषय वस्तुओं में फिल्में, वेब सीरीज तथा पॉडकास्ट आदि शामिल हैं। इन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स में अमेजन प्राइम, नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार, जियो सावन आदि शामिल हैं।
भारत में कम समय में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की लोकप्रियता बढ़ने के मुख्य कारण हैं- सशक्त अभिनय, शानदार पटकथा, तकनीकी उन्नयन एवं आसान पहुंच व कोरोना महामारी का दौर, जिसके कारण देशव्यापी लाकडॉउन लगाना पड़ा, जिससे लोग घरों में कैद हो गए और मनोरंजन के साधन सीमित हो गए वस्तुतः लोग इनकी तरफ मुड़े। आंकड़ों में देखें तो पाते हैं कि वर्तमान में भारत का वीडियो और ऑडियो ओटीटी बाज़ार क्रमशः 1.5 और 0.6 बिलियन डॉलर का है, जिसके 2030 तक क्रमशः 12.5 बिलियन डॉलर तथा 2.5 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है। यह बदलाव सर्वाधिक रूप से छोटे और मध्यम शहरों में होगा।
सरकार ने ओटीटी की विषयवस्तु तथा आसान पहुंच को देखते हुए फरवरी 2021 में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थों और डिजिटल मीडिया आचार संहिता के दिशा निर्देश) नियम 2021 को अधिनियमित किया जो ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को विनियमित करेगा। ओटीटी को विनियमित करने के कारण बहुत मत उभरे हैं कुछ पक्ष में तो कुछ विरोध में।
ओटीटी विनियमन के समर्थक कुछ वेब सीरीज का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जिनमें अश्लीलता को बढ़ावा दिया गया है; अमेजन प्राइम के ‘मिर्जापुर’ पर हिंसा को बढ़ावा देने तथा शहर की छवि को विरूपित करने का आरोप लगा। ‘तांडव’ पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में परिवाद तक दायर किए गए। कहा गया कि इन सीरिजों को परिवार के साथ बैठकर नहीं देखा जा सकता, जो भारतीय पारिवारिक समाजशास्त्रीय ताने-बाने के विपरीत है।
इन उदाहरणों के आलोक में यह ज्वलंत प्रश्न है कि क्या हम सही मायनों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आनंद ले रहे हैं या ओटीटी को किसी विनियमन के दायरे में लाने की आवश्यकता है?
विनियमन का विरोध करने वालों का तर्क है कि विनियमन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मूल भावना के विपरीत है। इसके द्वारा कलात्मक अभिव्यक्ति तथा इससे प्रणेत विचारों पर नियंत्रण स्थापित हो सकता है। लेकिन सरकार का मानना है कि विचारों पर नियंत्रण एवं विषयवस्तु के विनियमन के अन्तर को समझना होगा। वैसे भी हमारे संविधान का अनुच्छेद 19 वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है किन्तु यह युक्ति-युक्त प्रतिबंध भी आरोपित करता है।
वर्तमान की डिजिटल क्रांति ने बच्चों एवं किशोरों की पहुंच को वयस्क ओटीटी विषय वस्तु तक सुनिश्चित किया है, जिसने सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक मुद्दों को जन्म दिया है, किन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर कहते हैं कि ओटीटी की विषयवस्तु ऑन डिमांड सब्सक्रिप्शन पर आधारित है, अर्थात अभिभावक यह चुन सकते हैं कि उनके बच्चों को क्या देखना है। साथ ही ओटीटी प्लेटफॉर्म पैरेन्टल लॉक जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध कराते हैं। लेकिन विचारणीय है कि हमारी अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है जो डिजिटली रूप से कम साक्षर है तथा जहां डेटा काफी सस्ता है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के विनियमन को लेकर निर्माताओं, कलाकारों के विभिन्न विचार हैं। किसी के विचार निराशाजनक हैं तो किसी के सराहनीय। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के विनियमन को लेकर निराशाजनक विचार वाले लोगों का तर्क है कि विनियमन से कलात्मक-रचनात्मक अभिव्यक्ति बाधित होगी, जिससे हम विश्व मंच पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे। कुछ का कहना है कि विनियमन के स्थान पर आयु प्रमाणन प्रदान किया जाना चाहिए क्योंकि भारत स्वतंत्र एवं लोकतांत्रिक देश है, जहां अपने नागरिकों को यह तय करने देना चाहिए कि वे अपने टी.वी. या मोबाइल पर क्या देखना चाहते हैं, लेकिन पुनः वही प्रश्न है कि स्वतंत्रता एवं स्वच्छंदता की पतली रेखा को स्पष्ट कैसे किया जाए, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी सुरक्षित रहे तथा हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य भी संरक्षित रहें।
लोगों का मानना है कि ओटीटी के विनियमन से यह अपना आकर्षण खो देगा क्योंकि इसकी खूबसूरती इसी में निहित है कि यह उन अनछुए पहलुओं को छूने का प्रयास करता है, जिनको फिल्मों या टेलीविजन के माध्यम से दिखाना संभव नहीं है। उदाहरणस्वरूप समलैंगिकता, स्त्री विमर्श एवं समस्याएंइत्यादि। इससे यह वह दिखा पाता है जो वास्तविकता के धरातल पर है, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मजबूत होती है साथ ही समस्याओं को चर्चा के केंद्र बिंदु में लाकर इनके समाधान में सहयोग प्रदान करता है। कुछ लोग विनियमन के विकल्प का भी सुझाव भी देते हैं कि अभिव्यक्ति पर कोई विनियमन नहीं वरन नियम होने चाहिए, साथ ही निर्माताओं को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, जिससे सामाजिक-सांप्रदायिक द्वेष न उत्पन्न हो।
विनियमन को लेकर बड़ी चिन्ता इसके दुरुपयोग को रोकना है क्योंकि संस्कृति एवं शालीनता के नाम पर हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित कर सकते। ऐसे उदाहरण हमारे समक्ष हैं, विशेषकर आपातकाल के जब राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया।
विनियमन में विभिन्न आयु वर्गों को वर्गीकृत करने और 18+ तथा 13+ की विषयवस्तु पर अभिभावकों का नियंत्रण आवश्यक है क्योंकि अधिकांश भारतीय ओटीटी प्लेटफॉर्म इस तरह के वर्गीकरण तथा अभिभावक नियंत्रण की पेशकश नहीं करते हैं।
ओटीटी के सकारात्मक पहलुओं को देखें तो पाते हैं कि इसने अल्पावधि में वह कर दिखाया जो भारतीय सिनेमा दशकों तक नहीं कर पाया, इसने क्षेत्रीय सिनेमा जैसे तमिल, बंगाली, मराठी आदि को अखिल भारतीय पहचान दिलायी है, जो भारतीय एकता एवं अखंडता को मजबूत करता है और सशक्त क्षेत्रीय कलाकारों को मुख्य धारा में पहचान बनाने का मौका दिया है। विनियमन के बाद यह गौर करने वाली बात होगी कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का भविष्य कैसा होगा।
वर्तमान के अर्थप्रधान युग में जहां प्रत्येक व्यक्ति सफल होना चाहता है, के कारण शोषण बढ़ा है क्योंकि वेब सीरिजों की सफलता का पैमाना दर्शकों द्वारा देखे जाने पर है, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अश्लीलता एवं हिंसा को बढ़ावा दिया जाता है और यह इसलिए संभव होता है क्योंकि ओटीटी के लिए विनियमन की एक सशक्त प्रणाली का अभाव है।
अतः हम पाते हैं कि ओटीटी के विनियम को किसी एक पक्ष से नहीं देखा जा सकता, ऐसा इसलिए क्योंकि यह मुद्दा कलात्मक अभिव्यक्ति व मनोरंजन के अधिकार बनाम सामाजिक संस्कृति के संरक्षण से जुड़ा है। इसको हम सितार के उस तार की तरह समझ सकते हैं, जिसको अधिक कसने पर टूटने का भय है वहीं ढीला छोड़ देने पर बेसुरा होने की संभावना; इसलिए हमें ऐसे मध्यम मार्ग की तलाश करनी होगी, जो ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को विनियमित तो करे, किन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हानि न पहुंचाए। अर्थात हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा रचनात्मक अभिव्यक्ति दोनों को संरक्षित करना होगा।